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लॉरेल-हार्डी के नाम पर इस क्रिकेटर का नाम क्यों पड़ा ऑली

जानिए एक आंख वाले सवा सौ किलो के इस स्पेशल क्रिकेटर के बारे में

Rajendra Dhodapkar

कई खिलाड़ी होते हैं जो अपने क्षेत्र में बहुत कामयाब होते हैं और बड़ी शोहरत हासिल करते हैं. जिंदगी के तमाम क्षेत्रों की तरह खेलों में भी कई ऐसे लोग होते हैं जो शायद बहुत कामयाब होते, लेकिन किसी वजह से वे चूक या छूट जाते हैं. जिनके बारे में मिर्ज़ा ग़ालिब की बात याद आती है कि ‘यूं होता तो क्या होता.’ ऐसे  ही एक खिलाड़ी थे कॉलिन मिलबर्न. मिलबर्न ने इंग्लैंड के लिए कुल नौ टेस्ट मैच खेले. एक कार दुर्घटना में उनकी बाईं आंख चली गई और उनका क्रिकेट करियर खत्म हो गया. लेकिन वे इतने अनोखे खिलाड़ी थे कि अगर यह हादसा न होता तो शायद क्रिकेट के सबसे लोकप्रिय खिलाड़ियों मे गिने जाते.

कॉलिन मिलबर्न सलामी बल्लेबाज थे. जिस दौर में यानी साठ के दशक में वे खेल रहे थे, उन दिनों अंग्रेजों का क्रिकेट बहुत ही अंग्रेजी तर्ज का यानी नीरस और उबाऊ हो गया था. सारे बल्लेबाज जैसे किसी कारखाने से निकली मशीनों की तरह एक जैसा, कोचिंग की किताबों में लिखे तरीके से बल्लेबाजी करते थे.


फौजी अनुशासन और सरकारी व्यवस्था जैसे माहौल ने खिलाड़ियों में निजी विशेषताओं और व्यक्तिगत पहचान का महत्व घटा दिया था. मिलबर्न ऐसे में एक ताजा हवा के झोंके की तरह आए. एक तो वे आम खिलाड़ियों की तरह दिखते नहीं थे. उनका वज़न लगभग 115-120 किलो हुआ करता था और लंबाई से ज्यादा यह वजन चौड़ाई में फैला था.

मोटापे की वजह से नाम रखा गया 'ऑली'

उनके इस असाधारण मोटापे और उनके खुशमिजाज अंदाज की वजह से उन्हें "ऑली" कहा जाता था. यह नाम लॉरेल हार्डी की कॉमेडियन जोड़ी के ऑलिवर हार्डी के नाम पर पड़ा था. वे अंग्रेज बल्लेबाजों के आम चरित्र के विपरीत धुआंधार बल्लेबाज थे. अपनी काउंटी नॉर्थहैंप्टनशायर के लिए उन्होंने चार बार लंच के पहले शतक बनाया था. एक बार ऑस्ट्रेलिया में उन्होंने लंच और टी के बीच 183 रन ठोके थे. उनके नाम ऐसे कई रिकॉर्ड हैं. अपने पहले ही सीजन मे उन्होंने एक बार अपनी टीम के 256 पर आठ के स्कोर में से 201 रन बनाए. उनका पहला काउंटी चैंपियनशिप शतक था टीम के 182 के स्कोर में 102 रन.

ऐसा नहीं था कि वे यूं ही बल्ला चलानेवाले बल्लेबाज थे. जानकार बताते हैं कि वे तकनीकी रूप से एकदम दुरुस्त खिलाड़ी थे. उनका रक्षात्मक खेल भी बहुत मजबूत था. जो शॉट वे खेलते थे, वे भी एकदम किताबी शास्त्रीय शॉट होते थे. सिर्फ वे उन्हें ज्यादा मात्रा में और ज्यादा ताकत से खेलते थे. उनकी कई बड़ी इनिंग्ज मुश्किल पिचों पर और कठिन परिस्थितियों में खेली गई थीं. भारी बदन के बावजूद वे फूर्तीले और चपल थे, उनका फुटवर्क बहुत अच्छा था. वे बहुत दोस्ताना, मजाकिया, हंसने हंसाने वाले और पीने पिलाने वाले इंसान थे इसलिए बेहद लोकप्रिय थे.

पहले ही टेस्ट में बनाए 94 रन

उनके अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत वेस्टइंडीज के खिलाफ 1964 में हुई. अपने पहले ही टेस्ट में हॉल, ग्रिफिथ, सोबर्स और गिब्स की गेंदबाज़ी के खिलाफ उन्होंने 94 रन बनाए. उनका पहला शतक लॉर्ड्स पर तीसरे टेस्ट में चुनौती भरी परिस्थिति में बनाया गया था. हम सोच सकते हैं कि ऐसी शानदार शुरुआत के बाद टीम में उनकी जगह पक्की हो गई होगी. लेकिन अगली सीरीज के लिए टीम में उनका नाम नहीं था. चयनकर्ताओं का कहना था कि अपने मोटापे की वजह से वे फील्डिंग नहीं कर सकते.

उनके नौ टेस्ट के संक्षिप्त टेस्ट करियर की यही कहानी थी. उन्हें बार-बार टीम से निकाल दिया जाता. वे घरेलू क्रिकेट में या ऑस्ट्रेलिया की शेफील्ड शील्ड में रनों के अंबार लगाते, जहां के दर्शक और खिलाड़ी उन्हें बहुत पसंद करते. महान गेंदबाज रे लिंडवाल ने उन्हें दूसरे महायुद्ध के बाद ऑस्ट्रेलिया में आए सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज कहा. फिर चयनकर्ता उन्हें टीम में लेने पर मजबूर होते. वे अच्छा प्रदर्शन करते, फिर बाहर कर दिए जाते.

वजनदार होने के बावजूद अच्छे फील्डर थे

यह सच के कि वे बहुत ज्यादा वजनदार थे. लेकिन वे खराब फील्डर नहीं थे. नॉर्थहैंप्टनशायर की ओर से एक सीजन में सबसे ज्यादा कैच पकड़ने का रिकॉर्ड उनके नाम था. वे विकेट के करीब या कवर्स और मिडऑन, मिडऑफ पर अच्छे फील्डर थे. शायद उनके टीम से बार-बार बाहर होने की वजह यह थी कि वे उस तरह के खिलाड़ी नहीं थे जैसे अंग्रेज चयनकर्ता चाहते थे. उनमें वह गंभीरता या मनहूसियत नहीं दिखती थी, जो अंग्रेज क्रिकेट की पहचान थी.

वे ठहाके लगाने वाले दोस्तबाज आदमी थे. फिर मैच की पहली पांच गेंदों पर छक्के लगाने वाला बल्लेबाज वेस्टइंडीज और ऑस्ट्रेलिया में तो हाथों-हाथ लिया जाएगा. लेकिन अंग्रेज, खासकर उस दौर के अंग्रेज चयनकर्ता तो इसे पसंद नहीं कर सकते थे. अंग्रेजों की क्रिकेट में इतने आक्रामक बल्लेबाज, वह भी सलामी बल्लेबाज के लिए टीम में जगह बनाना मुश्किल था. लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि इसके बावजूद मिलबर्न में कड़वाहट नहीं आई. वे वैसे ही मस्त बने रहे.

आखिरी दौरे पर पूरी इंग्लैंड टीम ने दिया गार्ड ऑफ ऑनर

आखिरी बार उनकी वापसी का किस्सा यह है कि उन्हें सन 1969 के पाकिस्तान दौरे के लिए नहीं चुना गया और वे खेलने के लिए ऑस्ट्रेलिया चले गए. दौरा बहुत कठिन साबित हुआ और टीम को संकट से बचाने के लिए उन्हें तलब किया गया. वे ऑस्ट्रेलिया से सीधे पाकिस्तान पहुंचे, जहां हवाई अड्डे पर सारी इंग्लैंड टीम ने उन्हें ‘गॉर्ड ऑफ ऑनर’ दिया.

तीसरे टेस्ट में कठिन परिस्थिति में उन्होंने 139 रन की शानदार पारी खेली. मैच के आखिरी दिन दर्शकों ने दंगा कर दिया जिससे टेस्ट मैच पूरा नहीं हो पाया और अंग्रेज टीम अपने देश लौट गई. उनके प्रशंसकों को लगा कि अब तो उनकी जगह टीम में पक्की हो गई. लेकिन दो महीने बाद वह दुर्घटना हो गई, जिससे वह टेस्ट उनका आखिरी टेस्ट साबित हुआ. बाद में उन्होंने क्रिकेट में वापसी की कोशिश की. लेकिन वे कामयाब नहीं हो पाए.

इस दुर्घटना के बाद भी उनका अंदाज बदला नहीं. वे वैसे ही खुशदिल और मस्त बने रहे. कुछ दिन उन्होंने कमेंट्री भी की... और काफी अच्छी की. सिर्फ 48 साल की उम्र में एक पब की कार पार्किंग में दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई.

उन्हें जानने वालों का कहना है कि वे काफी हद तक उनके इस अंदाज के पीछे एक खालीपन और उदासी थी, जिसे वे कुछ ज्यादा गर्मजोशी और मौजमस्ती से ढंकने की कोशिश करते थे. उनकी असमय मौत की एक वजह यह भी थी. दुर्घटना से लगे सदमे को उन्होंने छिपा लिया. लेकिन उनके दिल पर वह चोट बनी रही, जिसे वे शराब और दोस्तबाजी से ढकते रहे.

इंग्लैंड की प्रोफेशनल क्रिकेटर्स एसोसिएशन (पीसीए) ने उनके जीवन पर एक नाटक का मंचन देश के सभी प्रमुख क्रिकेट मैदानों पर करवाया. इंग्लैंड में पेशेवर क्रिकेटरों में मानसिक टूटन और आत्महत्या के मामले काफी देखने में आए हैं. खेल का अपना तनाव, फिर चोट या किसी और वजह से करियर पर संकट, पेशेवर खेलों की बड़ी दिक्कतें हैं.

खेलों में अनिश्चितता बहुत है. एक झटके में कोई अर्श से फर्श पर आ सकता है. ऐसे में खिलाड़ी मानसिक रूप से टूट सकते हैं. पीसीए ऐसे खिलाड़ियों को सहारा और पेशेवर मदद देती है. अपने इस काम को खिलाड़ियों और आम जनता के बीच प्रचारित करने केलिए ही पीसीए ने यह नाटक मंचित करवाया. मिलबर्न से बड़ा उदाहरण इस उद्देश्य के लिए कौन हो सकता था?