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भारत-ऑस्ट्रेलिया, रांची टेस्ट: वो पांच वजहें जिससे भारत नहीं जीत सका मैच

भारत ने ऐसा मुकाबला ड्रॉ खेला, जो जीता जा सकता था

Vedam Jaishankar

इतनी करीब, फिर भी इतना दूर. टेस्ट खत्म होने के बाद खराब सी फीलिंग. ये ऐसा मैच था, जो भारत जीत सकता था. इसके बजाय, ऑस्ट्रेलिया ड्रॉ से बच गया. बल्कि हार से उसने ड्रॉ निकाल लिया. भारत जीतकर 2-1 की सीरीज में बढ़त ले सकता था. बशर्ते वो कुछ बातें ठीक करता-

चार तेज गेंदबाज उतारना गलती


भारत की टीम. सिर्फ चार गेंदबाजों के साथ इस मैच में खेलना बहुत बड़ी गलती थी. टीम में शामिल छठे बल्लेबाज करुण नायर उतने रन नहीं बना पाए, जिसकी उम्मीद थी. भारतीय टीम चेतेश्वर पुजारा और ऋद्धिमान साहा की वजह से मुश्किलों से निकल पाई.

ऑस्ट्रेलिया की दोनों पारियों में भारत की ओर से जो गलती रही, वो थी पांचवें गेंदबाज की कमी. भुवनेश्वर कुमार जैसा मीडियम पेसर या कोई स्पिनर ऑस्ट्रेलियाई पारी को छोटा करने में मददगार साबित हो सकता था. लेकिन भारतीय थिंक टैंक पहले टेस्ट में हार के बाद रक्षात्मक हो गया है. रांची की पिच को ठीक से परखा नहीं जा सका. आखिर चार गेंदबाज से खेले, जो मेहमान टीम की पारी जैसे-जैसे आगे बढ़ी, थके हुए नजर आए.

पांचवीं सुबह दोनों छोर से स्पिनर नहीं लगाया

विराट कोहली पांचवीं सुबह दोनों स्पिनर्स को दोनों छोर से लगा सकते थे. ये वो वक्त था, जब ऑस्ट्रेलिया बचने की कोशिश कर रहा था. इसके बदले उन्होंने रवींद्र जडेजा की स्पिन और उमेश यादव की रफ्तार पर भरोसा किया. इसके बाद वो इशांत शर्मा को यादव की जगह लेकर आए. इस तरह उन्होंने एक तरह से रविचंद्रन अश्विन को सुबह पूरे सत्र में आक्रमण से हटाए रखा.

क्या अश्विन चोटिल थे? हम नहीं जानते. लेकिन सच यही है कि गेंदबाजी में उनका नहीं आने ने बल्लेबाज को पिच के सुलूक और रफ्तार का अंदाजा हो गया. वे आराम से मीडियम पेस गेंदबाजी के सामने नजरें जमाने में कामयाब रहे. यकीनन उन्हें जिस तरह टिकने का मौका दिया गया, उससे वे काफी संतोष महसूस कर रहे होंगे.

नजदीकी फील्ड पोजीशन को लेकर गलतियां

दो फील्डिंग पोजीशन ऐसी रही, जिसे कोहली ने पूरी तरह अनदेखा कर दिया. ये दो जगह हैं सिली पॉइंट और बैकवर्ड शॉर्ट लेग. मॉडर्न क्रिकेट में सिली पॉइंट का ज्यादा इस्तेमाल नहीं है, क्योंकि बल्लेबाज एलबीडबल्यू के डर से बैट-पैड शॉट कम खेलते हैं.

लेकिन इस जगह पर फील्डर लगाना बल्लेबाज के दिमाग से खेलता है. खासतौर पर क्रीज पर नए आए बल्लेबाज के लिए असर डालता है. दरअसल, भले ही कोहली सुबह लगातार बल्लेबाजों से बात कर रहे हों, लेकिन वो आक्रामक नहीं थे. इसी तरह लेग स्लिप पर एक या दो कैच पकड़े जा सकते थे. अजिंक्य रहाणे को बाद में बैकवर्ड शॉर्ट लेग पर लगाया गया. लेकिन वो हाफ चांस को कैच में बदल नहीं सके.

रहाणे की कप्तानी में कमजोर दिखी टीम इंडिया

पहली पारी में चोटिल कोहली की जगह रहाणे का कप्तानी करना भारत के लिए अच्छा नहीं रहा. वो बहुत सक्रिय नहीं रहे. गेंदबाजी में बदलाव बहुत अच्छे नहीं थे. एक समय उन्होंने उमेश यादव को तब हटाया, जब वो बहुत अच्छी गेंदबाजी कर रहे थे. उस समय वो एक या दो ओवर और करवा सकते थे. लेकिन उन्होंने यादव को हटाया, जिससे दबाव हट गया.

दरअसल, इस टीम में कप्तानी जैसी सोच वाले बहुत कम लोग हैं. कोहली के बारे में भी अभी भविष्य तय करेगा. रहाणे बहुत अच्छे कप्तान नहीं दिख रहे. शायद चेतेश्वर पुजारा या अश्विन या मुरली विजय उनसे बेहतर होते.

बल्लेबाजी में रवैया थोड़ा और आक्रामक होना चाहिए था

आक्रामक बल्लेबाजी शायद हालात को बेहतर करने में मदद करती. चेतेश्वर पुजारा ने यकीनन बेहतरीन बल्लेबाजी की. लेकिन 150 पर पहुंचने के बाद उन्हें और आक्रामक होना चाहिए थे. ये वो समय था, जब विपक्षी टीम थकी हुई और बिखरी हुई थी. साहा थोड़ा ज्यादा आक्रामक हो सकते थे.

बल्लेबाज जडेजा ने सही किया कि वो ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजी पर हमला बोलते रहे. ये कहा जा सकता है कि पुजारा और साहा के रक्षात्मक तरीके ने ऑस्ट्रेलियन टीम को सांस लेने का मौका दिया. अगर उन्होंने आक्रामक रुख अपनाया होता तो चौथी शाम ही ऑस्ट्रेलिया बड़े स्कोर के सामने दबाव में होता.

इसके बजाय उन्हें इकट्ठे होने का मौका दिया गया. पांचवीं सुबह उन्हें मुश्किलों से निकलने का मौका दिया गया. इस वजह से वे ड्रॉ करा पाए. भारत को अपनी आदत में शामिल करना होगा कि पहला मौका मिलते ही उसे हड़प लिया जाए. निर्दयी तरीका ही चैंपियन को बाकियों से अलग करता है.