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भारत-ऑस्ट्रेलिया टेस्ट : एक कनपुरिए का चाइनामैन तक सफर वाया धर्मशाला

कहानी कुलदीप यादव की... कैसे कानपुर का ये गेंदबाज बना धर्मशाला का हीरो

Rajeev kumar Mishra

कानपुर वालों को कनपुरिया कहा जाता है. शनिवार का दिन क्रिकेट में कनपुरिये का ही था. कहते हैं मेहनत कभी बेकार नहीं जाती. कनपुरिये चाइनामैन गेंदबाज कुलदीप यादव के मामले में यह साबित हो चुका है. 17 साल की उम्र से प्रथम श्रेणी क्रिकेट में धूम मचाने वाले इस फिरकी गेंदबाज को आखिरकार क्रिकेट के शीर्ष पर टैलेंट दिखाने का मौका मिल ही गया. हालांकि पद्माकर शिवालकर, राजिंदर गोयल और राजेंदर सिंह हंस जैसे अपवाद भी भारतीय क्रिकेट में मौजूद हैं. भरपूर टैलेंट के बावजूद इनके लिए चयनकर्ताओं ने कभी टेस्ट क्रिकेट के दरवाजे नहीं खोले.

उत्तर प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन  (यूपीसीए) को कुछ साल पहले तक टैलेंट की खान कहा जाता था. लेकिन गोपाल शर्मा, मोहम्मद कैफ, सुरेश रैना, आरपी सिंह, पीयूष चावला, प्रवीण कुमार, सुदीप त्यागी, भुवनेश्वर कुमार जैसे अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी देने के बाद अचानक इस पावर हाउस से खिलाड़ी निकलना बंद हो गए. कुलदीप ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ धर्मशाला में सीरीज के चौथे टेस्ट में डेब्यू कर इस सन्नाटे को खत्म कर दिया. 22 वर्षीय कुलदीप को यहां तक पहुंचने के लिए पांच साल इंतजार करना पड़ा.


कुलदीप की कामयाबी में स्कूल का योगदान

कुलदीप की इस सफलता के पीछे एक ऐसा इंसान भी है, जिसने उसके खेल को तराशने के लिए इस खिलाड़ी की मदद की. वो भी पर्दे के पीछे से. सच मायने में कानपुर के केडीएमए में स्कूलिंग के दौरान सबसे पहले कुलदीप की प्रतिभा को स्कूल के चेयरमैन डॉ. संजय कपूर ने परखा. उन्होंने कुलदीप को न सिर्फ नई किट दिलवाई बल्कि स्कूल के कोच मनीष मेहरोत्रा से विशेष तौर पर क्रिकेट की बारीकियां भी सिखवाईं. इतना ही नहीं, टूर्नामेंट खेलने के लिए आर्थिक मदद भी खूब की. लेकिन अंडर-19 विश्व कप, आईपीएल और रणजी स्तर तक पहुंचाने का काम स्थानीय अकादमी के उसके कोच कपिल पांडे ने किया.

अंडर-19 क्रिकेट में हैट्रिक लगाकर बटोरी सुर्खियां

अंडर 19 विश्वकप में स्कॉटलैंड के खिलाफ हैट्रिक लगाकर सबसे पहले चर्चा में आए 22 साल कुलदीप को भारत के 288वें टेस्ट खिलाड़ी बनने से पहले कई मैचों में टूरिस्ट खिलाड़ी की भूमिका निभानी पड़ी. 2014 में वेस्टइंडीज के खिलाफ सीरीज के लिए उनका चयन तो हुआ, लेकिन एक भी मैच में खेलने का मौका नही मिला. इसी साल बांग्लादेश के खिलाफ भी वह सीनियर्स के साथ ड्रेसिंग रूम ही शेयर करने तक सीमित रहे.

मौजूदा सीरीज के पहले तीन टेस्ट भी इंतजार में निकल गए. अगर कप्तान विराट कोहली घायल न होते तो शायद यह सीरीज भी टीम के साथ घूमते हुए खत्म हो जाती. लेकिन विराट की इंजरी ने सुबह इस युवा खिलाड़ी को अचानक उसके लक्ष्य तक पहुंचा दिया.

कुलदीप भारत के लिए खेलने वाले पहले चाइनामैन गेंदबाज हैं. अपने चौथे ओवर की पहली ही गेंद पर जब कुलदीप ने जमे हुए डेविड वॉर्नर को आउट किया तो टीवी पर मैच देख रहे उनके कोच कपिल पांडे जोश में उछल पड़े. बोले इस लड़के में गजब का आत्मविश्वास है. तब जरूर तकलीफ होती थी जब घरेलू क्रिकेट में खूब विकेट लेने के बावजूद उसे मौका नहीं मिल रहा था. लेकिन देर आए दुरुस्त आए. अगर कप्तान ने भरोसा कायम रखा तो कुलदीप स्पिन गेंदबाजी में नया इतिहास लिख सकता है.

तेज गेंदबाजी से चाइनमैन तक का सफर

कोच ने बताया कि जब यह लड़का हमारी अकादमी में आया था, तब तेज गेंदबाजी किया करता था. लेकिन एक दिन नेट पर चाइनामैन डालते देखा तो मैंने उससे कहा कि यही तुम्हारे कॅरियर को चमकाएगी. तब से कुलदीप पूरी लगन के साथ अपने इस हथियार को चमकाने में जुट गया. प्रैक्टिस के दौरान उसने कभी घंटों का हिसाब नहीं रखा. उसकी मेहनत का नतीजा आज सबके सामने है.

बेटे के खेल से गदगद हुए मां-बाप

पिता राम सिंह यादव और मां ऊषा को जब सुबह पता चला कि उनके बेटे को प्लेइंग इलेवन में शामिल कर लिया गया है तो मारे खुशी के उनके आंसू छलक पड़े. पिता बोले कुलदीप मौका न मिलने पर अक्सर निराश हो जाया करता था. तब हम सब मिलकर उसकी हिम्मत बंधाते थे. समझाते थे कि यह क्रिकेट का शीर्ष है जहां पहुंचना आसान नहीं होता. तुम तो लक्ष्य के करीब पहुंच चुके हो, इसलिए दुगने जोश के साथ तैयारी करना शुरू कर दो.

उन्होंने कहा कि हमें खुशी है कि आज मेरे बच्चे ने अपने कोच और शुभचिंतकों को गौरवान्वित कर दिया है. हमारी दुआ है कि अब वह कभी पलटकर न देखे और आगे बढ़ता जाए.

एक कनपुरिये का तेज गेंदबाजी से होते हुए चाइनामैन बॉलर बनने का सफर पहले टेस्ट में चार विकेट लेने पर पूरा हुआ. लेकिन ये महज एक पड़ाव है. कुलदीप को अभी कामयाबी का लंबा सफर तय करना है.