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भारत-ऑस्ट्रेलिया, दूसरा टेस्ट: दूसरे दिन नहीं लग सका नॉक आउट पंच

अब भी ऑस्ट्रेलिया के हैं बेहतर हालात, लेकिन भारत मुकाबले से बाहर नहीं

Prem Panicker

ऑस्ट्रेलिया ने दूसरे दिन का अंत मजबूत स्थिति में किया है. 48 रन आगे है. चार विकेट हाथ में हैं. पिच में असमान उछाल और जबरदस्त टर्न है. इसे दूसरी तरह से देखना चाहिए. परंपरागत तरीके से देखें, तो ऐसे विकेट पर दूसरा दिन बल्लेबाजी के लिए श्रेष्ठतम होता है.

पहले दिन भारत की ‘दरियादिली’ की वजह से ऑस्ट्रेलिया को ऐसे माहौल का पूरा फायदा उठाने का मौका मिला. दूसरे दिन का खेल शुरू होने से पहले ही उसने भारत के छोटे से स्कोर के सामने स्कोर बोर्ड पर 40 रन अंकित कर लिए थे. उसके दसों विकेट सुरक्षित थे.


पूरे दिन में ऑस्ट्रेलिया ने 90 ओवर में 197 रन और जोड़े. उसके छह विकेट गिरे. किसी और दिन, किसी और हालात में इतने रन बने होते तो कहा जाता कि भारत का दबदबा रहा. किसी टॉप टेस्ट टीम को पूरे दिन के खेल में 200 रन भी न बनाने देना शानदार ही कहा जाएगा.

लेकिन ये आंकड़े दो टीमों बीच का फर्क भी बताते हैं. भारत एक बार फिर पूरा दिन खेल पाने में नाकाम रहा. ऑस्ट्रेलिया के लिए हालात भले ही उसकी पसंद के लिए नहीं थे, फिर भी उसने अपने काम को सही तरीके से अंजाम दिया. पूरी दृढ़ता के साथ बल्लेबाजी की कोशिश की. उनमें पिच पर टिकने की इच्छा नजर आई. जितनी देर तक संभव हो, उन्होंने खेलने की कोशिश की. इस बीच उन्होंने भारत की कसी हुई गेंदबाजी के दबाव को झेलने की पूरी कोशिश की.

रेनशॉ और शॉन मार्श ने दिखाया जुझारू खेल

सबसे पहले श्रेय मैट रेनशॉ को जाता है. उन्होंने मुश्किल हालात में मैच्योरिटी के साथ बल्लेबाजी की. बावजूद इसके कि वो पहली बार भारत आए हैं. इस तरह के माहौल में खेलने का उनका पहला अनुभव है. ऐसे माहौल को हैंडल करने में तो तमाम बड़े खिलाड़ी फेल हुए हैं.

इसके बाद श्रेय जाता है शॉन मार्श को. उनके चयन पर अब भी सवालिया निशान लगा हुआ था. उन्होंने अपनी सीमितताओं में रहते हुए प्रदर्शन किया. बहुत कम स्ट्रोक्स खेले. सिर्फ तब, जब गेंदबाजों ने उन्हें इसके लिए मौका दिया. पूरे समय धैर्य के साथ उन्होंने बैटिंग की. रेनशॉ के बाद उन्होंने एंकर का रोल संभाला.

भारतीय गेंदबाजों ने की कसी हुई गेंदबाजी

भारतीय गेंदबाजों ने खासतौर पर पहले सत्र में कसी हुई गेंदबाजी की. पेस और स्पिन के बीच उन्होंने पहले सत्र के 29 ओवर्स में 47 रन दिए. उन्हें वॉर्नर और स्मिथ के विकेट मिले. दूसरा सेशन घरेलू टीम के लिए बराबर का अच्छा रहा. 35 ओवर में 76 रन बने और तीन विकेट गिरे. खासतौर पर तेज गेंदबाज प्रभावशाली रहे. उनसे बहुत लंबे स्पैल करवाए गए. इशांत ने दिन की शुरुआत लगातार छह ओवर से की थी. उसके बाद  उमेश ने लगातार आठ ओवर किए. गर्म दिन में इतनी लंबी गेंदबाजी की और कभी रफ्तार में कमी नहीं आने दी.

अश्विन कुछ हिस्सों में अच्छे दिखाई दिए. उन्होंने अथक प्रयास किया. 41 ओवर में 71 रन दिए. कसी हुई गेंदबाजी की. जब भी ओवर द विकेट बाएं हाथ के बल्लेबाज को बॉलिंग की, स्टंप के बाहर रफ से उन्होंने फायदा उठाया. लेकिन भले ही वो खतरनाक दिखे, उसके बाद बावजूद विकेट झटकने में कामयाब नहीं हो सके. वो ऐसा नहीं दिखे, जिससे वो विपक्षी टीम को झकझोरते दिखाई दें. जडेजा से कम गेंदबाजी कराई गई, जो हैरत की बात रही. एक तो पहले ही भारत के पास चार ही गेंदबाज हैं. दूसरा, जडेजा यकीनन सबसे कामयाब हैं.

मैदान पर भारत का प्रदर्शन इस सीरीज के किसी भी दिन से बेहतर रहा. लेकिन वो इसलिए, क्योंकि बाकी दिनों के प्रदर्शन इतने खराब थे. दो मौके चूके. कुछ पर कोशिश नहीं की गई, क्योंकि फील्डर्स ने प्रतिक्रिया में देर कर दी. इससे ऊपर, उन्होंने अपने दो रिव्यू बहुत गलत तरीके से इस्तेमाल किए. तीसरे दिन के लिए उन्होंने कुछ नहीं छोड़ा.

मैच का दूसरा दिन ऐसा था, जो टेस्ट का नतीजा तय करता दिख रहा था. हालांकि पूरी तरह ऐसा नहीं हो पाया. दोनों टीमें कोई नॉक आउट पंच नहीं लगा पाईं. हालांकि बैलेंस के हिसाब से यकीनन ऑस्ट्रेलिया बेहतर स्थिति में है. बढ़त 50 के  करीब है. विकेट अब भी हाथ में हैं. उन्हें ये भी पता है कि उनके गेंदबाज इस हालात का फायदा उठा सकते हैं. शायद, भारत ने अब तक जितना फायदा उठाया है, उससे कहीं बेहतर.