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भारत-ऑस्ट्रेलिया टेस्ट: अरसे तक याद रहेगी ‘दीवार’ की ये पारी

पुजारा ने 11वां टेस्ट शतक जमाकर भारत को मैच में बनाए रखा

Manoj Chaturvedi

भारतीय क्रिकेट में लंबे समय तक त्रिमूर्ति यानी सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और वीवीएस लक्ष्मण का जलवा रहा है. इस दौरान भारतीय टीम जब भी मुश्किल में दिखी तो राहुल द्रविड़ खूंटा गाड़कर डट जाते थे. इसलिए ही उन्हें दीवार का नाम दिया गया. लेकिन अब टीम इंडिया में दीवार की जिम्मेदारी चेतेश्वर पुजारा निभा रहे हैं.

टीम इंडिया के पुणे टेस्ट में बुरी तरह से हारने के बाद बेंगलुरु टेस्ट में जीत दिलाकर सीरीज में बराबरी पर लाने में एक बार फिर पुजारा ने अहम भूमिका निभाई थी. तब उन्होंने 92 रन की पारी खेलने के दौरान अजिंक्य रहाणे के साथ 118 रन की साझेदारी निभाकर जीत का आधार बनाया था. पुजारा रांची में खेले जा रहे तीसरे टेस्ट में एक बार फिर टीम इंडिया के संकट मोचक साबित हुए हैं. वह 130 रन बनाने के बाद भी भारत को ऑस्ट्रेलिया से आगे ले जाने के लिए मोर्चा संभाले हुए हैं.


भारत को संकट से निकालने वाली पारी

रांची टेस्ट में चेतेश्वर की बल्लेबाजी को सालों याद किया जाएगा. लोकेश राहुल, मुरली विजय, विराट कोहली और अजिंक्य रहाणे के आउट होने के समय भी भारत को ऑस्ट्रेलिया के स्कोर तक पहुंचने के लिए 175 रन की जरूरत थी. पर पुजारा ने नाबाद 130 रन की पारी खेलकर टीम इंडिया को किसी हद तक संकट से निकाल लिया है.

पुजारा की इस पारी का महत्व इसलिए भी है क्योंकि उनकी इस पारी के बिना भारत हार की तरफ बढ़ सकता था, ऐसा होने पर ऑस्ट्रेलिया 2004 के बाद पहली बार सीरीज जीतने की तरफ बढ़ सकती थी. लेकिन पुजारा के प्रयासों ने ऑस्ट्रेलियाई उम्मीदों को किसी हद तक थाम दिया है. बल्कि टीम इंडिया को पलटवार करने की स्थिति में पहुंचा दिया है. पुजारा के यह कॅरियर का 47वां टेस्ट है और उन्होंने 51.67 के औसत से 3669 रन बनाए हैं.

पुजारा ने जमाया 11वां टेस्ट शतक

इस टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया के साढ़े चार सौ पार रन का स्कोर बनाने के बाद टीम इंडिया के लिए जब मुश्किल दौर आया तो पुजारा फिर से विकेट पर खूंटा गाड़कर खड़े हो गए. कॅरियर का 11वां टेस्ट शतक जमाकर टीम इंडिया को संकट से ही नहीं निकाला है, बल्कि मैच में बनाए रखा है. मुरली विजय और लोकेश राहुल के अर्धशतक जमाने के बाद पुजारा ने शानदार शतक जमाकर साबित किया कि इस विकेट पर संयम के साथ खेला जाए तो लंबी पारी खेली जा सकती है.

पुजारा ने मजबूती के साथ डिफेंस करने के अलावा ढीली गेंदों को बाउंड्री के पार पहुंचाने में कोई गुरेज नहीं किया. सच यह है कि पुजारा खेलते समय अपनी खामियों को अच्छी तरह से जानकर खेलते हैं. सच में उनके सामने विकल्प कम ही रहते हैं पर वह इन स्थितियों का भी भरपूर फायदा उठाकर द्रविड़ वाली भूमिका को बखूवी निभाकर टीम के संकट मोचक बन गए हैं.

चेतेश्वर पुजारा ने 2010 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बेंगलुरु में टेस्ट कॅरियर की शुरुआत करने के साथ ही अपने खेल से प्रभावित करने में सफल रहे. लेकिन इसके बाद भी उन्हें अगला टेस्ट खेलने के लिए अगस्त 2012 तक का इंतजार करना पड़ा. न्यूजीलैंड के खिलाफ हुई इस सीरीज के हैदराबाद में खेले गए टेस्ट में पहला शतक (159) बनाया.

इसी साल इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज में अपना दोहरा शतक जमाने में सफल हो गए. लेकिन एक समय ऐसा भी आया, जब यह माना जाने लगा कि पुजारा के खेल की चमक कम होने लगी है. इस कारण ही वेस्ट इंडीज दौरे पर तीसरे टेस्ट के दौरान उन्हें टीम से ड्रॉप कर दिया गया. लेकिन पुजारा की यह खूबी रही है कि जब भी उनकी काबिलियत पर शक किया गया तो उन्होंने घरेलू क्रिकेट में रनों का अंबार लगाकर चयनकर्ताओं का मन मोह लिया है.

वेस्ट इंडीज में टीम से बाहर होने के बाद यह उनका सौभाग्य था कि उन्हें विराट कोहली जैसे कप्तान और अनिल कुंबले जैसे कोच मिले. उन्हें आश्वस्त किया गया कि रंगत में लौटने पर उन्हें टीम में तीसरे नंबर पर ही खिलाया जाएगा. इस आासन की वजह से ही पुजारा ने टीम में वापसी करने के बाद एक के बाद एक जोरदार प्रदर्शन करके टीम इंडिया को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने में भरपूर मदद की. पुजारा ने श्रीलंका के खिलाफ सीरीज में वापसी की और पहले ही टेस्ट में शतक ठोक दिया. उन्होंने न्यूजीलैंड के खिलाफ पिछली सीरीज में एक शतक से 373 रन बनाने के बाद इंग्लैंड के खिलाफ दो शतक से 401 रन बनाए.