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महज एक स्टार पर फोकस और असुरक्षा की भावना से बिगड़े टीम इंडिया के ग्रह

इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज में मिली 1-4 की हार बहुत गंभीर सवाल खड़े करती है लेकिन उनके जवाब खोजे भी नहीं जाएंगे

Jasvinder Sidhu

पिछले साल श्रीलंका दौरे के बात है. कोलंबो टेस्ट से पहले नेट्स के दौरान कप्तान विराट कोहली का मूड हुआ कि बल्लेबाजी की जगह वह गेंदबाजी करेंगे. कप्तान के हाथ में गेंद थी और उन्होंने चार ओवर डाले. इस दौरान कोच रवि शास्त्री उनकी गेंदबाजी पर निगाह रखने के लिए वहीं मौजूद थे. साथ के नेट्स पर बाकी बल्लेबाज थे लेकिन हेड कोच शास्त्री का पूरा फोकस गेंदबाज कोहली पर ही था. आपको लगेगा कि हम अचानक श्रीलंका दौरे के बीत क्यों कर रहे हैं. सिर्फ इसलिए कि टीम कैसे चल रही है, इसका अंदाजा मिले. यह किस्सा अपने आप में काफी कुछ कहता है कि विराट और शास्त्री के काम का स्टाइल क्या है.

आखिर क्यों हारी टीम!


इंग्लैंड में सीरीज में 1-4 से सफाए के बाद कई तरह के कारण गिनाए जा रहे हैं. कई विशेषज्ञों के आकलन पढ़ने को मिल रहे हैं. एक यह भी है कि टीम अच्छा खेली लेकिन मैच हारी क्यों, इस बात का पता लगाना जरूरी है.

जिस सीरीज में इंग्लैंड का टॉप बैटिंग आर्डर फेल रहा, मध्यक्रम पर भी भरोसा डगमगाया दिखा, ऐसे मुकाबले में टीम इंडिया एकतरफा हारी है. बर्मिंघम में तो टीम 194 रन का लक्ष्य छूने से 31 रन पहले लुढ़क गई. साउथैम्पटन में भी 245 रन नहीं बने. ऐसे में टीम अच्छा खेली है या बुरा, इस पर शोध होना चाहिए.

क्या वाकई जीत की गारंटी है शास्त्री-कोहली की जोड़ी!

इस हार के कई बड़े कारणों में से एक कोच और कप्तान की जोड़ी भी है. शास्त्री का पूरा फोकस विराट पर है. जब भी उन्हें मौका मिलता है, वह विराट की ही बात करते हैं. खुद टीम मैदान पर पूरी तरह विराट पर ही निर्भर दिखी. इसका टीम पर बुरा असर साफ दिखाई देने लगा है.

इस बात की शायद ही कोई जांच करेगा कि इंग्लैंड दौरे पर जाने से पहले लगातार बड़े स्कोर खड़ा कर रहे बल्लेबाज इंग्लैंड के सामने लाचारों का तरह हथियार क्यों डाल गए. शिखर धवन एक उदाहरण हैं. इंग्लैंड दौरे पर जाने से पहले शिखर ने श्रीलंका में हुए तीन टेस्ट मैच खेले. गॉल में वह दोहरे शतक से महज दस रन से चूके. पल्लेकेले में वह 119 रन बनाने के बाद आउट हुए. उन तीन मैचों में शिखर के 89.50 की औसत से चार पारियों में 358 रन थे.

चेतेश्वर पुजारा ने भी इस सीरीज से पहले श्रीलंका के खिलाफ तीन टेस्ट मैचों की चार पारियों में दो शतकों सहित 309 रन बनाए थे. लेकिन बर्मिंघम टेस्ट मैच में वह बाहर बैठे थे. टीम नॉटिंघम में जीती. इसका श्रेय पहली पारी (159) में कप्तान कोहली व रहाणे और दूसरी में पुजारा (72) के साथ बनी 113 रन की पार्टनरशिप को जाता है.

हेड कोच का तर्क है कि टीम के लिए फैसले लेते समय कप्तान ही बॉस होता है. इस तर्क को स्वीकार करने में कोई हर्ज नहीं हैं. मगर अगर फैसले गलत हो रहे हों तो टीम प्रबंधन में किसी का भी चुप बैठना अपराध है.

डरे हुए खिलाड़ी कैसे मैच जिताएंगे!

विराट के कप्तान और उनके रवि शास्त्री के कोच बनने के बाद से टीम इंडिया का वनडे और टेस्ट में बैटिंग आर्डर ठीक से कभी तय की नहीं हो पाया है. बार-बार बदलाव से असुरक्षा की भावना का पनपना तय है और इसका असर न सिर्फ असुरक्षित महसूस कर रहे सदस्यों पर पड़ता है बल्कि पूरी टीम प्रभावित होती है.

बतौर कप्तान विराट 39 में से 38 में बदली हुई टीम लेकर मैदान पर उतरे हैं. मामला सिर्फ बल्लेबाजों की ही नहीं, उस बदलाव के कारण गेंदबाजी को लेकर किए गए फैसलों का प्रभाव टीम के प्रदर्शन पर पड़ा है.

कप्तान जब कहते हैं कि उनकी टीम के हर खिलाड़ी ने जीत के लिए ही खेला है, उनकी बात मान लेनी चाहिए. लेकिन टेस्ट में नंबर वन टीम का इतना बुरा हाल क्यों हुआ, इसके लिए किसी को जिम्मेदारी तो लेनी चाहिए जो अब तक नहीं हुआ है.

इस खेल के चाहने वाले नाराज हैं और ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. उनके लिए घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि वेस्टइंडीज की टीम की भारत दौरे की टिकटें बुक हो चुकी हैं. अपनी पिचों पर इस टीम को घेर कर मारने का बाद इंग्लैंड को लेकर कोई भी सवाल नहीं करने वाला.