view all

डीआरएस के टेस्ट में फेल हुई नंबर वन टीम इंडिया?

क्या भारत डीआरएस का सही उपयोग करने में नाकाम रहा है?

FP Staff

डिसीज़न रिव्यू सिस्टम यानि डीआरएस...ये नियम तो बनाया गया है ताकि क्रिकेट को और रोमांचक बनाया जा सके. किसी टीम को अंपायर के गलत फैसले का शिकार न होना पड़े लेकिन इस उपयोग कैसे किया जाए ये भारतीय टीम अब तक नहीं सीख पाई है.

क्या भारत डीआरएस का सही उपयोग करने में नाकाम रहा है? अगर पिछले साल इंग्लैंड के खिलाफ सीरीज से लेकर अब तक के आंकड़ों पर गौर करें तो इसका जवाब हां होगा क्योंकि विराट कोहली की टीम को विशेषकर फील्डिंग करते समय अक्सर अपने फैसले से मात खानी पड़ी. ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ तो भारतीय टीम ने ऐसे समय डीआरएस लिए जब बल्लेबाज के आउट होने का कोई चांस ही नहीं था.


भारत लंबे समय डीआरएस का विरोध करता रहा लेकिन पिछले साल इंग्लैंड के खिलाफ पांच टेस्ट मैचों की सीरीज से वह ट्रायल के तौर पर इसे आजमाने के लिये तैयार हो गया और तब से सभी टेस्ट मैचों में यह प्रणाली अपनायी गयी.

भारतीय खिलाड़ियों की इस प्रणाली को लेकर अनुभवहीनता हालांकि खुलकर सामने आई है. डीआरएस अपनाने के बाद भारत ने अब तक जो सात टेस्ट मैच खेले हैं उनमें बल्लेबाजी करते हुए कुल 13 बार मैदानी अंपायर के फैसले को चुनौती दी लेकिन इनमें से केवल चार बार वह फैसला पलटने में सफल रहा.

फील्डिंग करते समय भारतीय टीम ने कुल 42 बार डीआरएस का सहारा लिया लेकिन इनमें से सिर्फ दस बार  ही टीम को सफलता मिली. हर मैच में पहले 80 ओवर तक प्रत्येक टीम को दो असफल डीआरएस मिलते हैं. अक्सर देखा जाता है कि टीमें 70 से 80 ओवर के बीच इस प्रणाली का अधिक इस्तेमाल करती हैं क्योंकि बचे हुए मौके इसके बाद खत्म हो जाएंगे और दो नये अवसर इसमें जुड़ जाएंगे.

ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चार टेस्ट मैचों के पुणे में खेले गये शुरूआती टेस्ट मैच में हालांकि भारतीय टीम को डीआरएस में नाकामी ही हाथ लगी. फील्डिंग करते हुए उसने चार बार रिव्यू लिया लेकिन सभी मौकों पर वह गलत साबित हुई.

दूसरी तरफ ऑस्ट्रेलिया ने केवल एक बार रिव्यू लिया और उसमें भी वह सफल रहा. बल्लेबाजी करते हुए ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाजों ने छह बार रिव्यू लिया जिसमें दो बार वे सफल रहे जबकि भारतीय बल्लेबाज तीन में से केवल एक बार (पहली पारी में रविंद्र जडेजा) ही सफल रहे.

यहां तक कि भारत की दूसरी पारी में सलामी बल्लेबाज मुरली विजय और केएल राहुल ने छठे ओवर तक भारत के दोनों रिव्यू समाप्त कर दिये. वैसे इससे पहले भारतीय बल्लेबाजों को कुछ अवसरों पर रिव्यू का फायदा मिला.

इंग्लैंड के खिलाफ राजकोट में चेतेश्वर पुजारा जब 87 रन पर खेल रहे थे तब उन्हें एलबीडब्ल्यू आउट दे दिया गया था लेकिन उन्होंने डीआरएस का सहारा लिया और अंपायर क्रिस गफाने को अपना फैसला बदलना पड़ा. पुजारा ने इस पारी में शतक (124 रन) जड़ा. इसी तरह विराट कोहली ने भी डीआरएस का सही फायदा उठाते हुए 204 रन की पारी खेली थी.

इसकी बात इसलिए की क्योंकि इसके कारण भारतीय टीम को फायदा हुआ था. लेकिन ये किसी को समझ नहीं आ रहा कि भारतीय टीम इस प्रणाली का सही से उपयोग कब करेगी?.

आप विराट कोहली को ले लीजिए वह कितनी जल्दबाजी में फैसला लेते है. साहा को विकेटकीपर के तौर पर सबसे सटीक अंदाजा होना चाहिए कि रिव्यू लिया जाए या नहीं. लेकिन शायद उनका कम अनुभव भी भारतीय टीम पर भारी पड़ता है.