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आईसीसी के लिए फिक्सिंग जैसी चुनौती बनी क्रिकेटरों की बदजुबानियां

सिर्फ 2018 में ही आईसीसी ने 65 मामलों में अपने कोड ऑफ कंडक्ट के तहत सजा सुनाई है और इनमें से 90 प्रतिशत मामले खिलाड़ियों की बदतमीजी के थे. खिलाड़ियों के अलावा कोच भी इस तरह की हरकत करने के दोषी रहे

Jasvinder Sidhu

इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (आईसीसी) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और साउथ अफ्रीका के पूर्व विकेटकीपर डेव रिचर्डसन एक दिन पहले दिल्ली में थे. डेव ने माना कि भ्रष्टाचार के कारण क्रिकेट की छवि को नुकसान पहुंचा है. लेकिन हाल के सालों में खिलाड़ियों की बदतमीजियों ने खेल भावना को बहुत नुकसान पहुंचाया है.

बतौर सीईओ यह उनका आखिरी साल है. लेकिन जाने से पहले उन्होंने भरोसा दिलाया कि भविष्य में अंतरराष्ट्रीय मैचों के दौरान खेल भावना को आहत करने वाले खिलाड़ियों के खिलाफ आईसीसी पहले से ज्यादा कड़ाई से निपटेगा.


डेव ने माना कि यह समस्या काफी गंभीर है. क्रिकेट के जानकार खिलाड़ियों की आक्रामकता को इस खेल के लिए सही बताते आ रहे हैं. कैच लेने के बाद बल्लेबाज की तरफ आक्रामक इशारा करना या उसे आउट करने के बाद कप्तान और गेंदबाज का भद्दे तरीके से व्यवहार करना आम बात है.

सिर्फ 2018 में ही आईसीसी ने 65 मामलों में अपने कोड ऑफ कंडक्ट के तहत सजा सुनाई है और इनमें से 90 प्रतिशत मामले खिलाड़ियों की बदतमीजी के थे जो उन्होंने अपने विपक्षी खिलाड़ी या मैदान पर अंपायर के खिलाफ की थी. खिलाड़ियों के अलावा कोच भी इस तरह की हरकत करने के दोषी रहे.

पाकिस्तान के कप्तान सरफराज अहमद नस्लभेदी टिप्पणी के कारण साल के पहले महीने में बैन कर दिए गए हैं. दिसंबर में बांग्लादेश और श्रीलंका के बीच खेले गए मैच में भी बदजुबानी की सिलसिला बरकरार रहा था. एज से चौका गंवा देने के बाद लाहिरी कुमारा ने चिल्ला कर अश्लील शब्दों को प्रयोग किया. सरफराज के मामले की तरह वह भी स्टंप माइक के कारण पकड़े गए.

आईसीसी के आंकड़े इशारा करते हैं कि लगातार सजा मिलने के बावजूद खिलाड़ियों का गंदी जुबान पर काबू नहीं पाया जा सकता है. आईसीसी के डाटा के अनुसार इस साल 65 मामलों में कई खिलाड़ी फ** चिल्लाते हुए पकड़े गए जबकि अंपायरों को चीट कहने वालों में खिलाड़ी और कोच दोनों थे.

एक मामले में तो बल्लेबाज अंपायर के फैसले से इतना गुस्साया कि उसने अपने पैड, ग्लव्स मैदान पर ही उतार दिए और बल्ला पटक कर बाहर चला गया. मैच फीस कटने और मैचों का प्रतिबंध लगने के बाद भी यह सिलसिला रुकने का नाम नहीं ले रहा. यही कारण है कि आईसीसी अब और कड़ी सजा के बारे में बात कर रही है.

हाल ही में टीवी पर मैचों को प्रसारण करने वाली कंपनियों ने स्टंप माइक को दर्शकों के लिए भी खोल दिया है. इसका नतीजा यह हुआ है कि विकेटकीपर और विकेट के आसपास मौजूद फील्डरों के बीच क्या बातचीत हो रही है, सब सुना जा सकता है.

जाहिर है कि ऑस्ट्रेलियाई कप्तान टिम पेन और टीम इंडिया के विकेटकीपर पंत के बीच नोकझोंक मनोरंजक थी जिसे सुनने के बाद हंसी आती है. लेकिन ऐसी नोकझोंक को अपने मनोरंजन के लिए स्वीकार करना या सही ठहराना तर्कसंगत नहीं है. कई बार कहा जाता है कि सब कुछ मर्यादा में हो तो कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन यह मर्यादा कौन तय करेगा.

सरफराज ने साउथ अफ्रीका के अश्वेत क्रिकेट के बारे में जिस तरह की भाषा का इस्तेमाल किया, उन्हें लग रहा था कि सब मर्यादा में है. क्रिकेट देखने वालों को इसमें कुछ गलत ना लगे. लेकिन हदें पार होने में सेकंड नहीं लगती. ऑस्ट्रेलिया में इशांत शर्मा और रवींद्र जडेजा का मामला इसका सबूत है और सरफराज का मामला दस्तावेज.

ऐसे में अगर भविष्य में पंत या टीम इंडिया का कोई अन्य सदस्य ऐसी गलती के कारण प्रतिबंधित होता है तो किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए.