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आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी 2017 : सेमीफाइनल में एक खास रिकॉर्ड बनाएंगे युवराज

सेमीफाइनल खेलकर अजहरुद्दीन, तेंदुलकर, गांगुली और द्रविड़ के बराबर आ जाएंगे युवराज

Bhasha

करियर के शुरुआती दौर से ही अपनी असाधारण प्रतिभा की बानगी देने वाले युवराज सिंह ने बीते 17 बरस में मैदान के भीतर और बाहर कई उतार चढ़ाव झेले. लेकिन हार नहीं मानी. अब वह 300वां वनडे मैच खेलने की दहलीज पर खड़े हैं.

युवराज को कुछ लफ्जों में बयां करना काफी कठिन है. वह मोहम्मद अजहरुद्दीन, सचिन तेंदुलकर, सौरव गांगुली और राहुल द्रविड़ के बाद 300 वनडे खेलने वाले पांचवें भारतीय क्रिकेटर होंगे.


अपने करियर में वह केवल 40 टेस्ट खेल सके जो उनकी प्रतिभा के साथ न्याय नहीं है. सीमित ओवरों में भारत के महानतम मैच विनर में से हैं युवराज और यह सूची ज्यादा लंबी नहीं है. वनडे में मैच विनर्स की बात करने पर उनके अलावा कपिल देव, तेंदुलकर और महेंद्र सिंह धोनी के नाम ही जेहन में आते हैं.

एक युवराज वह है जो 18 बरस की उम्र में ग्लेन मैकग्रा, ब्रेट ली और जासन गिलेस्पी जैसे गेंदबाजों से भी खौफ नहीं खाता. फिर वह युवराज जिसने क्रिकेट के मक्का लॉर्ड्स पर नैटवेस्ट फाइनल में मैच जिताने वाली पारी खेली. उस समय 2002 में 325 रन का लक्ष्य हासिल करना लगभग असंभव हुआ करता था. इसी युवराज ने सिडनी में ली, गिलेस्पी और एंडी बिकल जैसे गेंदबाजों के सामने 139 रन की पारी खेली.

एक वह युवराज भी है, जो कभी टेस्ट क्रिकेट में अपनी प्रतिभा के साथ न्याय नहीं कर सका. कुछ लोग कहते हैं कि वह पांच दिनी क्रिकेट वाले तेवर ही नहीं रखता था तो कुछ का कहना है कि सौरव गांगुली का पांचवें नंबर पर कब्जा होने के कारण उसे अधिक मौके नहीं मिले. उस समय गांगुली टेस्ट क्रिकेट में बेहतर खिलाड़ी थे.

कई मौकों पर युवराज ने अपनी प्रतिभा की झलक इस प्रारूप में भी दिखाई. लेकिन सीमित ओवरों वाले तेवर नहीं दिखा सके. वह टेस्ट टीम में अपनी जगह पक्की नहीं कर पाए. सीमित ओवरों के क्रिकेट में भारतीय टीम के लिए उनका योगदान अतुलनीय है.

वह दो विश्व कप में खिताबी जीत के नायक रहे. टी20 विश्व कप 2007 में स्टुअर्ट ब्रॉड की गेंद पर छह गेंद में लगाये छह छक्के कौन भूल सकता है. आईपीएल में वह उस तरह का प्रदर्शन नहीं कर सके. लेकिन जब तक टी20 क्रिकेट है, युवराज की गिनती इस प्रारूप के लेजैंड्स में होगी.

इसके बाद 2011 विश्व कप आया जिसमें लोगों को फाइनल में धोनी का जड़ा छक्का याद होगा. लेकिन भारत की खिताबी जीत का सेहरा युवराज के सिर ही बंधेगा जिन्होंने 15 विकेट लेने के साथ 300 रन बनाए. यह वही दौर था जब कैंसर के शुरुआती लक्षण नजर आने लगे थे. युवराज को खून की उल्टियां हो रही थी, वह खा नहीं पा रहे थे और उन्हें पता भी नहीं था कि उनके शरीर में क्या हो रहा है.

कप्तान विराट कोहली ने सही कहा, ‘वह प्रेरणास्रोत हैं. मैदान के भीतर और बाहर चैंपियन और इसीलिए उनके प्रति सम्मान उपजता है.‘ कैंसर के खिलाफ जंग उनके जीवन की सबसे बड़ी जंग थी. ऐसे में कोई भी इसी से खुश हो जाता कि उसकी जान बच गई लेकिन युवराज फिर से खेलना चाहते थे. उन्होंने वापसी की लेकिन हर कामयाबी के बाद नाकामी आती है. श्रीलंका के खिलाफ 2014 टी20 विश्व कप के फाइनल में 21 गेंद में 11 रन बनाने वाले युवराज पर हार का ठीकरा फूटा.

आलोचकों ने उनका बोरिया बिस्तर बांध दिया और किसी ने नहीं सोचा था कि वह 33 साल की उम्र में वापसी करेंगे. उन्होंने टी20 टीम में वापसी की और रणजी क्रिकेट खेला. इसके जरिये वनडे टीम में फिर जगह बनाई.

अब वह दस साल पहले वाले युवराज की तरह नहीं खेल सकते लेकिन मैदान में उनकी उपस्थिति महसूस होगी. उनमें प्रतिभा थी तभी उन्होंने वापसी की और चैंपियंस ट्रॉफी में पाकिस्तान के खिलाफ पहले मैच में मैन आफ द मैच रहे. दुनिया में कई क्रिकेटर हुए और आगे भी होंगे लेकिन युवराज सिंह जैसे बिरले ही होते हैं.