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भारत-ऑस्ट्रेलिया, क्रिकेट: हैवीवेट बॉक्सिंग का ड्रामाई अंदाज लिए थी ये सीरीज

भारत ने किसी मैराथन के चैंपियन की तरह सीरीज में दर्ज की जीत

Prem Panicker

इस सीरीज को एक बॉक्सिंग के लेखक की जरूरत है. ऐसा लेखक, जिसने खेल के सबसे अच्छे दिनों को देखा है. जो खून और पसीने के बारे में लिख सके. जो दो बराबरी के चैंपियनों के बीच जीत की खुशी और हार के आंसुओं का बखान कर सके. कहानी बिल्कुल क्लासिक हैवीवेट बाउट जैसी. मजबूत चैंपियन रिंग में तैयार. उम्मीद कर रहा है आसान नॉक आउट का. उम्मीद नहीं है कि चैलेंजर इस कदर मजबूत पंच मारेगा, जैसा पुणे में हुआ. अगले गेम में जवाबी पंच, जिसने विपक्षी को धड़ाम किया, जैसा बेंगलुरु में हुआ.

उसके बाद बॉक्सिंग का वो राउंड हुआ, जिसमें एक-दूसरे की तकनीक परखी गई. उनका साइंस, स्किल, पांव और दिल की ताकत, पंच, खून का बहना.. सब हुआ, जैसा रांची में दिखाई दिया. इन सबने ड्रामे का फाइनल राउंड की तैयारी. एक-दूसरे को नॉक आउट पंच मारने की कोशिश. दोनों गिरकर उठते, ताकि अगला पंच लगा सकें.


इस तरह की बातें क्रिकेट लेखकों के लिए कम ही होती हैं. एक टेस्ट सीरीज एक तरफ जाती है या दूसरी तरफ. भारत-ऑस्ट्रेलिया सीरीज जैसी नहीं. यहां आखिरी दिन का खेल महज औपचारिकता थी. या यूं कहें कि जब दूसरे ओवर में स्टीव स्मिथ ने गेंद स्टीव ओ’कीफ की तरफ बढ़ाई, तो समझ आ गया कि महज औपचारिकता है. भारतीय कप्तान ऐसा करते हैं. जब मैच पूरी तरह हारने वाली स्थिति में होता है, तो वे अपने स्पिनर्स की तरफ गेंद बढ़ा देते हैं. जैसे ऐसा वेदों में लिखा हो.

ओ'कीफ को गेंद देकर खत्म की संघर्ष की उम्मीद

स्मिथ ने पहली स्लिप से जोश हेजलवुड का पहला ओवर देखा. गेंद दोनों तरफ स्विंग हुई. स्मिथ के पास पैट कमिंस थे. वे भारत को परेशान कर सकते थे. मुकाबला फाइनल राउंड के अंतिम मिनटों में पहुंचा सकते थे. लेकिन उन्होंने गेंद लेफ्ट आर्म स्पिनर ओ’कीफ की तरफ उछाल दी. शायद इसे भी ‘ब्रेन फेड’ कह सकते हैं.

स्पिनर के दूसरे ओवर में केएल राहुल ने जमकर मार लगाई. स्क्वायर ड्राइव किया. फिर स्वीप किया. विकेट के दोनों तरफ चौके लगाए. मैच के आखिरी दिन यही सवाल था कि क्या सीरीज के आखिरी दिन ऑस्ट्रेलियन टीम संघर्ष की क्षमता दिखाएगी? क्या वे वही कर पाएंगे जो एक रोज पहले भुवनेश्वर कुमार और उमेश यादव ने किया था? भारत ने ओ’कीफ के पहले ओवर में सात और दूसरे में नौ रन बनाए. यहीं से साफ हो गया कि भारतीय टीम अब आसानी के साथ मुकाबला जीत लेगी.

पैट कमिंस ने फिर किए आग उगलते ओवर

कमाल की सीरीज में एक और लम्हा आना था. ओ‘कीफ के दो ओवर के बाद कमिंस आए. पहली गेंद ही बाउंसर थी. ऑफ स्टंप से लेग की तरफ आई. राहुल फाइन लेग पर ग्लाइड करने गए. गेंद ग्लव से फ्लिक होकर वेड के पास चली गई. किसी ने अपील नहीं की. इस स्पैल में कमिंस ने मुरली विजय को क्लासिक फास्ट बॉलर की गेंद पर आउट किया. गेंद तीसरे और चौथे स्टंप के बीच थी. ऐसी गेंदें आपने न जाने कितनी बार देखी होंगी. लेकिन ये आपको आगे खींच लाती हैं कि बल्ले का बाहरी किनारा गेंद ले ले.

उन्होंने दबाव बनाए रखा. चेतेश्वर पुजारा ने वही करने की कोशिश की, जो उनके स्तर के बल्लेबाज करते हैं. एक रन लेकर दूसरे छोर पर चले जाना. उन्होंने कवर्स में गेंद खेली. मैक्सवेल के थ्रो पुजारा बहुत दूर रह गए. दोनों विकेट एक ओवर में निकले और एक बार फिर सवाल उठा कि अब क्या होने वाला है.

रहाणे और कमिंस के बीच रोचक जंग

इन विकेटों के बाद स्टेज तैयार हुआ आक्रामक तेज गेंदबाज और जवाबी हमला बोलने वाले बल्लेबाज के बीच मुकाबले का. टेस्ट क्रिकेट में इससे बेहतर क्या हो सकता है. अगले 15 मिनट कमिंस और रहाणे के बीच मुकाबला चला.

पारी के 16वे ओवर में कमिंस आए. फुल लेंथ गेंद ऑफ स्टंप के बाहर वाले चैनल में की. रहाणे ने फ्रेंट फुट पर आकर मिड ऑफ बाउंड्री की तरफ बेहतरीन शॉट खेला. अगली गेंद फास्ट बॉलर का टिपिकल जवाब था. बाउंसर. रहाणे हुक करने गए, जो आमतौर पर भारतीय बल्लेबाज नहीं करते. परफेक्ट शॉट खेला. ये दो शॉट और कमिंस के अगले ओवर में एक और चौके ने दोनों खिलाड़ियों को चार्ज-अप कर दिया.

कमिंस ने लेग साइड पर हुक और पुल के लिए तीन खिलाड़ी लगाए. राउंड द विकेट सिर को निशाना बनाने वाले एंगल से आए. बाउंसर किया. रहाणे ने वो आक्रामकता दिखाई, जिसकी इस शांत खिलाड़ी से उम्मीद नहीं की जाती. मिड विकेट के ऊपर से खेला. हेलमेट के सामने से शॉट खेलना क्रिकेट में सबसे मुश्किल कहा जा सकता है.

इसके बाद कमिंस गेंद करने आए, तो रहाणे पहले ही लेग साइड में चले गए थे. ताकि ऑफ पर जगह बना सकें. बाउंसर का इंतजार किया. अपने अंगूठे पर खड़े हुए और कवर के ऊपर से छक्का लगाया.

आईपीएल में रहाणे के कप्तान स्टीव स्मिथ ने सिर पर हाथ रखा. गेंद को देखते रहे, जो बाउंड्री के ऊपर से दर्शकों के बीच जाकर गिरी. रहाणे की बैटिंग में ड्रामा था, तो राहुल बेहद शांत नजर आ रहे थे. डिफेंस मजबूत और स्ट्रोक्स में भरोसा. राहुल ने सीरीज का छठा अर्ध शतक जमाकर मैच खत्म किया.

जिसने नर्व्स पर काबू रखा, उसने जीती सीरीज

ऑस्ट्रेलिया ने लगातार जुझारूपन दिखाया. मैच में ज्यादातर समय वो आगे दिखे. लेकिन तीसरे दिन जैसे उनकी ऊर्जा खत्म हो गई, जिसका खामियाजा चौथे दिन भुगता. यही दो बराबरी की टीमों के बीच क्रिकेट मुकाबला होता है. जो अपनी भावनाओं और नर्व्स पर काबू रखता है, वो जीतता है.

भारत ने एक दूसरे खेल की तरह अपने आपको संवारा. वे किसी मैराथन रनर की तरह आए. सीरीज में ज्यादातर समय वो पेस सेटर के साथ नजर आए. जरूरी लम्हे का इंतजार किया. फिर अचानक पांव की ताकत दिखाई. ठीक उसी तरह, जैसे चैंपियन एथलीट दिखाते हैं. वे बढ़त लेते हैं. पांव और दिन दोनों में वो अपने विरोधी को मात देते हैं. वही भारत ने किया.