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पुण्यतिथि विशेष: जिसके कंधों पर था पूरी टीम इंडिया का बोझ

वीनू मांकड के नाम पर है क्रिकेट में आउट करने का एक तरीका 'मांकडिंग'

Rajendra Dhodapkar

वीनू मांकड पर कुछ भी लिखा जाता है तो यह जरूर लिखा जाता है कि शायद कोई टेस्ट टीम किसी एक खिलाड़ी पर उस तरह निर्भर नहीं रही होगी, जैसे भारतीय टीम मांकड पर निर्भर थी. वीनू मांकड अपने आप में एक मुकम्मल टीम थे. उनके दौर में आमतौर पर भारतीय टीम मुकम्मल टीम नहीं रही.

सन 1946 के इंग्लैंड दौरे पर गई भारतीय टीम को छोड़ दें जो बहुत मज़बूत टीम थी. उसके कप्तान नवाब इफ़्तिख़ार अली खान पटौदी थे. उसमें विजय मर्चेंट, मुश्ताक अली, लाला अमरनाथ, विजय हजारे और रूसी मोदी जैसे खिलाड़ी थे. इस टीम का प्रदर्शन भी बहुत अच्छा रहा था. लेकिन इसके अलावा उस दौर की कहानी यही थी कि मांकड अपने कंधे पर कमजोर भारतीय टीम का बोझ ढोते रहे थे.


मांकड टीम के लिए कितने महत्वपूर्ण थे यह इस बात से पता चलता है कि उनके 44 टेस्ट तक फैले टेस्ट करियर के दौरान भारतीय टीम पांच टेस्ट मैच जीती थी. इन पांचों टेस्ट विजयों में मांकड का योगदान सबसे महत्वपूर्ण था. इन पांच टेस्ट मैचों में अगर मांकड का बल्लेबाजी औसत निकाला जाए तो वह सौ से ऊपर है. इन पांच टेस्ट मैचों में औसतन उन्होंने आठ से ज्यादा विकेट प्रति टेस्ट लगभग तेरह रन प्रति विकेट के दर से ली हैं.

मांकड बाएं हाथ के शास्त्रीय स्पिनर थे जिनकी लेंथ, लाइन, फ्लाइट और घुमाव पर जबरदस्त नियंत्रण था. अपने दौर के वे विश्व के निर्विवाद श्रेष्ठतम बाएं हाथ के स्पिनर थे, बल्कि पॉली उमरीगर के मुताबिक वे आज तक के महानतम बाएं हाथ के स्पिनर थे. इस बात पर विवाद हो सकता है. लेकिन बेदी, शिवालकर और राजिंदर गोयल के देश में अगर पॉली काका जैसा वरिष्ठ खिलाड़ी ऐसी राय रखता है, तो इससे मांकड की श्रेष्ठता समझ में आती है.

इसके अलावा मांकड दाहिने हाथ के मजबूत बल्लेबाज थे, जिन्होंने टीम की जरुरत के मुताबिक पहले से ग्यारहवें तक किसी भी स्थान पर बल्लेबाजी करवाई गई. वे टेस्ट क्रिकेट इतिहास के उन सिर्फ चार खिलाड़ियों में से हैं, जिन्होंने एक से ग्यारह नंबर तक बल्लेबाजी की. कई बार ऐसा हुआ कि सामने वाली टीम की इनिंग में लगातार गेंदबाजी करने के बाद वे ओपनिंग बल्लेबाजी करने आए, जहां उन्होंने टीम की पारी को थामे रखा और दूसरी इनिंग में फिर वही सिलसिला दोहराया गया. साथ ही वे अच्छे फील्डर भी थे.

भारत की विजयों में मांकड के योगदान का जिक्र ऊपर किया जा चुका है. लेकिन जिस टेस्ट को ‘मांकड का टेस्ट मैच’ कहा जाता है, वह टेस्ट मैच भारत हारा था. किसी टेस्ट मैच को हारी हुई टीम के किसी खिलाड़ी के नाम से जाना जाए यह कम ही होता है. लेकिन यह टेस्ट मैच ऐसा था जिसे मांकड के योगदान के लिए याद किया जाता है.

भारत के पहले व्यावसायिक क्रिकेटर थे वीनू मांकड

इस टेस्ट मैच की कहानी कई बार कही जा चुकी है. लेकिन इसे यहां दोहराए बगैर मांकड कथा अधूरी रह जाएगी. सन 1952 में मांकड इंग्लैंड में लीग क्रिकेट खेलने के लिए एक क्लब से करार करके इंग्लैंड जा चुके थे. मांकड वास्तव में भारत के पहले व्यावसायिक क्रिकेटर थे, जो क्रिकेट के जरिए रोजगार कमा रहे थे. भारत की टीम को उस साल इंग्लैंड का दौरा करना था.

जब चयन समिति से पहले ही पूछ लिया, मेरा चयन होगा या नहीं?

मांकड ने एक गड़बड़ यह की कि चयन समिति को  चिट्ठी लिख दी. इसमें लिखा कि अगर उनका टीम में चयन सुनिश्चित हो तो ही वे क्लब से छुट्टी लेकर भारतीय टीम के दौरे के लिए उपलब्ध होंगे. अब चयन समिति के सामने ऐसी शर्त रखना कि पहले से ही उनके चयन के बारे में बता दिया जाए, निश्चित ही ठीक नहीं था. लेकिन शायद मांकड के दिमाग में यह था कि क्लब से छुट्टी लेने पर उन्हे आर्थिक नुकसान होगा. ऐसे में अगर वे टीम में न रहे तो वे कहीं के नहीं रहेंगे. बहरहाल सीके नायडू की अध्यक्षता वाली चयन समिति ने उनकी शर्त मानने से इनकार कर दिया और वे दौरे पर गई टीम में नहीं चुने गए.

पहला टेस्ट मैच भारतीय टीम बुरी तरह हारी. दूसरी पारी में तो भारत के पहले चार विकेट बिना किसी रन के निकल गए. यह तय पाया गया कि टीम की नैया बिना मांकड के नहीं पार लग सकती. मैनेजर पंकज गुप्ता ने पहले चयनकर्ताओं को मनाया और फिर जिस क्लब से मांकड खेल रहे थे उसे मनाया.

हार के बाद भी याद रही मांकड की पारी

लॉर्ड्स में दूसरा टेस्ट मैच शुरू हुआ और पहली पारी में मांकड, पंकज रॉय के साथ ओपनिंग बल्लेबाजी करने आए. पहले विकेट के लिए मांकड और रॉय ने 106 रन की भागीदारी की. मांकड 72 रन बना कर आउट हुए जो भारतीय टीम का सर्वोच्च स्कोर था. भारतीय टीम अच्छी शुरुआत के बाद भी कुल 235 रन ही बना पाई. इंग्लैंड ने उसके जवाब में 537 रन का पहाड़ खड़ा कर दिया. मांकड ने 73 ओवर गेंदबाजी करके 196 रन पर 5 विकेट लिए.

इतनी गेंदबाजी करने के बाद मांकड फिर ओपनिंग बल्लेबाजी करने उतरे. इस बार उन्होंने अंग्रेज गेंदबाजी की धुनाई करते हुए जो इनिंग खेली वह असाधारण थी. वे 184 रन बनाकर आउट हुए. उनका जब विकेट गिरा, तब भारत का स्कोर था तीन विकेट पर 270 रन. भारतीय पारी उनकी शानदार पारी के बावजूद 372 रन पर सिमट गई, क्योंकि और कोई बल्लेबाज पचास का आंकड़ा भी नहीं छू पाया. इंग्लैंड ने चार विकेट खोकर जीत के लिए जरूरी रन बना लिए. हालांकि मांकड को इस इनिंग में कोई विकेट नहीं मिला लेकिन उन्होंने 24 ओवर फेंके जिनमें से 12 मेडन थे.

मांकड का सारा करियर ऐसे ही रिकॉर्ड से भरा हुआ है. दो बार उन्होंने एक इनिंग में आठ विकेट लिए, उनमें से एक मौका भारत की पहली टेस्ट विजय का था. जब उन्होंने इंग्लैंड की पहली पारी में आठ विकेट लेकर भारत को मजबूत स्थिति में पहुंचाया. इनमें से चार विकेट स्टम्प थे.

भारत की एकमात्र पारी में उन्होंने रन तो बाईस ही बनाए लेकिन इंग्लैंड की दूसरी पारी में उन्होंने और गुलाम अहमद ने चार-चार विकेट लेकर भारत को एक इनिंग से जीत दिलाई. एक रिकॉर्ड तो उनका आज तक बना हुआ है, पंकज रॉय के साथ पहली विकेट के लिए 413 रन की भागीदारी का. उनका एक और रिकॉर्ड था. उन्होंने सिर्फ तेईस टेस्ट मैचों में एक हजार रन और सौ विकेट का ‘डबल’ पूरा किया था. ये रिकॉर्ड पचीस साल तक बना रहा और उसे इयान बॉथम ने तोड़ा.

मांकड का नाम एक और वजह से क्रिकेट इतिहास में जाना जाता है. उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई बिल ब्राउन को गेंद फेंकने से पहले क्रीज से बाहर निकलने पर रन आउट किया था. इसकी तत्कालीन ऑस्ट्रेलियाई मीडिया ने कड़ी आलोचना की थी और इसे खेल भावना के खिलाफ बताया था, लेकिन ऑस्ट्रेलियाई कप्तान सर डॉन ब्रैडमैन ने मांकड का समर्थन करते हुए लिखा कि मांकड पहले ब्राउन को एक बार क्रीज से बाहर निकलने के लिए चेतावनी दे चुके थे. बहरहाल, इस तरह रन आउट करने को ही ‘मांकडिंग’ नाम पड़ गया जो अब तक चला आ रहा है.

भारतीय टीम का भार अपने मजबूत कंधों पर उठाने वाले, दुनिया के महानतम ऑलराउंडरों में शुमार मांकड की पुण्यतिथि 21 अगस्त को है और यह उनका जन्मशताब्दी वर्ष भी है.