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जेंटलमेन... अब मान भी लीजिए, यह सिर्फ एक गेम है, जेंटलमेंस गेम नहीं

क्रिकेट को जेंटलमेंस के दायरे से निकालकर कुछ नियमों को बदलने की जरूरत है

Shailesh Chaturvedi

किस्से डबल्यूजी ग्रेस से शुरू होते हैं. स्टंप से गिल्लियां उड़ जाने के बाद उन्होंने अंपायर से कहा था कि हवा बड़ी तेज चल रही है. कहा यही जाता है कि अंपायर ने जवाब दिया कि हां, ध्यान रखिएगा, कहीं पवेलियन जाते हुए आपकी कैप न उड़ जाए. जीत या आउट न होने या गेम में बने रहने के लिए किसी भी हद तक जाना वहां से शुरू होता है.

फिर बॉडी लाइन का वक्त आया. शरीर पर निशाना साधकर गेंदबाजी. उस दौर में, जब हेलमेट समेत ऐसा कुछ नहीं होता था, जो आपके शरीर और गेंद के बीच दीवार बने. कांड होते रहे, क्रिकेट जेंटलमेंस गेम बना रहा. वेसलीन कांड से लेकर एल्यूमीनियम का बैट इस्तेमाल करना. अंडरआर्म बॉलिंग से लेकर मैच फिक्सिंग, सब कुछ हुआ. फिर भी क्रिकेट को जेंटलमेंस गेम कहा जाता रहा.


इन सबके बीच गेंद से छेड़छाड़ की खबरें आती रहीं. सबसे ज्यादा आरोप पाकिस्तान पर लगे. खासतौर पर उस जमाने में, जब इमरान खां कप्तान हुआ करते थे. साथ में सरफराज नवाज जैसे गेंदबाज थे. एक भारतीय क्रिकेटर ने बताया था कि पाक टीम में एक-दो खिलाड़ी कोल्ड ड्रिंक की बोतल के ढक्कन रखते थे. उनसे खुरच कर गेंद को ‘तैयार’ किया जाता था. तैयार का मतलब था रिवर्स स्विंग या ज्यादा स्विंग के लिए तैयार करना.

टेंपरिंग का मतलब है गेंद को स्विंग के लिए तैयार करना

गेंद को ‘तैयार’ करने का वो हुनर इमरान, वसीम अकरम, वकार यूनुस से लेकर चला आता रहा. किसी एक सेशन में अचानक गेंद ज्यादा स्विंग होती, तो शक होता कि कहीं गेंद को ‘तैयार’ तो नहीं किया गया? हुनर भारतीयों ने भी सीखा. ऐसा करते हुए भारतीय फंसे भी हैं. राहुल द्रविड़ को गेंद से छेड़छाड़ या टेंपरिंग के लिए सजा दी जा चुकी है. सचिन तेंदुलकर समेत लगभग आधी भारतीय टीम फंस चुकी है. वह दक्षिण अफ्रीका की ही बात है.

अब मामला ऑस्ट्रेलिया का है. दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टेस्ट में उनका एक खिलाड़ी गेंद ‘तैयार’ कर रहा था. इस खिलाड़ी यानी कैमरन बेनक्राफ्ट को तो गेंद ‘तैयार’ करने से कोई फायदा नहीं. वो तो बल्लेबाज हैं. टीम गेम में टीम के लिए वो ऐसा कर रहे थे. बाद में, ऑस्ट्रेलियाई कप्तान स्टीवन स्मिथ ने मान भी लिया कि ऐसा लीडरशिप ग्रुप के कहने पर किया गया. उन्होंने गलती मानी.

स्मिथ गलती न मानते तो क्या होता

स्टीव स्मिथ वैसे भी गलती करने और मानने के लिए जाने जाते हैं. याद कीजिए भारत के साथ सीरीज, जब स्मिथ ने डीआरएस लिया जाए या नहीं, इसके लिए ड्रेसिंग रूम से सहायता मांगी थी. उन्होंने ड्रेसिंग रूम की तरफ देखा था. उसके बाद उन्होंने कहा कि वो ‘ब्रेन फेड’ था. उन्होंने गलती स्वीकार ली थी. एक बार फिर उन्होंने गलती मानी है. उन्होंने भरोसा भी दिलाया है कि आगे ऐसा नहीं होगा. लेकिन क्या यह भरोसा उन्हें सजा से बचाने के लिए काफी होना चाहिए.

जब क्रिकेट का मैच फिक्सिंग कांड चल रहा था, उस दौरान हैंसी क्रोनिए ने गलती मानी थी. जिस वक्त यह खबर आई, मैं एक बड़े क्रिकेट प्रशासक के पास बैठा था. उन्हें खबर मिली तो पहली प्रतिक्रिया थी, ‘बेवकूफ है. भारतीयों से सीखना चाहिए. हम कितनी भी गलतियां कर लें, मानते नहीं हैं.’ अब भी माना जाता है कि क्रोनिए अगर गलती न स्वीकारते तो शायद बच जाते, जैसे तमाम भारतीय क्रिकेटर बचे हैं. लेकिन उन्होंने गलती मानी और उसके बाद सजा से बचने का कोई तरीका नहीं था.

ऑस्ट्रेलियन टीम की बॉल टेंपरिंग का मामला मैच फिक्सिंग जितना गंभीर तो नहीं है. लेकिन अगर कप्तान ने गलती स्वीकार की है, तो किसी को तो सजा भुगतनी होगी. एक सजा वो, जो आईसीसी देगा. हालांकि आईसीसी की सजा से कभी किसी टीम को कोई फर्क नहीं पड़ता. दूसरी सजा, जो क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया दे सकता है. ऑस्ट्रेलिया से इस मामले में विरोध के सुर उठने लगे हैं.

ऐसे में कोई बड़ा फैसला तो लेना होगा. लेकिन इस बीच हमें दूसरे मुद्दों पर भी बात करने की जरूरत है. क्या वाकई बॉल टेंपरिंग बहुत बड़ा गुनाह है? इसमें कोई शक नहीं कि यह खेल भावना के खिलाफ है. लेकिन अगर टेंपरिंग की कोशिश के बाद गेंद को चेक किया गया और उसे खेल जारी रखने लायक माना गया, तो फिर टेंपरिंग हुई कहां? गेंद तो ठीक थी. ...और अगर अंपायर हर कुछ ओवर के बाद गेंद चेक करते ही हैं, तो फिर दिक्कत क्या है. अगर अंपायर ने पांच रन काटने लायक नहीं समझा, फिर टेंपरिंग कहां हुई.

इसे कुछ लोग कुतर्क भी मानेंगे. है भी ऐसा. लेकिन याद कीजिए, जब ग्रेग चैपल ने अंडरआर्म गेंदबाजी कराई थी, तो बहुत आवाजें उठी थीं. उन्हीं के भाई इयन चैपल ने अपने बड़े भाई से बात करना बंद कर दिया था. लेकिन ग्रेग ने उस वक्त नियम-कायदे के हिसाब से ही काम किया था. उसके बाद ही नियम बदला गया. जिसमें साफ हुआ कि अंडरआर्म गेंदबाजी नहीं की जा सकती.

अंपायर को तो निरीक्षण के बाद भी गेंद बदलने लायक नहीं लगी

यहां भी, अगर टीवी कैमरे नहीं होते, तो शायद ही मामला सामने आता. अंपायर ने बेनक्राफ्ट से बात ही तब की, जब बड़ी स्क्रीन पर उन्हें कुछ छिपाते दिखाया गया. उसके बाद भी वो गेंद में कोई बदलाव नहीं पकड़ सके और खेल जारी रहा. क्रिकेट जेंटलमेंस गेम तो कभी नहीं रहा. लेकिन अब समय आ गया है कि आधिकारिक तौर पर यह बात स्वीकार कर ली जाए. मान लिया जाए कि यहां गेम जीतने के लिए हर रणनीति अपनाई जाएगी. जरूरी है कि टेंपरिंग के नियमों को फिर से जांचा-परखा जाए. जरूरत होने पर इसमें बदलाव किया जाए. इसके साथ ही मान लिया जाए कि क्रिकेट न जेंटलमेंस गेम था, न है और आगे तो किसी हाल में नहीं रहेगा.