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रफ्तार वाली पिचों पर अफ्रीकियों के बराबर खड़े हैं भुवी, शमी, उमेश और बुमराह

पहले टेस्ट मैच से पहले साउथ अफ्रीका की बाउंसी व तेज पिचों पर उसके पेसर्स कागिसो रबाडा, डेल स्टेन, मोरने मोर्कल और वेरनॉन फिलेंडर की गेंदबाजी को एक चिंता की तरह देखा जा रहा है

Jasvinder Sidhu

भारतीय टीम व बतौर कप्तान विराट कोहली के लिए केपटाउन में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ पांच जनवरी से मुश्किल दौरा शुरू होना है. पहले टेस्ट मैच से पहले साउथ अफ्रीका की बाउंसी व तेज पिचों पर उसके पेसर्स कागिसो रबाडा, डेल स्टेन,  मोरने मोर्कल और वेरनॉन फिलेंडर की गेंदबाजी को एक चिंता की तरह देखा जा रहा है.

यकीनन पिछले चार सालों में लगभग हर टीम के खिलाफ 100 से भी ज्यादा शतक मार चुकी भारतीय बल्लेबाजी के लिए इन चारों का सामना पूरे कैरियर का निचोड़ साबित होने वाला है.


खासकर ओपनरों के लिए. क्योंकि अगर वे पहले 20 ओवर कूकाबुरा गेंद की चमक और मूवमेंट के बीच अपनी विकेट बचाने में कामयाब हो जाते हैं तो स्कोरबोर्ड भरा सा दिखेगा. यानी दक्षिण अफ्रीका में पूरा खेल इस बात पर निर्भर करेगा कि बल्लेबाज और गेंदबाज नई गेंद के सामने खुद को कैसे संभालते हैं.

इस लिहाज से भुवनेश्वर कुमार, मोहम्मद शमी, उमेश यादव, जसप्रीत बुमराह को कागिसो रबाडा, डेल स्टेन, और वेरनॉन फिलेंडर के बराबर खड़ा किया जा सकता है. हाल के समय में जिस तरह की गेंदबाजी इन भारतीयों ने की है, दक्षिण अफ्रीका में वे तीन टेस्ट मैचों में अपनी टीम का भविष्य तय करने में अहम पहलू होंगे.

पहली बार साउथ अफ्रीका गए भुवनेश्वर को पिछले साल के आखिरी मैच में श्रीलंका के खिलाफ कोलकाता में हरी घास के साथ उछाल वाली पिच पर गेंदबाजी करने का मौका मिला.

136-138 किलोमीटर के साथ दोनों तरफ गेंद को स्विंग करवाने की क्षमता के कारण भुवनेश्वर ने अपने पहले चार ओवरों में दोनों ओपनरों को निपटा दिया.

जिस परेशान कर देने वाली तेज पिच पर सुरंगा लकमल के पहले स्पैल 6-6-0-3 के कारण भारतीय टीम पहली पारी में 172 सिमट गई, मैन ऑफ द मैच भुवनेश्वर ने भी पहली पारी में 8-1-25-2 का स्पैल डाला. इसमें कोई दोराय नहीं है कि दक्षिण अफ्रीका में यह गेंदबाज अहम होगा.

मोहम्मद शमी 2013 के पिछले दक्षिण अफ्रीका के दौरे का हिस्सा थे. जाहिर है कि उन्हें अंदाजा है कि वहां किस लाइन एंड लेंथ से विकेट मिल सकते हैं. ड्रॉ रहे जोहानसबर्ग टेस्ट की पहली पारी में शमी ने जहीर खान के साथ गेंद साझा की थी और तकनीकी तौर पर बेहद मजबूत ओपनर एल्विरो पीटरसन और विश्व के बेहतरीन नंबर तीन हाशिम अमला को बोल्ड किया था.

जिस तरह का पेस व हवा में मूवमेंट हासिल करने की क्षमता शमी के पास है, वह बल्लेबाजों को नई गेंद पर विकेट के पीछे और स्लिप पर फंसा सकते हैं. लेकिन यह सब उन्हें शुरुआती ओवरों में ही करना होगा क्योंकि 20-25 ओवर पुरानी होने के बाद कूकाबुरा गेंद गेंदबाज की परीक्षा लेनी शुरू कर देती है.

उमेश यादव का यह पहली दक्षिण अफ्रीकी दौरा है. लेकिन हालिया सालों में जिस तरह से इस गेंदबाज ने बहुत ही घटिया पिचों पर खुद को एक उपयोगी और सफल गेंदबाज साबित किया है, गेंदबाजों की मददगार 22 गज पर उनसे उम्मीद करना बेमानी नहीं हैं.

140-145 के आसपास गेंद में स्पीड और मूवमेंट उन्हें परिणाम देने वाला गेंदबाज बनाती है. यही कारण है कि आस्ट्रेलिया में खेले सात मैचों में उमेश यादव के 29 विकेट हैं. 36 टेस्ट मैचों में उमेश अभी तक 99 विकेट ले चुके हैं और इनमें से भारत में उन्होंने 58 भारत में लिए हैं.

इन तीनों के पास काफी अनुभव है लेकिन यह देखना रोचक होगा का टेस्ट मैच में मौका मिलने पर बुमराह कैसे साबित होते हैं. दक्षिण अफ्रीका जैसी पिचों पर उपयोगी और बल्लेबाजों को परेशान कर आउट करने के सारे गुण उनमें हैं.

उनकी आउटस्विंग कारगर है तो यॉर्कर सबसे घातक हथियार. हालांकि कप्तान के लिए फैसला करना थोड़ा मुश्किल होगा कि अगर उन्हें मौका दिया जाता है तो वह उन्हें कब गेंद थमाएं. वैसे वह पुरानी गेंद पर भी रिजल्ट देने  वाले गेंदबाज हैं.

यकीनी तौर पर टीम के साथ अनुभवी इशांत शर्मा भी हैं. उनके पास तेजी के साथ विकेट टु विकेट सीधे गेंद करने की क्षमता है. जाहिर है कि वह गेंदबाजी की रीढ़ हैं. लेकिन यह सीरीज उसी गेंदबाज की होने वाली है जो टीम के विकेट दिलाएगा.