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जन्मदिन विशेष, वीवीएस लक्ष्मण : वांगीपुरप्पु वेंकट साई से वेरी वेरी स्पेशल तक

भुलाए नहीं भूलेगी वीवीएस की 2001 में कोलकाता टेस्ट की वह पारी 

Sachin Shankar

हालांकि उस टेस्ट को 16 साल बीत चुके हैं, लेकिन हम भारतीय आज भी उस जीत को ऐसे याद करते हैं मानों यह अभी कुछ दिन पहले की बात हो. 2001 में कोलकाता में आस्ट्रेलिया के खिलाफ दूसरे टेस्ट में भारतीय टीम ने पासा पलटने का ऐतिहासिक करिश्मा करके भारतीय क्रिकेट को एक नया हीरो दिया था. यह और कोई नहीं, वांगीपुरप्पू वेंकट साई लक्ष्मण थे. हैदराबाद के जटिल नाम लेकिन सरल खेल वाले खिलाड़ी. उसके बाद से ही मानों वह ऑस्ट्रेलिया के लिए बुरा ख्वाब बन गए. उन्होंने हमेशा इस टीम के खिलाफ अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया. पहले बात कोलकाता टेस्ट की.


जब लक्ष्मण ने लिखी वापसी की पटकथा

मुंबई में खेले गए पहले टेस्ट में भारत ताकतवर ऑस्ट्रेलियाई टीम से तीन दिन में ही पिट चुका था. कोलकाता में भी तीसरे दिन उसने 274 रन की बढ़त लेकर भारत को फॉलोऑन के लिए मजबूर कर दिया था. भारत को हमेशा ऐसी स्थिति से उबारने वाले सचिन तेंदुलकर दूसरी पारी में दस रन बनाने के बाद पवेलियन लौट गए. तब भारत का स्कोर 100 रन से कुछ ही ऊपर था. तब शायद ही किसी को कोई उम्मीद रही होगी.

लक्ष्मण पहली पारी में राहुल द्रविड़ की जगह तीसरे नंबर पर मैदान पर आए. यह नंबर द्रविड़ के लिए तय था, क्योंकि वह इस स्थान पर शानदार खेलते थे सिवाय ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ. वहीं, लक्ष्मण पिछले चार साल से लगातार टीम से अंदर-बाहर होते रहे थे. उनका बल्लेबाजी क्रम भी हमेशा ऊपर नीचे होता रहा था. उस दिन उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के गेंदबाजों को बड़ी सहजता से खेला और अंतिम क्रम के बल्लेबाजों के साथ मिलकर अर्धशतक बनाया. लेकिन 50 रन से न तो मैच बचाए जा सकते हैं न किसी टीम का मान सम्मान. भारत एक बार फिर पराजय की कगार पर खड़ा हो गया था.

दूसरी पारी में जब द्रविड़ छठे नंबर पर क्रीज पर आए तो लक्ष्मण मौजूद थे और भारत पारी की एक  और हार अपने खाते में जोडऩे को तैयार था. लेकिन होनी में कुछ और लिखा था. चौथे दिन तक चमत्कार हो चुका था. सबने यह मान लिया था कि लक्ष्मण ने अब तक किसी भी भारतीय द्वारा खेली गई सर्वश्रेष्ठ पारी खेली है. इस दौरान वह एक के बाद एक रिकॉर्ड तोड़ते चले गए. इनमें सबसे महत्वपूर्ण था सुनील गावस्कर का 236 रन का रिकॉर्ड.

लक्ष्मण की पारी (281 रन) विश्व की सर्वश्रेष्ठ टीम के खिलाफ थी. ऐसी टीम तो एक भी रन आसानी से नहीं देती. सबसे बढक़र यह प्रदर्शन ऐसे समय था, जब मैच ड्रॉ होने की भी कल्पना नहीं की जा सकती थी, जीतना को बहुत दूर की बात थी.

बने भारतीय बल्लेबाजी के मजबूत स्तंभ

हालांकि यह पारी भी टीम में उनका स्थान स्थायी करने के लिए पर्याप्त साबित नहीं हुई. छह माह बाद उन्हें टीम से निकाल दिया गया. 2003 विश्व कप टीम में भी उनको जगह नहीं मिली. फिर आया भारत का वर्ष 2004 का ऑस्ट्रेलिया दौरा. जहां मेहमान क्रिकेटरों के सामने खुद को साबित करने की सबसे दुष्कर चुनौती उछलती है. दो माह लंबे इस दौरे पर लक्ष्मण ने 875 रन बनाते हुए खुद को साबित किया. उसके बाद एक क्रिकेट विशेषज्ञ ने लिखा था कि ऑस्ट्रेलियाई कप्तान रिकी पोंटिंग के लिए लक्ष्मण को आउट करने का तरीका ईजाद करने के बजाय जीवन का रहस्य खोज लेना कहीं आसान होता.

सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़ और सौरव गांगुली की भारतीय मध्यक्रम की तिकड़ी में अब लक्ष्मण का नाम जुड़ जाने से यह मजबूत चौकड़ी में बदल गई. आज के दमखम वाले इस खेल में लक्ष्मण आधुनिक क्लासिकी क्रिकेटर नजर आते थे. वह बड़े ही सुकून के साथ कलाई के सहारे अनगिनत किस्म के शॉट्स के जरिये रन जुटाते हुए गेंदबाजों के लिए खलनायक बन जाते थे.