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क्या किसी क्रिकेटर की काबिलियत का पैमाना उसका खेल नहीं, अंग्रेजी है?

सरफराज अहमद की अंग्रेजी का मजाक बनाने वालों को भारत-पाकिस्तान ने मिलकर दिया जवाब

Sumit Kumar Dubey

पाकिस्तान के कप्तान सरफराज अहमद को आप और हम किस वजह से जानते हैं? सीधा सा जवाब है, उनकी बल्लेबाजी, उनकी विकेट कीपिंग, उनकी कप्तानी या फिर यूं कहें कि क्रिकेट के उनके खेल के लिए. क्रिकेट के मैदान पर अपने खेल की वजह से कई बार सरफराज अहमद को तारीफें मिली होंगी. कई बार अपनी गलतियों की वजह से वे आलोचनाओं के केंद्र में रहे होंगे. जाहिर है कि सरफराज को इस बात का कोई गिला भी नहीं होगा. लेकिन चैंपियंस ट्रॉफी में पिछले दिनों पाकिस्तानी कप्तान एक ऐसी वजह के चलते मजाक के पात्र बने जिसका उनके खेल से कोई वास्ता नहीं है. वह वजह है अंग्रेजी !

सरफराज ने श्रीलंका के खिलाफ ग्रुप मुकाबले में शानदार पारी खेल कर अपनी टीम को सेमीफाइनल में पहुंचाया. जिसके बाद वह प्रेस कॉफ्रेंस करने पहुंचे. इस प्रेस कॉफ्रेंस के बाद इसका एक वीडियो इंटरनेट पर जमकर वायरल हुआ. ताज्जुब की बात यह है कि इस वीडियो के वायरल होने की वजह सरफराज की शानदार पारी नहीं थी. बल्कि इस वीडियो के जरिए सरफराज खान की खराब अंग्रेजी का इंटरनेट पर जमकर मजाक बनाया गया. सरफराज अहमद एक ऐसी भाषा में पारंगत ना होने के चलते व्यंग झेल रहे थे, जो ना तो उनकी मातृभाषा है और ना ही उनके खेल से इसका कोई ताल्लुक है.


खुद की इंग्लिश भले पासिंग मार्क्स लाने लायक ना हो लेकिन सोशल मीडिया पर लोगों ने सरफराज को जमकर ट्रोल किया. इंटरनेट पर लतीफे बनाने का काम करने वाली एक साइट ने सरफराज के वीडियो को भुनाने की भरपूर कोशिश की. लेकिन ऐसा नहीं है इंटरनेट पर बस दूसरों पर हंसने वालों का ही कब्जा हो. कुछ भारतीयों ने सरफराज का मजाक बना रही इस वेबसाइट को उसी के फेसबुक पेज पर उसे जमकर लताड़ लगाई और इस साइट को मजबूर होकर सरफराज के वीडियो को वापस लेना पड़ा. साइट को फटकार लगाने वाले भारतीयों के इस सराहनीय कदम को पाकिस्तान में हाथों-हाथ लिया गया. भारतीयों की जमकर तारीफ की गई.

सरफराज की खराब अंग्रेजी पर बने लतीफों के विरोध ने भारत और पाकिस्तान को, कम से कम ट्विटर पर तो एकजुट कर ही दिया. लेकिन सवाल अब भी बाकी है कि क्या किसी खिलाड़ी के लिए नफासत भरी अंग्रेजी आना इतना जरूरी है ? जवाब ना भी है और हां भी है.

ना इसलिए है क्योंकि दुनिया के बाकी हिस्सों में खिलाड़ियों को उनकी भाषा की बजाय उनके खेल के लिए इज्जत दी जाती है. मौजूदा वक्त में टेनिस खिलाड़ी राफेल नडाल, फुटबॉलर लियोनेल मेसी और क्रिस्टियानो रोनाल्डो इसकी नजीर हैं. अंग्रेजी इनमें से किसी भी खिलाड़ी की मातृभाषा नहीं है. और उन्हें इसमें पारंगत होने की दरकार भी नहीं हैं.

लेकिन हां अगर आप भारतीय उपमहाद्वीप के खिलाड़ी हैं, तो आपके लिए अंग्रेजी में हुनरमंद होना जरूरी है. पाकिस्तानी क्रिकेटरों का तो खराब अंग्रेजी के चलते मजाक बनता ही रहा है. उत्तर भारत के छोटे शहरों से आने वाले क्रिकेटर भी इस भाषाई अभिजात्य वर्ग के ठहाकों की वजह बनते रहे हैं.

आखिर क्या वजह है कि अंग्रेजी हमारी मातृभाषा नहीं है, लेकिन फिर भी इसे अनिवार्यता का जामा पहना कर हमारे खिलाड़ियों पर लाद दिया जाता है. क्या इससे खिलाड़ियों के मन में असुरक्षा की भावना नहीं आती होगी ? अंग्रेजी में ही एक कहावत है कि ‘इंग्लिश इज अ लैंग्वज,नॉट अ मेजर ऑफ इंटेलीजेंस ‘

जब तक हम लोग इस कहावत का मर्म नहीं समझेंगे तब तक कोई ना कोई सरफराज अहमद इस ‘भाषाई आतंकवाद‘ का शिकार बनता रहेगा. और हम गुलामी की मानसिकता में जीते रहेंगे.