view all

अजय माकन ने रखी थी इस ऐतिहासिक फैसले की नींव, जानिए कितना बदलेगा बीसीसीआई

क्रिकेटप्रेमी आरटीआई के जरिए बीसीसीआई से उसके कामों की जानकारी भी मांग सकेंगे

Sachin Shankar

जब भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) की बात होती है तो समझने वाली सबसे जरूरी चीज यह है कि इसका मूल क्रिकेट नहीं बल्कि इसका कंट्रोल है. बीसीसीआई आज एक कार्पोरेट कंपनी बन चुका है. जिसकी कुल परिसंपत्तियां करीब चार हजार करोड़ रुपए की हैं और जिसके पास हर साल कई हजार करोड़ रुपए का राजस्व आता है. दुनिया के सबसे अमीर इस क्रिकेट बोर्ड पर अंकुश लगाने की तैयारी तो बहुत पहले से शुरु हो गई थीं. लेकिन सोमवार को केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी)  ने बीसीसीआई को सूचना के अधिकार (आरटीआई) के अंतर्गत लाकर बड़ा धमाका कर दिया. हालांकि इस तरह की पहली कोशिश 2012 में तत्कालीन खेल मंत्री अजय माकन ने की थी.

माकन ने की थी पहली कोशिश 


माकन ने बीसीसीआई को खेल विधेयक के अंर्तगत लाने का प्रयास किया था ताकि वह आरटीआई के तहत आ सके. पर संसद में आने से पहले ही इस प्रस्ताव को गिरा दिया गया. लेकिन 2013 में आईपीएल में सट्टेबाजी और स्पॉट फिक्सिंग का खुलासा होने से बीसीसीआई के काम काज को लेकर खलबली मच गई. शीर्ष अदालत ने बीसीसीआई में पारदर्शिता और सुधार लाने के लिए पूर्व चीफ जस्टिस आरएम लोढा की अगुआई में एक समिति बनाई. इस समिति ने अपनी रिपोर्ट जनवरी 2016 में सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी. समिति ने जो तमाम सुझाव दिए थे, उसमें ये सबसे अहम था कि बीसीसीआई को आरटीआई के दायरे में लाया जाना चाहिए.

लोढा समिति के ज्यादातर सुझावों पर तो बीसीसीआई अमल कर दिया, लेकिन आरटीआई के दायरे में आने से वो हमेशा बचती रही. सुप्रीम कोर्ट ने 2016 में अपने एक फैसले में भारतीय विधि आयोग से बीसीसीआई को आरटीआई के तहत लाने के लिए कानूनी जरुरतों की पड़ताल करने को कहा. विधि आयोग ने इस साल की शुरुआत में केंद्र सरकार से सिफारिश की कि पारदर्शिता बढ़ाने और भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए बीसीसीआई को राष्ट्रीय खेल संघ (एनएसएफ)  के तौर पर वर्गीकृत किया जाए और उसे जवाबदेह बनाने के लिए आरटीआई के दायरे में लाया जाए. बता दें कि बीसीसीआई को प्राइवेट बॉडी होने के कारण आरटीआई के तहत छूट मिली हुई थी. वर्तमान में बीसीसीआई तमिलनाडु सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत दर्ज हैलेकिन विधि आयोग ने इसमें बदलाव की सिफारिश की है.   

विधि आयोग के बाद सीआईसी ने दिया फैसला

विधि आयोग का मानना था कि बीसीसीआई का दर्जा एक जन निकाय की तरह हो और बीसीसीआई से जुड़े हुए जरूरी मामलों को आरटीआई एक्ट के तहत लाया जाए. जिससे हर किसी को बीसीसीआई से जुड़े हुए मसलों को जानने का अधिकार मिले. विधि आयोग के अनुसार ये इसलिए जरूरी है क्योंकि बीसीसीआई को कर छूट और भूमि अनुदानों के तौर पर संबंधित सरकारों से अच्छा खासा वित्तीय लाभ मिलता है. साथ ही बीसीसीआई देश और उसके राष्ट्रीय झंडे व गान का इस्तेमाल करता हैसरकार उसके खिलाड़ियों को अर्जुन और अन्य खेल सम्मान देती है.

विधि आयोग की इस सिफारिश पर भी जब सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगी तो केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) ने पहले तो पूछा कि आखिर क्यों नहीं ऐसा कर दिया जाए? सीआईसी ने सोमवार को अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा किबीसीसीआई अब आरटीआई के अंतर्गत काम करेगा और इसकी धाराओं के अंतर्गत देश के लोगों के प्रति जवाबदेह होगा. सूचना आयुक्त श्रीधर आचार्युलू का मानना है, 'लंबे समय से चली आ रही इस अनिश्चितता पर रोक लगाना सीआईसी का काम है.

गीता रानी ने पूछे थे सवाल

यह मसला सीआईसी के सामने तब आया जब खेल मंत्रालय आरटीआई आवेदक गीता रानी को संतोषजनक जवाब नहीं दे सका. गीता रानी ने उन प्रावधानों और निर्देशों की जानकारी मांगी थी जिनके तहत बीसीसीआई भारत का प्रतिनिधित्व और देश की टीम का चयन करता है.

आवेदक ने पूछा था कि बीसीसीआई द्वारा चुने गए खिलाड़ी उसके लिए खेलते हैं या भारत के लिए और एक निजी संघ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व कैसे कर सकता हैइसके अलावा अंतरराष्ट्रीय टूर्नमेंटों के लिए टीम चुनने का अधिकार बीसीसीआई को देने में सरकार का क्या फायदा है?

मंत्रालय ने कहा कि उसके पास कोई जानकारी नहीं हैक्योंकि बीसीसीआई आरटीआई अधिनियम के तहत सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं है. सरकार ने संसद में पिछले तीन साल में कई बार लाचारी से जवाब दिया है कि बीसीसीआई बतौर राष्ट्रीय खेल संस्था न तो भारतीय ओलिंपिक संघ और न ही भारत सरकार में पंजीकृत है. खुद बीसीसीआई ने कई कोर्ट केस में शपथ पत्र दाखिल कर रखे हैं कि खिलाड़ी उसके लिए खेलते हैं न कि भारत के लिए. आरटीआई एक्ट के तहत लाए जाने पर बीसीसीआई पर क्या असर होंगे.

दायर हो सकेगी जनहित याचिका

बोर्ड के फैसलों के प्रति लोग उसके खिलाफ जनहित याचिका दायर कर सकेंगे. साथ ही क्रिकेटप्रेमी आरटीआई के जरिए बीसीसीआई से उसके क्रिया-कलापों की जानकारी भी मांग सकेंगे.

टीम चयन पर होंगे सवाल

खिलाड़ियों के चयन और किसी को टीम से निकालने के अलावा बीसीसीआई द्वारा आईसीसी या किसी अन्य देश के बोर्ड के साथ किए जाने वाले अनुबंधों पर आम जनता द्वारा पीआईएल दाखिल की जा सकेंगी. कुछ ऐसा ही प्रसारण सहित बाकी अधिकारों की बोली व अन्य बातों पर भी लागू होगा.

पूरी तरह खत्म हो जाएगा एकाधिकार

सबसे धनी खेल संस्था का एकाधिकार पूरी तरह खत्म हो जाएगा. आने वाले दिनों के भीतर बीसीसीआई में बड़े बदलाव होंगे. जहां सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में पहले से ही क्रिकेट प्रशासकीय समिति बोर्ड के कामों को अंजाम दे रही हैतो वहीं आरटीआई एक्ट लागू होने पर बोर्ड को और ज्यादा पारदर्शी और जवाबदेह बनाएगी.