चंद रोज पहले तक बुझे हुए चेहरे अचानक खिले हुए दिखने लगे हैं. उम्मीद बढ़ गई है. बीसीसीआई के वे सारे अधिकारी खुश नजर आने लगे हैं, जिनके लिए सबसे हाई प्रोफाइल जगह पर रहने का दरवाजा बंद हो गया था. क्या ये महज इसलिए है कि बेंच में एक जज बदल गए हैं? सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर रिटायर हो गए और उनकी जगह दीपक मिश्रा आ गए.
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में ज्यादातर बातें वो हुईं, जो बीसीसीआई में काबिज लोग चाहते थे. इससे पहले नौ साल तक ही बीसीसीआई में रहा जा सकता था. इसमें राज्य संघ का कार्यकाल शामिल था. इसे बदल दिया गया. अब दोनों 9-9 साल अलग हैं यानी 18 साल.
अचानक केंद्र सरकार भी मामले में कूदी
केंद्र सरकार मामले में कूद पड़ी, जहां अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी की मार्फत कहा गया कि सर्विसेज, यूनिवर्सिटीज और रेलवेज के वोटिंग राइट्स छिन गए. उनका पक्ष तो जाना ही नहीं गया. अब इस पर भी बात होगी. दिलचस्प है कि जब सब खत्म हो गया, तब केंद्र ने कूदने का फैसला किया.
एक चुटकुला है. एक व्यक्ति स्विमिंग पूल की तरफ जाता है. कपड़े उतारकर कूदने की तैयारी करता है, तो गार्ड आकर उसे बताता है कि आप यहां तैर नहीं सकते. वह व्यक्ति नाराजगी में कहता है कि मैं कपड़े उतार रहा था, तब ये बात क्यों नहीं बताई? जवाब मिलता है कि यहां कपड़े उतारना मना नहीं है, तैरना मना है.
इसी तर्ज पर जैसे ही मामला तैरने के वक्त तक पहुंचा, तब अटॉर्नी जनरल की एंट्री हुई है. उन्होंने मामले को पूरी तरह पकने दिया. तब स्विमिंग पूल के गार्ड की तरह एंट्री मारी है. ध्यान रखिए, वर्तमान और पिछली केंद्र सरकार के तमाम बड़े नाम बीसीसीआई या राज्य संघों से जुड़े रहे हैं.
जस्टिस ठाकुर की जगह आए जस्टिस मिश्रा
बीसीसीआई में तमाम लोग लगातार मान रहे थे कि किसी तरह टीएस ठाकुर रिटायर हो जाएं. सबसे ज्यादा दिक्कत उनसे ही थी. इसी वजह से सुनवाई टालने की भरसक कोशिश की गई थी. तो क्या वाकई एक जज बदलने से इतना कुछ बदल सकता है?
जस्टिस दीपक मिश्रा को एक फैसले की वजह से काफी चर्चाएं मिली थीं. उन्हें सिनेमा हॉल में फिल्म से पहले राष्ट्रगान होने के फैसले के लिए भी जाना जाता है. उनके और तमाम यादगार फैसले रहे हैं.
मामले में दूसरे जज डीवाई चंद्रचूड़ हैं. उनके पिता का क्रिकेट से गहरा रिश्ता रहा है. उनके पिता वाईवी चंद्रचूड़ चीफ जस्टिस रहे हैं. रिटायर होने के बाद उन्हें क्रिकेट में गंदगी की जांच का काम सौंपा गया था. चंद्रचूड़ कमेटी की रिपोर्ट क्रिकेट में सबसे ‘शाकाहारी’ किस्म की मानी जाती है.
उस कमेटी के सामने सारे बड़े क्रिकेटर बुलाए गए थे. कहा जाता है कि सचिन तेंदुलकर को बुलाकर सिर्फ चाय पी गई और बच्चों के लिए ऑटोग्राफ लिए गए. इसी तरह उस वक्त के फिजियोथेरेपिस्ट अली ईरानी ने तहलका के स्टिंग ऑपरेशन में कहा था कि उनसे तो गंदगी के बारे में सवाल के बजाय फिजियोथेरेपी करवाई गई.
खैर, वो अलग मुद्दा है. यहां तीन जजों की बेंच ने कुछ समय पहले बीसीसीआई के पदाधिकारियों के लिए रास्ते पूरी तरह बंद करने के संकेत दिए थे. अब संकेत थोड़ा बदले हैं. इन लोगों के लिए रास्ता फिर भी आसान नहीं है. लेकिन अनुराग ठाकुर, अजय शिर्के, अमिताभ चौधरी, अनिरुद्ध चौधरी, सीके खन्ना, ज्योतिरादित्य सिंधिया, संजय जगदाले, राजीव शुक्ला जैसे लोगों को एक उम्मीद की किरण नजर आने लगी है. देखना होगा कि झरोखे से आई बारीक सी किरण इनके बीसीसीआई में रहने की उम्मीदों को किस हद तक रोशन कर पाती है.