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बर्थडे स्पेशल: वो महान स्पिनर जिसकी फिरकी के आगे बेबस हुए दिग्गज बल्लेबाज

भगवत चंद्रशेखर का बुधवार को 72वां जन्मदिन

Rajendra Dhodapkar

भारत के महान स्पिनरों में शुमार भगवत चंद्रशेखर का बुधवार को 72वां जन्मदिन हैं. भारत की मशहूर स्पिन चौकड़ी (चंद्रा, बेदी, प्रसन्ना, वेंकटराघवन) में से एक रहे चंद्रशेखर लंबी बाउंसिंग रन-अप के बाद तेज गुगली फेंकते थे. उनका खेल कभी-कभी पहेली-सा लगता था. तो आइये जानते हैं उनक बारे में कुछ अनसुनी बातें.

भगवत चंद्रशेखर का जन्म 17 मई 1945 को हुआ था. चंद्रशेखर के साथ भी यही था कि बल्लेबाज कभी जान नहीं सकता था कि उनकी गेंद किस दिशा में घूमेगी. बल्कि चंद्रशेखर का कहना था कि अक्सर यह उन्हें भी मालूम नहीं होता था. बचपन में पोलियो की वजह से उनका हाथ कमजोर हो गया था. यही कमजोरी उनकी ताकत बन गई. उनका हाथ सामान्य से ज्यादा घूम जाता था.


चंद्रा जितने शरीफ इंसान, उनकी गेंदें उतनी ही ज्यादा जटिल

वे अपनी कलाई को दाहिने हाथ से लेग स्पिन करने के तरीके से घुमाते थे. अगर कलाई कम घूमी तो गेंद लेग स्पिन होती थी. थोड़ी ज़्यादा घूमी तो टॉपस्पिन, और भी ज्यादा घूमी तो ऑफस्पिन यानी गुगली. वे ऐसे लेग स्पिनर थे जो लेगब्रेक कम, गुगली और टॉप स्पिन ज्यादा डालते थे. यह सब लगभग अच्छी खासी मध्यम तेज गति से.

मुझे उन्हें गेंदबाजी करते हुए देखने का सौभाग्य मिला है. उनकी टॉप स्पिन टप्पा पड़ने के बाद गोली की तरह तेज आती थी और अच्छी खासी शॉर्ट गेंदों पर भी बल्लेबाज हड़बड़ा कर विकेट गंवा बैठते थे. मैंने देखा था कि उनकी एक शॉर्ट गेंद पर बल्लेबाज पुल करना चाहता था. लेकिन उनकी गेंद तेजी से लगभग कंधे की ऊंचाई तक आ गई और बाहरी किनारा लेकर विकेटकीपर के दस्तानों में समा गई. चंद्रा निहायत शरीफ और सरल इंसान हैं.

रिचर्ड्स को नजर आए थे दिन में तारे

चंद्रा की गेंद पर विवियन रिचर्ड्स जैसे बल्लेबाज को भी दिन मे तारे नजर आ जाते थे. विवियन रिचर्डस अपना पहला टेस्ट बेंगलूर में 1973 में खेले थे. उस टेस्ट की दोनों पारियों में चंद्रा ने उन्हें 3 और 4 रन पर चलता कर दिया. दिल्ली में अगले टेस्ट में रिचर्ड्स ने 192 रन बनाए. लेकिन उस टेस्ट मैच में चंद्रा नहीं खेले थे. कुछ साल बाद भारत के इंग्लैंड दौरे पर एक मैच में दोनों का फिर सामना हुआ जहां रिचर्ड्स सॉमरसेट से खेल रहे थे. नतीजा फिर चंद्रा के पक्ष में हुआ. यूं ही नहीं रिचर्ड्स कहते हैं कि भारत की स्पिन चौकड़ी, तेज गेंदबाजों की किसी चौकड़ी जैसी ही खौफनाक थी.

चंद्रा का नियंत्रण लेंथ लाइन पर जरा कम था. इसलिए उनके पिटने का काफी अंदेशा रहता था. लेकिन वे कभी भी खतरनाक गेंद डालकर विकेट लेने की क्षमता रखते थे. वे जब लय में होते या विकेट पिच अनुकूल होती तो चार पांच ओवर में सारी टीम को चलता कर सकते थे. भारत की कई जीत में उनकी बड़ी भूमिका रही रही है. 1971 मे इंग्लैंड में भारत की पहली जीत में उनके 38 पर 6 विकेट तो दंतकथाओं का हिस्सा बन चुके हैं.

मुकेश के गानों के दीवाने हैं चंद्रशेखर

चंद्रा की शराफ़त और संगीत प्रेम के भी कई किस्से हैं. वे पुराने हिंदी फिल्मी संगीत, खासतौर पर मुकेश के गानों के बड़े प्रेमी हैं. एक किस्सा रामचंद्र गुहा की किताब ‘स्पिन एंड अदर टर्न्स’ में है. मुंबई और कर्नाटक के बीच एक मैच में चंद्रा की एक गेंद सुनील गावस्कर के बल्ले के बिल्कुल करीब से गुजर गई. गावस्कर का विकेट अक्सर मैच में निर्णायक साबित होता था.

गावस्कर की विकेट लेने से जरा सा चूकने के बाद चंद्रा, गावस्कर के पास गए और बोले –‘सुना क्या?’ वो अपनी गेंदबाजी की नहीं, एक आवाज की बात कर रहे थे. दरअसल, मैदान के बाहर कहीं से मुकेश के एक गाने की आवाज आ रही थी.