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यह भारतीय स्पिनर्स की कामयाबी नहीं, कंगारुओं की नाकामी है

बेहतर स्पिनर्स के साथ खेलने के बावजूद पहले खराब था भारत का रिकॉर्ड

Manoj Chaturvedi

भारत-ऑस्ट्रेलिया सीरीज बस चंद दिन दूर है. हर कोई बात कर रहा है कि अश्विन और रवींद्र जडेजा मिलकर कैसे भारत को जिताने में अहम रोल निभाएंगे. लेकिन भारत के पास इन दो से बेहतर स्पिन चौकड़ी पहले थे. तब तो उन्होंने इतना अहम रोल नहीं निभाया. आखिर क्या बदला है इन दिनों में?

माना जाता है कि बिशन सिंह बेदी, इरापल्ली प्रसन्ना, भगवत चंद्रशेखर और एस. वेंकटराघवन की चौकड़ी के खेलने का समय भारतीय स्पिन का स्वर्णकाल था. लेकिन इस चौकड़ी के दौरान ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ घर में खेली गई सीरीज को देखें तो उनका ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों पर बहुत दबदबा नजर नहीं आता है. यही वजह है कि इनके दौरान भी भारतीय टीम सीरीज हारती रही.


इसके मुकाबले हम देखें तो अनिल कुंबले, हरभजन सिंह और इसके बाद रविचंद्रन अश्विन के समय में भारतीय टीम ज्यादा बेहतर परिणाम निकालती रही है. इसकी वजह यह भी है कि उस चौकड़ी के समय में ऑस्ट्रेलिया टीम के पास भी शानदार स्पिनर हुआ करते थे और उनके बल्लेबाज भारतीय स्पिनरों का सामना करने में सक्षम थे.

ऑस्ट्रेलिया का भारत में रिकॉर्ड

ऑस्ट्रेलिया ने 2004-05 में भारत से सीरीज जीती थी. इसके बाद वह उन्हें कभी उनके घर में हराने में कामयाब नहीं हो सका है. भारत ने 2008, 2010 और 2013 में ऑस्ट्रेलिया से सीरीज जीती हैं. भारत ने ये सभी सीरीज स्पिन आक्रमण के दम पर जीती हैं. इन आंकड़ों से लगता है कि हमारे मौजूदा और कुंबले और भज्जी कहीं स्पिन चौकड़ी से बेहतर तो नहीं थे. पर हम जब चौकड़ी के विदेश में किए प्रदर्शन पर नजर डालते हैं तो अश्विन और जडेजा की स्पिन जोड़ी से वे बहुत बेहतर नजर आते हैं.

पिछले जमाने के स्पिनर्स का प्रदर्शन

बिशन सिंह बेदी ने 266 में से 129, प्रसन्ना ने 189 में से 94, भगवत चंद्रशेखर ने 242 में से 100 विकेट निकाले. यही नहीं, चंद्रशेखर तो भारत को विदेश में पहली सीरीज जिताने वाले गेंदबाज हैं. उन्होंने 1971 में ओवल टेस्ट में 38 रन पर छह विकेट निकालकर इंग्लैंड पर जीत दिलाई थी. इसके अलावा वह भारत को 1978 में ऑस्ट्रेलिया पर पहली जीत दिलाने वाले भी हैं. उन्होंने 104 रन पर 12 विकेट निकालकर भारत को यह जीत दिलाई थी.

इस चौकड़ी की तरह ही टीम इंडिया के मौजूदा कोच अनिल कुंबले और हरभजन सिंह ने भारत को विदेशी भूमि पर तमाम सफलताएं दिलाई. कुंबले जबर्दस्त वेरिएशन से और हरभजन उछाल वाले विकेट पर कमाल की गेंदबाजी करके यह सफलताएं पाते रहे. कुंबले ने अपने 619 में से 269 विकेट विदेशी भूमि पर लिए. वहीं हरभजन सिंह ने घर में खेले 52 टेस्ट में 258 विकेट के मुकाबले घर से बाहर 44 टेस्ट में 142 विकेट लिए हैं. लेकिन यही बात रविचंद्रन अश्विन और रविंद्र जडेजा के बारे में नहीं कही जा सकती है.

अश्विन और जडेजा ने क्या किया है घर के बाहर

विश्व क्रिकेट में सबसे तेजी से 250 विकेट लेने वाले अश्विन ने घर में 26 टेस्ट में 187 विकेट के मुकाबले विदेश में 16 टेस्ट में 67 विकेट लिए हैं. इसमें श्रीलंका के खिलाफ एक ही सीरीज में लिए 17 विकेट भी शामिल हैं. इन को तो भारतीय टीम के पिछले दक्षिण अफ्रीकी दौरे पर पहले टेस्ट में 42 ओवर फेंकने पर एक भी विकेट नहीं ले पाने पर दूसरे टेस्ट में बाहर बैठा दिया गया. इसी तरह जडेजा ने घर में 17 टेस्ट में 96 और बाहर आठ टेस्ट में 21 विकेट लिए हैं. पर सवाल यह है कि ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पिछले एक दशक में खेलने वाले स्पिनर बेदी-प्रसन्ना की चौकड़ी के मुकाबले कहीं ज्यादा सफल हुए हैं.

भारत ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पिछली तीन सीरीज 2-0, 2-0 और 4-0 से जीती हैं. वहीं प्रसन्ना-बेदी के काल में भारत ने ऑस्ट्रेलिया से 1964-65 में 1-1 से सीरीज ड्रॉ खेली और फिर 1969-70 में 1-3 से सीरीज हारी. ऑस्ट्रेलिया को 1969-70 की सीरीज जिताने में ऑफ स्पिनर एशले मैलेट ने अहम भूमिका निभाई. उन्होंने सीरीज में प्रसन्ना से बेहतर प्रदर्शन करते हुए 28 विकेट निकाले. इसी तरह 1959-60 की सीरीज में ऑस्ट्रेलिया को जिताने में जसू पटेल के 19 विकेट से ज्यादा ऑस्ट्रेलिया के लेगब्रेक गुगली गेंदबाज रिची बेनो ने 29 विकेट लिए.

यहां मेरे यह बताने का मतलब यह है कि लंबे समय तक ऑस्ट्रेलिया में शानदार स्पिन गेंदबाज होते रहे, जिसकी वजह से उसके बल्लेबाज भी पेस के साथ स्पिन खेलने में महारत रखते थे. इस कारण उन्हें भारत या इस उपमहाद्वीप में खेलने पर किसी तरह की दिक्कत नहीं होती थी. ऑस्ट्रेलिया में शेन वॉर्न के बाद विश्व स्तरीय स्पिनर निकलना कम हो गया और उन्होंने पेस के बूते सफलताएं पाने की रणनीति बनानी शुरू कर दी.

इसका परिणाम यह हुआ कि ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाज स्पिन खेलने में सक्षम नहीं रहे. यही वजह है कि वह पिछली तीन सीरीज से भारत में टेस्ट तक नहीं जीत पा रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया टीम की इस कमजोरी की वजह से विशेषज्ञ भारत की जीत की उम्मीदें लगा रहे हैं.