view all

नॉटिंघम टेस्ट में अच्छे नंबरों का जश्न जायज, लेकिन बाकी के लिए इंग्लैंड की नकल जरूरी

नॉटिंघम टेस्ट की जीत के शोर में टीम इंडिया के लिए चेतावनी को ध्यान से सुनना जरूरी

Jasvinder Sidhu

यकीन है कि नॉटिंघम टेस्ट में 203 रनों की जीत के बाद उन सभी क्रिकेट प्रेमियों का विश्वास विराट कोहली की टीम पर फिर से बहाल हो गया होगा जो पहले दो शर्मिंदगी भरे मैच हारने के बाद स्यापा कर रहे थे. यकीनन जश्न तो बनता है. 0-2 से पिछड़ने के बाद तीसरा टेस्ट जीत जाना बताता है कि इस टीम में क्षमता है और वह पलटवार कर सकती है.

लेकिन इस जीत की खुशी इस बात की गारंटी नहीं देती कि सीरीज का फैसला करने वाले अगले दो टेस्ट मैचों में टीम इंडिया अपने मेजबानों का ऐसा ही बुरा हाल कर देगी.


असल में नॉटिंघम में पांचों दिन के खेल का आकलन करने के बाद दिखाई देता है कि टीम इंडिया को तुरंत जागने की जरूरत है. उसे इस मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि समय और किस्मत हर बार उसके साथ रहेंगे.

यह सही है कि स्कोर बोर्ड पर साफ लिखा है कि इंग्लैंड यह मैच हार गया है. लेकिन उस पर लिखी बाकी की इबारत को ना पढ़ने की गलती भारी पड़ सकती है.

संकट से उबरने के लिए सब कुछ झोंका

हार के बावजूद इंग्लैंड ने जो जज्बा नॉटिंघम में दिखाया है, वह उसे और मजबूत बनाता है. असल में जो रूट की टीम ने आसानी से हथियार नहीं डाले जैसे कि पहले दो टेस्ट मैचों में नंबर वन टीम ने किया. वो दोनों मैच पांचवें दिन तक नहीं पहुंच पाए.

लॉर्डस टेस्ट मैच की दोनों पारियों में भारतीय टीम महज 82.2 ही इंग्लैंड की गेंदबाजी के सामने टिक सकी थी. दोनों पारियों में टॉप बल्लेबाजों के कैच छूटने के बाद भी स्कोर 250 के पार नहीं पहुंचा.

नॉटिंघम की पहली पारी में 161 पर निपटने के बाद दूसरी में इंग्लैंड ने 62 पर चार बल्लेबाज गंवाने के बावजूद न केवल 104.5 ओवर खेल कर गई, बल्कि वह मैच को पांचवें दिन तक लाने में सफल रही.

यह कुछ ऐसा है जो टीम इंडिया बाकी के बचे मैचों में जीत के लिए इंग्लैंड से सीख सकती है. पिछले दो मैचों की तरह तीसरे में भी इंग्लैंड का टॉप बैटिंग लाइन-अप नई गेंद के सामने लाचार साबित हुआ. एलिस्टर कुक, कीटन जेनिंग्स के अलावा बर्मिंघम में पहली पारी के 80 रन को छोड़कर कप्तान जो रूट के रन नहीं हैं. लेकिन इसके बावजूद इंग्लैंड दोनों मैच जीता.

कारण, यह टीम किसी एक खिलाड़ी पर निर्भर नहीं दिखाई देती. बेयरस्टो, क्रिस वोक्स और जोस बटलर के रन यह बात साबित करते हैं. जबकि टीम इंडिया की जीत की गारंटी कप्तान कोहली का बल्ला चलने पर निर्भर करती है. सीरीज में टीम इंडिया के कुल 1354 रनों में से दो शतकों सहित 440 अकेले कप्तान के बल्ले से ही निकले हैं.

रनों के बावजूद दिखता है कोहली की बैटिंग में संकट

नॉटिंघम में जिस धैर्य से कोहली ने 103 रन की पारी खेली है, उससे अगली पीढ़ी के बल्लेबाज सबक ले सकते हैं कि परिस्थितियों को भांप कर खराब हालात में भी किस तरह लंबी इनिंग खेली जा सकती है.

पूरी सीरीज में विराट की अब तक की बल्लेबाजी का श्रेय उनसे कोई नहीं ले सकता. लेकिन यह भी सही है कि जिस तरह की क्लीन बैटिंग के लिए विराट जाने जाते हैं, वह इंग्लैंड में नहीं हो रही है.

कितनी बार देखने को मिला है कि विराट हर पारी में स्लिप पर कैच देते रहे, जो लगातार छूट रहे हैं या छह-सात बार गेंद बल्ले का किनारा लेने के बाद स्लिप फील्डरों के सामने गिरी. ऐसा भी दिखा कि अपनी विकेट बचा कर खेलने में माहिर इस बल्लेबाज को एलबीडब्लू या उसके लिए रेफरल झेलना पड़ा! और हां, गेंद उनके बल्ले को चूमने के बाद विकेटों में घुसने से भी तो बची है.

इसमें कोई दोराय नहीं है कि विराट अगली पीढ़ी के टॉप बल्लेबाजों की पंक्ति में सबसे पहले नंबर पर खड़े हैं. लेकिन जिस तरह के बल्लेबाज वह हैं, यकीनन इस तरह की दिक्कतें उन्हें परेशान जरूर कर रही होंगी. ऐसी स्थिति का सामना उन्होंने हाल के सालों में नहीं किया है.

इस लिहाज से देखना रोचक होगा कि अगले दो मैचों में विराट को अगर फील्डर दूसरा मौका नहीं देते हैं तो टीम इंडिया उस स्थिति को कैसे संभालती है!

खुद विराट के लिए भी अपनी बिना किसी गलती वाली बल्लेबाजी को वापस पाना कम चुनौती नहीं होगी. इसलिए जरूरी है कि विराट के चाहने वाले उनके लिए दुआ करें कि अगले दो मैचों की चार पारियों में उनका बल्ला कोई गलती न करे और स्कोर बोर्ड पर उनके नाम बड़े रन दिखाई दें. टीम का भविष्य उसी पर निर्भर है.