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भारत-ऑस्ट्रेलिया टेस्ट: ड्रॉ नहीं, अच्छी क्रिकेट की जीत है ये

भारत की खराब गेंदबाजी नहीं, ऑस्ट्रेलिया की दृढ़ता की भी बात कीजिए

Prem Panicker

रवींद्र जडेजा जन्मजात चालाक हैं. किसी पूर्वजन्म में वो स्तरीय जेबकतरे रहे होंगे. पिछले जन्म के कर्म ही होंगे कि वो इंटरनेशनल क्रिकेट में डॉज देने में इतनी महारत रखते हैं. जिस गेंद पर उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई कप्तान को आउट किया, उसमें एक किस्म का जादू और छकाने वाली क्षमता थी. स्टीव स्मिथ ने इस मैच में 420 गेंद ऐसी खेलीं, जिनमें भारतीय उन्हें छका नहीं सके. सुबह की 67 गेंदें पहली पारी की 361 गेंदों का एक्सटेंशन मालूम हो रही थीं.

जडेजा ने स्मिथ को 25 गेंदें कीं. इन गेंदों ने स्मिथ को क्रीज के टॉप पर बांधे रखा. उसी समय जैसे ऐलान किया गया – मैं ओवर द विकेट गेंद करने आ रहा हूं. रफ पर गेंद करूंगा और तुम्हारे ऑफ स्टंप की तरफ टर्न होगी. तुम क्या करोगे? ओह, पुजारा की तरह पैड से खेलोगे?


फिर मैं राउंड द विकेट आऊंगा. क्रीज के थोड़ा बाहर से. गेंद को ड्रिफ्ट मिलेगी. मैं तुम्हारे ऑफ स्टंप पर गेंद रखूंगा. गेंद बाउंस और टर्न होगी. पहली पारी में कमिंस और पिछली शाम लायन याद हैं? ओके.. तुम स्टंप्स को कवर करोगे और गेंद को बाहर टर्न होकर जाने दोगे?  मैं फिर ओवर द विकेट जाऊंगा. रफ में गेंद करूंगा. पैड पर. अगर तुम ऐसा करने की कोशिश करोगे तो मैं बार-बार यही कराऊंगा.

जडेजा ने स्मिथ को ऑटोमेटिक जवाब देने वाले मोड में डाल दिया. पैड को लंबी दूरी तक लेकर जाओ. गेंद को लाइन से बाहर रखो. फिर उन्होंने स्मिथ कि जेब में इस तरह हाथ डाला कि गेंद को थोड़ा छोटा रखा. स्मिथ का पैड आगे आया. वो लेंथ में हल्के से बदलाव को पढ़ नहीं पाए. गेंद पैड से थोड़ा दूर गिरी और उसे टर्न लेने का मौका मिला. टर्न लेकर गेंद स्मिथ के डिफेंस को छकाते हुए ऑफ स्टंप पर जा लगी. स्मिथ खड़े होकर गेंद को स्टंप मे लगते देखते रहे.

मैंने ट्विटर और कमेंटरी बॉक्स में सुना – ‘ब्रेन फेड’. ये शब्द बल्लेबाज के लिए भी सही नहीं है और गेंदबाज के लिए भी. स्मिथ को दिमाग और तकनीक में छकाया गया. उनसे ऐसा सवाल पूछा गया, जिसका उनके पास जवाब नहीं था. इसके बावजूद कि वो टेस्ट में 427 गेंद पहले खेल चुके थे. उनसे गेंदबाजों और विकेट ने तरह-तरह के सवाल पूछे थे.

जडेजा ने ऑस्ट्रेलियाई कप्तान को फेंकी 25वीं गेंद पर विकेट लिया. लेकिन उन्होंने उससे पहले 24 गेंदों को किसी सर्जिकल स्किल की तरह किया था. लगातार वो स्मिथ की तकनीक से सवाल पूछते रहे. स्मिथ के तकनीक की हल्की सी कमजोरी को उन्होंने पकड़ा. आखिर उन्हें कामयाबी का रास्ता मिला.

शायद ये विकेट भारत के लिए सबसे कीमती था. स्मिथ ऐसी क्षमता वाले बल्लेबाज हैं, जिनके क्रीज पर रहते हुए समय मानो थम जाता है. ये विकेट कमाल का था. इसके दो गेंद पहले भी ऐसा विकेट आया, जो टेस्ट क्रिकेट को छोटी-छोटी कहानियों से और धनवान बनाता है.

इशांत शर्मा गेंदबाजी कर रहे थे. उनके स्पैल का पांचवां ओवर था. वो कसी हुई गेंदबाजी कर रहे थे. लेकिन सामने वाली टीम को झकझोरने वाले नहीं दिख रहे थे. कमेंटेटर लगातार कह रहे थे कि अश्विन को गेंदबाजी दी जाए. अश्विन जल्दी आएं और मैच खत्म करें, ताकि हम घर जा सकें... कुछ ऐसी सोच थी.

इशांत पहली गेंद के लिए दौड़कर आए. गेंद करने ही वाले थे कि मैट रेनशॉ स्टंप्स से हट गए. साइटस्क्रीन की तरफ इशारा कर रहे थे वो. झल्लाए हुए गेंदबाज ने खुद को रोका नहीं और गेंद को विकेट कीपर की तरफ फेंके. फिर मुस्कुरा रहे रेनशॉ को कुछ कहा. उसके बाद स्मिथ से और ज्यादा बात हुई. बाकी खिलाड़ी भी आए. अंपायर को बीच में आना पड़ा. इस घटना ने मैच को थोड़ा जगा दिया. इशांत में भी जैसे ऊर्जा भर दी.

गोरान इवानिसेविच ने एक बार कहा था कि कई गोरान है. एक अच्छा गोरा. एक बुरा गोरा. एक इनके बीच के शेट वाला. इशांत में सिर्फ दो इशांत हैं. एक सज्जन और दूसरा नाराज वाला संस्करण. यहां वो दूसरे यानी नाराज वाली ओर स्विच कर गए. उसमें रफ्तार थी. उसमें दिशा थी. उसमें खौफनाक उछाल थी. रेनशॉ को बैक फुट पर ले गए. उन्हें एक बार शरीर के पीछे गेंद लगी. फिर चेहरे तक गेंद उठी.

अब तक रेनशॉ बड़े सहज दिखाई दे रहे थे और आगे आकर खेल रहे थे. आखिर वो हिल गए. वो मुस्कान गायब हो गई. इशांत ने इसे और बढ़ाया. जुबान और आंखों का इस्तेमल किया. ऐसा लग रहा था कि आंखों से गोली मार देंगे. इसके बाद वो गेंद आई, जिस पर विकेट मिला. फुल, लेट रिवर्स स्विंग के साथ... पूरी रफ्तार. इससे उन्होंने रेनशॉ के डिफेंस को भेद दिया. गेंद पैड पर लगी.

इस पूरी घटना ने करुण नायर की याद दिलाई. इसी मैच में नायर ने हेजलवुड को परेशान किया था. तब हेजलवुड जैसे आराम से सिर्फ ओवर खत्म करने के लिए गेंदबाजी कर रहे थे. जैसे ही करुण नायर के व्यवहार से परेशान हुए, उन्होंने बाउंसर डालने शुरू किए, जिससे विकेट मिला. इससे आप सोचने पर मजबूर होते हैं कि खुद को प्रेरित करने या के लिए बाहरी घटना की जरूरत क्यों होती है. आपके अंदर तो आग धधकती रहनी चाहिए ना? वाकई क्रिकेटर अजीब होते हैं.

क्रिकेट प्रशंसकों के बारे में भी ऐसा कहा जा सकता है. लंच के बाद के सेशन में मेरा फोन लगातार बजता रहा. मैसेज आते रहे. एक ही बात थी. भारत खराब बॉलिंग कर रहा है. भारत ने मैच को फिसलने का मौका दिया. इससे ठीक 24 घंटे पहले ऋद्धिमान साहा और चेतेश्वर पुजारा कमाल की बल्लेबाजी कर रहे थे. कमिंस की रफ्तरा और ओ’कीफ की सटीक गेंदबाजी के सामने वो पारी संवार रहे थे. गेंद को मेरिट पर खेल रहे थे. एक दिन बाद विपक्षी बल्लेबाज वैसा ही कुछ कर रहे थे, तो उसे खराब गेंदबाजी कहा जाने लगा. क्रिकेटर और प्रशंसक वाकई एक-दूसरे के लिए ही बने हैं.