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बल्लेबाजों का सिरदर्द बना रिव्यू

इसका इस्तेमाल सिरदर्दी बन गया है. खासतौर पर बल्लेबाज और नॉन स्ट्राइकर के लिए

Shailesh Chaturvedi

कई साल के विरोध के बाद भारत डिसीजन रिव्यू सिस्टम यानी डीआरएस के लिए तैयार हुआ. सीरीज में इसे लागू भी किया गया. लेकिन इसका इस्तेमाल सिरदर्दी ही बन गया है. खासतौर पर बल्लेबाज और नॉन स्ट्राइकर के लिए, जिसे तय करना होता है कि डीआरएस लिया जाए या नहीं.

इंग्लैंड के खिलाफ विशाखापत्तनम टेस्ट के दूसरे दिन टीम इंडिया के साथ ऐसा ही हुआ. पहले ऋद्धिमान साहा को मोईन अली की गेंद पर अंपायर ने आउट करार दिया. अंपायर कुमार धर्मसेना ने काफी समय लेकर उंगली उठाई. साहा और अश्विन के बीच बातचीत हुई, जिसके बाद तीसरे अंपायर की मदद लेने का फैसला लिया गया. लेकिन डीआरएस किसी काम नहीं नहीं आया. धर्मसेना का फैसला सही था. साहा को वापस जाना पड़ा.


इसी ओवर में जडेजा को भी आउट दिया गया. जडेजा ने रिव्यू नहीं लिया. दिलचस्प था कि गेंद लेग स्टंप से बाहर जा रही थी. टीम इंडिया के लिए सिरदर्दी यही है कि कब रिव्यू लें और कब न लें. रिव्यू में सबसे पहले बल्लेबाज की नजर नॉन स्ट्राइकर की तरफ जाती है, क्योंकि अंपायर के ठीक साथ खड़े होने की वजह से उसके लिए एलबीडब्ल्यू को समझना आसान होता है. लेकिन यहां दोनों बार अश्विन सही सलाह नहीं दे पाए.

रिव्यू को लेकर बार-बार होती है गलती

इसी मैच में रिव्यू को लेकर गलती नहीं हुई है. राजकोट में पिछले टेस्ट के दौरान भी भारत ने गलती की थी. वहां पर बल्लेबाज चेतेश्वर पुजारा थे. पुजारा को आदिल रशीद की गेंद पर आउट दिया गया. दूसरे छोर पर मुरली विजय बल्लेबाजी कर रहे थे. पुजारा ने विजय से रिव्यू लेने के बारे में पूछा. लेकिन विजय इसे लेकर आश्वस्त नहीं थे. रिव्यू नहीं लिया गया और भारत ने खामियाजा भुगता.

राजकोट में इस बारे में विराट कोहली ने कहा था, ‘बल्लेबाजी के दौरान मैंने देखा है कि नॉन स्ट्राइकर का स्टंप्स के बहुत पास खड़ा होना जरूरी है. अगर स्टंप से दूर रहेंगे, तो गेंद की लाइन का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता.’

राजकोट में फील्डिंग के दौरान भी भारत ने एक रिव्यू लिया था. तब एलिस्टर कुक के कैच को लेकर ऋद्धिमान साहा को पूरा भरोसा था. हालांकि रिव्यू से साफ हुआ कि गेंद बल्ले के आसपास नहीं थी.