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1974 का वो इंग्लैंड दौरा जिसके बाद वाडेकर को कप्तानी छोड़नी पड़ी और उन्होंने खेल से संन्यास ले लिया

1971 में मिली जीत का जश्‍न पूरे देश में जिस तरह दीवाली की तरह मनाया गया था, 1974 में मिली हार ने भारतीय कप्‍तान को संन्‍यास तक दिलवा दिया

Rajendra Dhodapkar

जब भी भारतीय क्रिकेट टीम के इंग्लैंड दौरे का जिक्र होता है तो 1971 के दौरे की बात जरूर होती है. यहां हम उसके बाद वाले दौरे यानी 1974 के दौरे की बात करेंगे, क्योंकि 71 के दौरे पर तो बहुत लिखा जा चुका है और हार से जो सबक मिलते हैं वे जीत से नहीं मिलते. 1971 की चर्चा तो स्वाभाविक है क्योंकि

यह पहला दौरा था, जिसमें भारत ने इंग्लैंड को पहली बार इंग्लैंड में हराया था और सीरीज भी जीती थी. इसके पहले भारत, वेस्टइंडीज से भी सीरीज जीत चुका था, जो विदेशी धरती पर पहली बार भारत की सीरीज विजय थी.


इसके तीन साल पहले भारत न्यूजीलैंड में एक टेस्ट मैच जीत चुका था, जो विदेशी धरती पर उसकी पहली जीत थी. यानी साठ का दशक खत्म होते और सत्तर के दशक के शुरुआत में भारत के क्रिकेट में एक नया अध्याय शुरु हुआ था और इसके बाद हिचकोले खाते ही सही, भारतीय टीम का आगे बढ़ना जारी रहा. हालांकि विदेशी धरती पर भारत की टीम की कमजोरी बनी ही रही. अब भी भारत का देश से बाहर रिकॉर्ड उतना अच्छा नहीं है. फिलहाल विश्व क्रिकेट में कोई टीम नहीं है, जो अपने देश के बाहर अच्छा खेलती हो. इसकी एक वजह तो यह भी है कि दौरे छोटे होते जा रहे हैं और टेस्ट मैचों के पहले खिलाड़ियों को परिस्थितियों से परिचित होने का मौका नहीं मिलता.

उम्मीदों भरा है 1968 का दौरा

1971 के दौरे के बाद भारत में उस जीत की बड़ी खुशियां मनाई गई थी. खिलाड़ियों के बाकायदा जुलूस वगैरह निकाले गए. उन्हें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से मिलवाने ले जाया गया. एक के बाद एक सीरीज जीतने की खुशी में इंदौर में एक विशाल सीमेंट का बल्ला स्मारक के रूप में स्थापित किया गया, जिस पर खिलाड़ियों के नाम दर्ज थे. शायद वह बल्ला अब भी वहीं हो. लेकिन यह भी याद रखना चाहिए कि उस सीरीज के पहले 1967 में और उसके बाद सन 1974 में भारत ने इंग्लैंड का दौरा किया था और दोनों सीरीज में भारत 3-0 से सीरीज हारा था. 1971 की सीरीज के बाद जिन लोगों ने भारतीय टीम पर फूल बरसाए होंगे ,शायद उन्हीं ने 1974 की हार के बाद कप्तान अजित वाडेकर के घर पर पत्थर फेंके. इंग्लैंड से लौटते ही वाडेकर को कप्तानी छोड़नी पड़ी और उन्होंने खेल से भी संन्यास ले लिया.

यह दौरा बड़ी उम्मीदों के साथ शुरु हुआ था. 1968 के बाद से भारत का ग्राफ लगातार ऊपर ही जा रहा था. भारत को गावस्कर और विश्वनाथ जैसे नौजवान बल्लेबाज मिल गए थे. सोलकर एक भरोसेमंद ऑलराउंडर की तरह अपनी जगह बना चुके थे. वाडेकर लगातार अच्छा खेल रहे थे. सबसे बड़ी बात यह थी कि भारत की स्पिन चौकड़ी का दबदबा सारी दुनिया पर छा चुका था. 1971 में वेस्टइंडीज दौरे पर जीत के बाद भारत एक भी सीरीज नहीं हारा था. ऐसे में जब भारतीय टीम इंग्लैंड गई तो सब यही मान रहे थे कि मुकाबला कांटे का होगा. चार साल से लगातार जीत के अभ्यस्त भारतीय क्रिकेट प्रेमी तो यह भूल ही चुके थे कि भारतीय टीम हार भी सकती है. उस साल इंग्लैंड में कड़ाके की सर्दी थी और बारिश भी हो रही थी. भारत की टीम पहला टेस्ट शुरु होने के पहले एक भी मैच नहीं हारी, बल्कि दो मैच जीत चुकी थी.

पहले टेस्ट का आगाज अच्छा नहीं तो बहुत बुरा भी नहीं हुआ. इंग्लैंड के 328 पर 2 के जवाब में भारत 246 रन बना पाया. गावस्कर ने शतक बनाया और विश्वनाथ ने 40 रन. भारत टेस्ट हार गया, हालांकि अगर कुछ देर और हमारी टीम बल्लेबाजी कर पाती तो बराबरी हो सकती थी, लेकिन कुछ बातें साफ दिख रही थीं. इंग्लैंड के मौसम में और पिचों पर भारतीय स्पिनर नहीं चल रहे थे , भारत के इस दौरे के सबसे सफल गेंदबाज आबिद अली थे.

बिशन बेदी का शर्मनाक रिकॉर्ड

असली नाटक तो दूसरे टेस्ट मैच में होना था. पहले दिन विकेट बल्लेबाजी के लिए अनुकूल था और धूप खिली हुई थी. इंग्लैंड ने पहले बल्लेबाज़ी करते हुए 629 रन बनाए. डेनिस ऐमिस ने 188 रन बनाए और साथ में कप्तान माइक डैनेस और टोनी ग्रेग ने भी शतक जमाए. बेदी क्रिकेट इतिहास के दूसरे ऐसे गेंदबाज बनें, जिन्होंने एक पारी में 200 से ज्यादा रन दिए. बेदी का गेंदबाजी विश्लेषण था - 226 पर 6. भारत ने भी शानदार शुरुआत की. गावस्कर और फारुख इंजीनियर ने ऐसी शुरुआत की मानो इंग्लैंड के स्कोर का पीछा करना बहुत आसान बात है. दोनों ने तेजी से टीम के लिए 100 का स्‍कोर पार कर दिया, लेकिन गावस्कर पहले आउट हो गए. उसके बाद आए वाडेकर भी जल्दी ही वापस लौट गए. इतने बड़े स्कोर के करीब पहुंचने के लिए भारत में किसी को लंबी पारी खेलनी जरूरी थी, लेकिन भारत में एक भी बल्लेबाज ने शतक नहीं लगाया. भारत का स्कोर रहा 302. फॉलोऑन के बाद चौथे दिन भारत ने बिना कोई विकेट गंवाए दो रन बना लिए थे.

अगला दिन रविवार था. उन दिनों इंग्लैंड में रविवार को खेल बंद रहता था यानी वह टेस्ट मैच का रेस्ट डे था. उस दिन मौसम बदल गया. रात में बारिश हुई और सोमवार सुबह बादल छाए हुए थे. ढंकी हुई होने के बावजूद नमी की वजह से विकेट थोड़ी गीली हो गई थी और घास में भी हरापन था. गेंदबाजी जब शुरू हुई तभी लग गया कि गेंद कुछ हरकत कर रही है. पहला विकेट दो रन पर ही इंजीनियर का गिरा. दूसरा विकेट पांच रन पर वाडेकर.

एक दौर की समाप्ति था यह दौरा

वाडेकर के बाद विश्वनाथ गावस्कर का साथ निभाने आए, लेकिन 12 रन पर बेदी चलते बने. दो रन बाद बृजेश पटेल भी वापस पवेलियन में थे. एक छोर संभाले हुए गावस्कर भी जब 25 के स्कोर पर आउट हो गए तो रही सही उम्मीद भी खत्म हो गई. देखते ही देखते भारतीय टीम अपने सबसे कम स्कोर 42 रन पर ऑल आउट हो गई. सोलकर 18 रन बना कर नॉट आउट लौटे. जेफ अर्नोल्ड को मैच के एक दिन पहले बॉब विलिस के चोटिल हो जाने की वजह से टीम में लिया गया था , उन्होंने 19 रन देकर 4 विकेट लिए और क्रिस ओल्ड ने 21 रन पर 5. अगले टेस्ट मैच में भारत का मनोबल टूट चुका था. वहां इंग्लैंड ने दो विकेट पर 459 रन बनाए. अपना दूसरा ही टेस्ट मैच खेल रहे डेविड लॉयड ने दोहरा शतक बनाया. भारत पहली पारी में 165 और दूसरी पारी में 216 रन बना कर ऑल आउट हो गया. यह हार एक दौर की समाप्ति थी, जो वेस्टइंडीज पर जीत से शुरू हुई थी.

(यह लेख अपडेट करके हम फिर पब्लिश कर रहे हैं)