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ये क्रिकेट है बाबू, यहां कोच नहीं... कप्तान ही होता है बॉस

टीम इंडिया के कोच के लिए रवि शास्त्री बेस्ट, बशर्ते गांगुली भी ऐसा ही सोचें

Vedam Jaishankar

ध्यान रखना चाहिए कि क्रिकेट में तमाम बार कामयाबी तब मिली है, जब कप्तानों ने अचानक अपने ‘इंस्टिंक्ट’ के मुताबिक मैदान पर फैसले लिए हैं. अब हमें भारतीय टीम में कप्तान के रोल पर बात करनी चाहिए, जो वाकई किसी पहेली की तरह है.

जरा इंटरनेशनल क्रिकेट में बेहतरीन कप्तानों के नाम याद कीजिए. माइक ब्रेयरली, इमरान खान, नवाब मंसूर अली खां पटौदी या अर्जुन रणतुंगा कभी अपनी टीम के कोच नहीं बने. क्रिकेट में सबसे बड़े स्तर पर कोचिंग की अहमियत को यह आंकड़ा समझाने का काम करता है.


जिन चार खिलाड़ियों के नाम लिए, वे प्रेरणा देने वाले कप्तान थे. क्रिकेट मैदान पर उन्होंने जो फैसले लिए, उनका बड़ा असर रहा. उसके बावजूद इंटरनेशनल लेवल पर कोचिंग के सबसे करीब माइक ब्रेयरली रहे. वो भी इस नजरिए से कि उन्होंने एक किताब लिखी – द आर्ट ऑफ कैप्टेंसी.

क्रिकेट में अलग है कोच की भूमिका

मकसद यह बिल्कुल नहीं है को कोच के काम को कम करके आंका जाए. क्रिकेट का स्वभाव अजीब है. ऐसे में टॉप लेवल पर इस तरह का काम जरूरी नहीं है. दरअसल क्रिकेट का स्वभाव फुटबॉल, हॉकी या बास्केटबॉल से अलग है. इन खेलों में कोच के शब्द कानून की तरह होते हैं. यह सच है कि मैदान के बाहर बैठकर एक कोच मैदान पर मौजूद खिलाड़ियों से अलग चीजों को देख सकता है. इसी वजह से बीच-बीच में लगातार निर्देश दिए जाते हैं.

इन सबके बावजूद क्रिकेट उस तरफ पहुंच रहा है, जहां ज्यादातर बड़ी टीमों के लिए कोच जरूरी है. कोच के रोल में विपक्षी खिलाड़ियों की ताकत और कमजोरी पर नजर रखना शामिल है. उसके बाद वो कप्तान और सीनियर खिलाड़ियो के साथ रणनीति बना सकता है. उनके बीच मतभेद हो सकते हैं. इसके बावजूद उन्हें एक साथ बैठकर हर मैच और हालात के लिए रोल तय करने होते हैं.

हालांकि, फैसला जो भी हो, उसकी सारी जिम्मेदारी फिर कप्तान की होती है. कप्तान का फैसला ही मैदान पर और ड्रेसिंग रूम में कानून जैसा होता है. ऐसा ही था, जब ब्रेयरली, पटौदी, इमरान और रणतुंगा जैसों ने अपनी टीम की कप्तानी की थी. विराट कोहली टीम इंडिया की कप्तानी कर रहे हों, तब भी इससे अलग नहीं हो सकता.

कोच पद के लिए आदर्श उम्मीदवार हैं रवि शास्त्री

अगर जितनी रिपोर्ट आ रही हैं, वो सच हैं, तो रवि शास्त्री ही इस पद के लिए आदर्श उम्मीदवार हैं. वे सेट-अप में बैलेंस ला सकते हैं. उनका काम यह सुनिश्चित करना होगा कि कप्तान के लिए काम आसान हो. मैदान के बाहर भी वो माहौल को खुशनुमा बनाए रख सकते हैं.

किसी लंबे दौरे पर एक दड़बे में बंद रहना ऊर्जा भरे युवाओं के लिए बेहद मुश्किल है. भारतीय क्रिकेट में कोई खामोश वक्त नहीं होता. उनसे साल-दर-साल पूरे 365 दिन पीक पर रहने की उम्मीद की जाती है. एक मैच्योर, सामने वाले को समझने वाला कोच चाहिए, जो समझता हो कि कब सख्ती करनी है और कब थोड़ा पीछे हट जाना है.

टेस्ट दौरे आसान नहीं होते. हर टेस्ट में कप्तान और कोच को 15 सेशन एक जैसे सोचना होता है. वनडे के दो सेशन और टी 20 के साढ़े तीन घंटे से ये बहुत ज्यादा है. कप्तान ऐसी आखिरी चीज चाहेगा कि मैदान पर मुश्किल वक्त बिताए और फिर कोच के साथ आकर वाद-विवाद में फंसे.

शास्त्री ने भारत के लिए टेस्ट खेला है. वो उस वक्त टीम डायरेक्टर रहे हैं, जब टीम इंडिया रैंकिंग में नंबर एक रही है. उन्हें ड्रेसिंग रूम में कूलिंग सेशन के बारे में पता है. उनके लिए चुनौती घर में जीतने की नहीं है. यहां तो कोई भी कोच हो, भारत जीत जाएगा. असली चुनौती विदेश मे जींतने की है. इसके लिए कप्तान और कोच के रिश्ते अच्छे होने चाहिए, ताकि टीम भावना बेहतर हो.

क्या पहले गांगुली की वजह से कोच नहीं बने रवि शास्त्री?

शास्त्री को जब मौका दिया गया था, तब उन्होंने कुछ गलत नहीं किया था. कहा जाता है कि सौरव गांगुली उन्हें कोच बनाने के पक्ष में नहीं थे. संभव है कि गांगुली ने अलग नजर से शास्त्री के कार्यकाल को देखा हो. वो तो शास्त्री के साथ स्काइप प्रेजेंटेशन में बैठने के बजाय बुक रिलीज फंक्शन में चले गए थे.

जिस तरह शास्त्री को किनारे करके अनिल कुंबले को चुना गया था, उसने तूफान बरपा किया था. ऐसा लगता है कि वही कहानी दोहराई जाने वाली है. बस, इस बार दूसरा पक्ष बेहतर हालत में है. यकीनन शास्त्री को मैन मैनेजमेंट के बारे में पता है. भारत ने उनके साथ ही ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहली द्विपक्षीय सीरीज जीत थी. भारत ने टी 20 सीरीज में ऑस्ट्रेलिया को 3-0 से हराया था. भारत टेस्ट रैंकिंग में नंबर वन बना था. 2015 के वर्ल्ड कप और 2016 के वर्ल्ड टी 20 में भारत सेमीफाइनल में हारा.

शास्त्री टीम सदस्यों को अच्छी तरह जानते हैं. उन्होंने इन खिलाड़ियों के साथ ड्रेसिंग रूम मे वक्त गुजारा है. इसके अलावा टीवी कमेंटेटेर के तौर पर उनकी लंबी पारी है. इसमें उन्होंने विपक्षी टीम को करीब से देखा है. ऐसे में उनकी सलाह काफी अहम होगी.

इससे भी ज्यादा, बल्कि सबसे अहम यह है कि टीम को ऐसे कोच की जरूरत है, जिसके साथ वे अगले दो साल आराम से काम कर सकें. अभी जो संकेत मिल रहे हैं, उसके मुताबिक रवि शास्त्री उसी तरह के शख्स हैं. बस, यह देखना होगा कि गांगुली भी ऐसा ही सोचते हैं या नहीं.