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कोच राहुल द्रविड़: भारतीय क्रिकेट की बुनियाद को मजबूती देने वाली 'दीवार'

दो बार विश्वकप के काफी करीब पहुंच कर दूर हो गए थे द्रविड़

Kiran Singh

'द वॉल के नाम से मशहूर राहुल द्रविड़ ने अपने करियर में कई रिकॉर्ड बनाए और लगभग अपने 17 साल के करियर में द्रविड़ ने सब कुछ हासिल किया, इसके बावजूद उनके करियर में एक कमी रह गई थी, जिसे वो कभी पूरा नहीं  कर पाए और वो कमी थी विश्व कप ट्रॉफी को अपने हाथ से उठाने की.

2003 में काफी करीब भी थे, लेकिन किस्मत इस दीवार की मजबूती देखना चाहती थी, ट्रॉफी के करीब लाकर दूर कर दिया और ये सपना नींद में आने वाला सपना मात्र ही रह गया. इस अधूरे सपने के साथ एक खिलाड़ी की तरह 2011 में वनडे से, 2012 में टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह दिया.


खिलाड़ी बनकर न सही करीब 14 साल बाद वो उनका सपना पूरा हो ही गया. विश्व कप ट्रॉफी को अपने हाथ में लेने का सपना, लेकिन इस बार बल्लेबाज राहुल द्रविड़ का नहीं, कोच राहुल द्रविड़ का सपना हकीकत बन गया. न्यूजीलैंड में कोच द्रविड़ की टीम ने उसी आॅस्ट्रेलिया की युवा टीम को बड़ी आसानी से हराकर अंडर 19 विश्व कप का खिताब अपने नाम कर किया. या यूं कहे कोच द्रविड़ के लड़को ने विश्व के फाइनल में आॅस्ट्रेलिया को हराकर 2003 की हार बदला लिया और अपने गुरु को गुरु दक्षिणा दी.

द्रविड़ ने उठाया भारतीय क्रिकेट के हीरों को तराशने का जिम्मा

कोच द्रविड़ के लिए ये मायने नहीं रखता कि  अंडर 19 विश्व कप का खिताब है, उनके लिए तो ये विश्व कप सीनियर विश्व कप से भी ज्यादा महत्तपूर्ण है. वहां पर तो पूरी टीम पकी हुई थी, लेकिन यहां ये बीज थे और इनसे पौधा बनाना था, जो काफी मुश्किल था, लेकिन कोच ने बखूबी किया. रही बात ट्रॉफी तक के सफर की तो 'द वॉल' के लिए आसान नहीं था, क्योंकि सीनियर टीम की तरह यहां बड़े प्लेटफार्म पर खेलने वाले अनुभवी खिलाड़ी नहीं होते  और हर विश्व कप की तरह इनकी टीम भी पूरी तरह से नई हो जाती है.

2016 में बस एक कदम दूर रह गई थी कामयाबी

हर नई युवा टीम को उसके लिए तैयार करना वाकई मुश्किल होता है. एक कोशिश द्रविड़ ने 2016 में भी थी, टीम फाइनल तक पहुंची, लेकिन फाइनल में वेस्ट इंडीज ने एक बार फिर द्रविड़ को विश्व कप दूर कर दिया.

फिर शुरू हुआ 13 जनवरी से 2018 अंडर 19 विश्व कप का सफर, सपना पुराना, लेकिन टीम नई, कोच ने अपनी टीम की हर तरह से मदद की. मैदान पर ही नहीं मैदान के बाहर भी काफी कुछ सिखाया. टीम पर मैच के प्रेशर को कम करने के लिए और लाइट मूड बनाने के लिए कोच के साथ दोस्त भी बने.

2016 में भारत की अंडर 19 विश्वकप टीम का हिस्सा रहे खलील अहमद ने बताया कि मैदान के बाहर द्रविड़ सर कभी भी मैच की बात नहीं करते थे, वे सिर्फ फैमिली की बात या कुछ और बात करते थे. मैदान के बाहर कभी भी कोच जैसा बिहेव नहीं किया, सिर्फ दोस्त की तरह. उन्हें हार-जीत से कोई मतलब नहीं होता, वे सिर्फ एक ही बात कहते कि सिर्फ यहां से सीखों, आगे जाना है सबको. द्रविड़ टीम के मूड को लाइट बनाने के लिए अक्सर गेट टुगेदर करते रहते थे, साथ ही टीम को बाहर भी लेकर जाते थे.