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मैदान पर उतरने से पहले ही मुकाबला हार गई थी ऑस्ट्रेलियन टीम!

बॉल टेंपरिंग के बाद सिर्फ दो अनुभवी खिलाड़ियों के जाने से ऑस्ट्रेलिया की क्रिकेट सिर्फ बिखरी ही नहीं, उनका विश्वास भी खुद पर से पूरा उठ गया

Kiran Singh

पहलवानी, बॉक्सिंग जैसे खेलों में अक्सर एक बात कहीं जाती है , वो ये कि शारीरिक ताकत से ज्यादा आप में आत्मबल होना चाहिए, तभी विरोधियों पर विजय हासिल की जा सकती है. हर मैदान पर एक बात बार बार सबको कहा जाता है यू केन  डू इट, वी केन डू इट. एक ऊंचे स्वर में, चिल्ला कर. इतनी तेज कि हर कोई सुने. आप जितना तेज चिल्लाएंगे, उतना ही आपमें विश्वास आएगा और खुद पर विश्वास आने के बाद तो भले ही आपके सामने दुनिया की शीर्ष टीम खड़ी हो या फिर नंबर एक खिलाड़ी. तभी तो रियो ओलिंपिक के फाइनल में पीवी सिंधु कैरोलिना मारिन को पहले गेम में हराने में सफल रही. उस खिलाड़ी को जिसने पूरे टूर्नामेंट में एक भी गेम नहीं गंवाया था. हर एक अंक जीतने पर सिंधु चिल्लाकर खुद को प्रेरित करती थी और यही प्रेरणा उन्हें खुद पर विश्वास रखने का हौसला देती थी. लेकिन अगर खुद पर विश्वास खत्म हो गया तो...


ऑस्ट्रेलिया को नहीं है खुद पर विश्वास

...तो वही होता है जो आज ऑस्ट्रेलिया की  क्रिकेट टीम के साथ हो रहा है. वेस्टइंडीज का साम्राज्य खत्म होने के बाद क्रिकेट की दुनिया में जिस टीम ने अपनी बादशाहत कायम की, वो टीम है ऑस्ट्रेलिया. जिसे हराने का सपना लंबे समय से हर टीम देख रही थी. लेकिन पिछले साल भर से उल्टा हो रहा है. दुनिया की सबसे मजबूत टीम अब जीतने का सपना ही देख रही है, जो सच नहीं हो पा रहा.

मार्च में  साउथ अफ्रीका के खिलाफ केप टाउन टेस्ट में बॉल टेंपरिंग के बाद ऐसा क्या हुआ कि टीम के वो खिलाड़ी, जो हार शब्द से वाकिफ नहीं थे, आज जीत के लिए तरस गए. बॉल टेंपरिंग के कारण भले ही उनकी टीम दिग्गज खिलाड़ी स्टीव स्मिथ और डेविड वॉर्नर के बिना अनुभवहीन हो गई हो, लेकिन टीम में उस्मान ख्वाजा, नेथन लायन, शॉन मार्श, पैट कमिंस और मिचेल स्टार्क जैसे खिलाड़ी भी तो मौजूद हैं, जिन्होंने अपने दम पर एशेज सीरीज में टीम को 4-0 से जीत दिलाई थी. भारत और उससे पहले पाकिस्तान के खिलाफ तो वो भी मैदान पर उतरे ही थे. तो आखिर कहां कई उनकी पुरानी धार, जो खेल के मामले में किसी और की चलने तक नहीं देते.

नंबर वन टीम इंडिया में है दम

हालांकि तारीफ के काबिल तो टीम इंडिया भी है, जिनके प्रदर्शन में पिछले काफी समय से सुधार हो रहा है. पिछले साल तो गेंदबाजों ने उम्मीदों के विपरीत शानदार प्रदर्शन किया. विराट कोहली की कप्तानी में टीम नंबर एक बन गई. हर एक जीत के साथ टीम का उत्साह कई गुणा बढ़ जाता है और यही उत्साह उनके अगले मैच में टॉनिक का काम करता है.

शायद ऑस्ट्रेलिया का यही टॉनिक खत्म हो गया है. बॉल टेंपरिंग के बाद सिर्फ दो अनुभवी खिलाड़ियों के जाने से  ऑस्ट्रेलिया की क्रिकेट सिर्फ बिखरी ही नहीं, उनका विश्वास भी खुद पर से पूरा उठ गया. क्रिकेट जगत में उस घटना के बाद पूरी टीम को भी कड़ी आलोचनाओं को सामना करना पड़ा था, जिसका असर अब उनके खेल पर दिखने लगा. टेंपरिंग के बाद टीम साउथ अफ्रीका से 3-1 से तो हारी ही, बल्कि पाकिस्तान से भी दो मैचों की सीरीज में 1-0 से हार का सामना करना पड़ा.

एशेज में ऑस्ट्रेलिया को मिली थी बड़ी जीत

टेंपरिंग से पहले टीम ने 4-0 से एशेज सीरीज में बड़ी जीत हासिल की थी. एशेज के हर मैच को टीम ने बड़े अंतर से जीता था. जहां पैट कमिंस और शॉन मार्श की बल्लेबाजी के अलावा मिचेल स्टार्क, हेजलवुड, कमिंस और नैथन लायन ने सिर्फ अपनी गेंदबाजी से जीत टीम को पहले टेस्ट मैच में 10 विकेट से जीत दिलाई थी. एडिलेड में हुए दूसरे टेस्ट में शॉन मार्श मैन ऑफ द मैच रहे थे. मार्श ने पहली पारी में नाबाद 126 रन बनाए थे, जबकि उम्सान ख्वाजा और टिम पेन ने अर्धशतक जड़े थे. गेंदबाजों में दोनों पारियों में लायन ने कुल 6 और स्टार्क ने 8 विकेट लिए. पर्थ टेस्ट में मिचेल मार्श ने 181 रन बाए थे.

हालांकि इस मैच में स्मिथ में 239 रन जड़े थे. ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाज स्टार्क 5, हेजलवुड 8, कमिंस 4 विकेट लिए. चौथा मैच ड्रॉ रहा था, जिसमें वॉर्नर का शतक और मिचेल मार्श का अर्धशतक रहा. जबकि गेंदबाज हेजलवुड, लायन और कमिंस भी सफल साबित हुए. एशेज सीरीज का पांचवां टेस्ट, जिसें कंगारुओं ने पारी को 123 रन से जीता था, वो सिडनी में खेला गया था. जिसमें ख्वाजा ने 171, शॉन मार्श ने 156, मिचेल मार्श ने 101 रन की पारी खेली थी. कमिंस ने दोनों पारियों में कुल 8 विकेट लिए थे.

हार की वजह है विश्वास की कमी

तो क्या स्मिथ और वॉर्नर के जाने के बाद इन खिलाड़ियों की भी धार चली गई या फिर अब इन्हें खुद पर विश्वास नहीं रहा. टीम के लिए 2018 की बात करें तो कुल 10 टेस्ट मैचों में सिर्फ 3 में ही जीत दर्ज पाई, जिसमें दो मैच टेंपरिंग से पहले जीत  गए थे. 2017 में ऑस्ट्रेलिया ने कुल 11 मैचों में से 6 में बड़ी जीत हासिल की थी, जबकि दो मैच ड्रॉ खेले थे. ऑस्ट्रेलिया के लिए कहा जाता था कि वो दुनिया की सबसे संयोजित टीम हैं. वो अपने किसी एक खिलाड़ी  पर निर्भर नहीं रहती है. जरूरत के अनुसार अपने महान खिलाड़ियों को भी बाहर का रास्ता दिखा देती है. स्टीव वॉ और रिकी पोंटिंग इसी के उदारहण रहे हैं.   लेकिन यहां आंकड़े तो कुछ और ही कह रहे हैं. पूरी टीम सिर्फ दो खिलाड़ियों पर निर्भर दिख रही है. वो नहीं तो टीम को खुद पर विश्वास नहीं, वो साथ में तो टीम अति आत्म विश्वासी हो जाती है. दोनों ही मामले में नुकसान टीम ही झेल रही है.

जीत के लिए जरूरी है सही एटीट्यूड

विश्वास का बनना और उसका टूट जाना  खिलाड़ी और उसके खेल को कितना प्रभावित कर देता है, उसका एक जीता जागता उदाहरण टाइगर वुड्स हैं. वुड्स कई साल अपने निजी जिंदगी में विवाद में इतने फंस गए कि शायद उनका खुद पर से विश्वास उठ गया और मैदान पर वापसी तो की, लेकिन पुरानी लय हासिल नहीं कर पाए. वहीं इसके उलट खुद पर विश्वास की एक मिसाल संदीप सिंह है.  गोली लगने से पैरालाइज होने के बाद भी मैदान पर जोरदार वापसी की और मिसाल कायम किया.

विश्वास से भरी टीम या खिलाड़ी आधा मुकाबला तो अपने एटीट्यूड से ही जीत जाती है. 2015 में मिचेल जॉनसन ने अपनी मूंछों तक से सामने वाली टीम के मन में खौफ पैदा कर दिया था. महेन्द्र सिंह धोनी पर बनी बायोपिक  M.S. Dhoni : The Untold Story में धोनी का किरदार निभा रहे सुशांत सिंह राजपूत ने पंजाब के खिलाफ मैच हारने के बाद एक बात कहीं थी, वो ये कि  दिन का मैच खत्म होने के बाद उनकी टीम ने जब कानों में हेडफोन लगाकर वापस जा रहे युवराज सिंह (फिल्म में युवराज का किरदार निभा रहे) को पीछे मुड़कर देखा, उसी पल वह लोग मैच हार गए थे. वर्तमान ऑस्ट्रेलियन टीम के साथ भी ऐसा ही है. वे मैदान से बाहर ही मैच हार गए थे.