हैदराबाद टेस्ट से एक दिन पहले ही कप्तान विराट कोहली ने इशारा कर दिया था. घोषणा टेस्ट की सुबह हुई. तिहरा शतक जमाने वाले करुण नायर को टीम मे जगह नहीं मिली. करुण नायर वैसे भी तिहरा शतक मारने वाले भारत के सिर्फ दूसरे क्रिकेटर हैं. ऐसा कमाल करने वाले को टीम में जगह नहीं मिले, तो अजीब लगता है.
नायर की जगह बांग्लादेश के खिलाफ टेस्ट मैच में अजिंक्य रहाणे को लिया गया. कप्तान विराट कोहली ने कहा ही था कि किसी चोटिल खिलाड़ी के साथ ये अन्याय होगा, अगर चोट से उबरने के बाद उसे मौका न मिले. इसी के मद्देनजर रहाणे को मौका और नायर को निराशा मिली.
कमाल की चौकड़ी का हिस्सा बने नायर
नायर से पहले सिर्फ तीन बल्लेबाज हैं, जो तिहरे शतक के बाद अगला टेस्ट नहीं खेल पाए. एंडी सैंढम, लेन हटन और इंजमाम उल हक. सैंढम को तो उसके बाद कभी खेलने का मौका नहीं मिला. नायर ने इंग्लैंड के खिलाफ चेन्नई टेस्ट में नॉट आउट 303 रन बनाए थे. रहाणे ने राजकोट और विशाखापत्तनम टेस्ट खेला था. मोहाली टेस्ट में नायर को मौका मिला. मोहाली और मुंबई टेस्ट के बाद चेन्नई में उन्होंने तिहरा शतक जमाया था.
ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जहां किसी बड़े प्रदर्शन के बाद खिलाड़ी को बाहर बैठना पड़ा. यकीनन तिहरे शतक के बाद बाहर बैठना अलग किस्म का अनुभव है. केविन पीटरसन शतक के बाद बाहर हुए थे. उन पर दक्षिण अफ्रीकी टीम के साथियों को अपनी टीम के बारे मे मैसेज भेजने का आरोप था.
इसी तरह जेफ्री बॉयकॉट को दोहरे शतक के बाद ड्रॉप कर दिया गया था. बॉयकॉट ने भारत के खिलाफ वो पारी खेली थी. लेकिन धीमे खेलने के आरोप में उन्हें बाहर किया गया. हालांकि माना जाता है कि टीम मैनेजमेंट के साथ उनके रिश्ते बाहर किए जाने की वजह थी.
जेसन गिलेस्पी और अरविंद डिसिल्वा को मैन ऑफ द मैच होने के बाद टीम में जगह नहीं मिली. उनका करियर खत्म हो गया. भारत के नजरिए से इस तरह की कुछ घटनाएं हैं, जो करुण नायर से तो नहीं मिलतीं, लेकिन दिलचस्प जरूर हैं.
पाटिल की जगह अजहर आए और छाए
1984 में दिल्ली में इंग्लैंड के खिलाफ टेस्ट था. सुनील गावस्कर कप्तान थे. इस टेस्ट से दो खिलाड़ियों को टीम से ड्रॉप किया गया था. एक थे कपिल देव और दूसरे संदीप पाटिल. गावस्कर कई बार सफाई दे चुके हैं. लेकिन माना जाता है कि गावस्कर और कपिल देव के विवाद में संदीप पाटिल बलि का बकरा बने थे. पाटिल को खराब शॉट खेलकर आउट होने की वजह से टीम से बाहर कर दिया गया. उन पर अनुशासनात्मक कार्रवाई का सबसे बड़ा असर अजहरुद्दीन पर पड़ा.
अजहर को टीम में मौका मिला. उन्होंने अगले तीन टेस्ट मैचों में शतक जमाए. उसके बाद संदीप पाटिल की कभी वापसी नहीं हुई. अजहर का हम सब जानते हैं कि वो भारतीय टीम के कामयाब कप्तान बने. संजय मांजरेकर की चोट और नवजोत सिंह सिद्धू की घर वापसी ने 1996 के इंग्लैंड दौरे पर राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली के लिए रास्ते खोले. मांजरेकर उसके बाद बहुत कम खेले.
कई खिलाड़ी रहे हैं दुर्भाग्यशाली
इसी तरह मुरली कार्तिक ने मुंबई में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ भारत को जिताने में अहम रोल निभाया. वह मैन ऑफ द मैच रहे. लेकिन उसके बाद उन्हें सिर्फ एक मैच में मौका मिला. ऐसे तमाम उदाहरण हैं, जहां चोट की वजह से बाहर होना किसी का करियर खत्म करने वाला रहा. या किसी की चोट ने दूसरे को ऐसा मौका दिया, जो उसका करियर बदल गया.
हालांकि विराट कोहली के इस तर्क को गलत नहीं कहा जा सकता कि अगर कोई चोट की वजह से बाहर है, तो पहला मौका उसका ही बनता है. इसी नीति के तहत ऋद्धिमान साहा को फिट होते ही लाया गया. अब पता नहीं कि पार्थिव पटेल भविष्य में टेस्ट खेल पाएंगे या नहीं. जबकि उन्होंने साहा के चोटिल रहने के समय में अच्छा प्रदर्शन किया था.
उम्मीद करते हैं कि करुण नायर के साथ ऐसा कुछ नहीं होगा, जिससे उन्हें ‘बदकिस्मत’ की श्रेणी में रखा जाए. वो वापसी करेंगे. उम्मीद है कि चोट से लौटे अजिंक्य रहाणे भी अपने मौके भुनाएंगे.