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जन्मदिन विशेष: लाला अमरनाथ एक भारतीय, जिनको पाकिस्तानी भी बेइंतहा प्यार करते थे

लाला अमरनाथ की शख्सियत के तमाम पहलू उनके बड़े बेटे सुरिंदर अमरनाथ की जुबानी

Surinder Amarnath

डैडी को याद करता हूं, तो एक पिता भी याद आता है और एक कोच भी. उनके लिए पहली याद ऐसे कोच की आती है, जिसके लिए कंप्रोमाइज शब्द बना ही नहीं थी. बेहद सख्त, अनुशासनप्रिय, समय के पाबंद, हर काम में सौ फीसदी कोशिश. यही मेरे डैडी लाला अमरनाथ की पहचान थी.

हमारी क्लास घर में भी चलती रहती थी. कभी-कभी, या यूं कहूं कि अक्सर हम डांट खाते थे. मुझे याद है कि स्कूल में था. उस वक्त लखनऊ में हमारा कैंप लगा था. शायद अंडर-18 का था. कैंप शुरू होने वाला था.


आमतौर पर इस तरह के कैंप में बैटिंग-बॉलिंग की प्रैक्टिस होती थी. साथ में एक-दो राउंड ग्राउंड के लगाने होते थे. डैडी ने हमें बुलाया. हम रात में पहुंचे. उन्होंने कहा कि अब जाओ, सो जाओ. सुबह पौने चार बजे उठ जाना. हम किसी तरह उठे. हुक्म आया कि 4.45 यानी पौने पांच बजे ग्राउंड पर पहुंचना है.

हम पहुंचे. एक्सरसाइज शुरू हुई. 5-7 राउंड ग्राउंड के लगवा दिए. बीच-बीच में 2-2, 5-5 मिनट के ब्रेक होते थे. आठ बज गए. ब्रेकफास्ट किया. उसके आधे घंटे बाद फील्डिंग की प्रैक्टिस शुरू हो गई. गर्मियों के दिन थे. साढ़े दस बज गए. हालत खराब थी. अब उन्होने कहा, रूम में जाओ और खा-पी लो. साढ़े तीन बजे तैयार रहना. इसके बाद करीब सात बजे तक हमारी बैटिंग और बॉलिंग की प्रैक्टिस की बारी थी.

सख्त और गर्ममिजाज थे लाला अमरनाथ

उसी कैंप की बात है. मेरे एक शॉट पर वो लगातार टोक रहे थे. मैं स्वीप की जगह टैप कर रहा था. दूर खड़े थे. एक-दो बार उन्होंने जोर से शॉट खेलने को कहा. मैं फिर भी टैप करता रहा. उसके बाद उन्होंने दूर से जो गाली दी. किसी ने उम्मीद नहीं की थी. वहां जितने बच्चे थे, उन्हें समझ आ गया कि अगर अपने बच्चे के साथ ऐसा है, तो उनके साथ क्या होगा. उन्हें पसंद नहीं था कि उनकी बात को न माना जाए. वो कहते थे कि अगर मैं कोच हूं, तो तुम्हें वही करना है, जो मैं कह रहा हूं. अपने आप कुछ नहीं.

घर की बात है. दिल्ली में हम रहते थे. दिसंबर का महीना था. 1965-66 की बात होगी. जबरदस्त ठंड थी. हमारे घर में ठंड और ज्यादा होती थी, क्योंकि बाहर तीन गार्डन थे. रात दस बजे मां कमरे में आईं. कहा- डैडी ड्राइंग रूम में बुला रहे हैं. छोटे (मोहिंदर) को भी ले आना.

मैं और मोहिंदर कमरे में गए. बैट लेकर बैठे थे. कहा- बैट पकड़ो. फिर मुझे कहा कि तुम लेफ्ट हैंडर बैट्समैन हो. एक ऑफ स्पिनर ओवर द स्टंप गेंदबाजी कर रहा है. उसने फ्लाइटेड बॉल मिडिल और ऑफ स्टंप पर गेंदबाजी की. तुम उसे कैसे खेलोगे. मैं बड़ी नींद में था, लेकिन तब तक नींद उड़ गई. मैंने कहा कि लाइन में आकर कवर या एक्स्ट्रा कवर की तरफ खेलूंगा. उसके बाद उन्होंने मोहिंदर से पूछा. उसने कहा कि मैं भी ऐसा ही करूंगा. डैडी ने मुझसे कहा – सही कहा. फिर मोहिंदर से बोले – उससे सुन लिया, तो बोल दिया!

कई साल बाद मैंने उनसे पूछा कि आखिर ऐसा क्या था कि इतनी रात में उन्होंने सवाल पूछना जरूरी समझा. उन्होंने जवाब दिया- मेरे दिमाग में उस वक्त वो शॉट चल रहा था. मुझे लगता है कि जो विचार जब दिमाग में आए, उसी वक्त पूछ लेना चाहिए. वरना फिर वो रह जाता है. इससे समझ आता है कि डैडी के दिमाग में हमेशा क्रिकेट की ही बातें चलती थीं. वो दिन-रात सिर्फ क्रिकेट के बारे में ही सोचते थे.

टैलेंट को परखने में महारत हासिल थी

उनकी खासियत थी कि युवाओं को बहुत मौके दिए. जयसिम्हा, विजय मेहरा जैसे तमाम खिलाड़ी हैं, जिनके टैलेंट को उन्होंने बहुत जल्दी परख लिया. कोच के तौर पर उनका जवाब नहीं था. कोच के तौर पर उनकी सख्ती भी इसी वजह से थी. जैसे, हमें फिल्म देखने की इजाजत नहीं थी. मैच के दौरान या रात का शो देखने की तो हरगिज नहीं. डाइटिंग का खास खयाल रखते थे. रात को दस बजे सोना और जल्दी उठना जरूरी था. दोपहर में न तो वो सोते थे, न किसी और का सोना उन्हें पसंद था.

खाने को लेकर वो हमेशा कहते थे कि कम खाओ. डांटते थे कि क्या बारात में आए हो? चावल कतई नहीं खा सकते थे. उबली सब्जी, फल, सूप जैसी चीजों की ही इजाजत थी. कई बार वो मेरा रणजी मैच देखने आते थे. लंच के वक्त ड्रेसिंग रूम में सिर्फ ये देखने आ जाते थे कि कहीं मैं ज्यादा तो नहीं खा रहा!

इसी तरह, 1977 की बात है. मुझे इंग्लैंड के खिलाफ बैंगलोर टेस्ट के लिए बुलाया गया था. भारत सीरीज में पीछे था. सीरीज का चौथा टेस्ट था. डैडी वहीं थे, कमेंटरी कर रहे थे. लंच से पहले का समय था. टोनी ग्रेग ऑफ ब्रेक गेंदबाजी कर रहे थे. मैं बड़ा अजीब तरीके से खेल रहा था.

लंच का वक्त हुआ, तो डैडी ड्रेसिंग रूम में आए और पूछा कि क्या दिक्कत है. मैंने कहा कि एक तो वो बहुत लंबा है. दूसरा पिच टूटी है. उन्होंने कहा कि लंबा है, तो क्या हुआ. वो थोड़ी तेरी तरफ आ रहा है. तेरी तरफ तो बॉल आ रही है ना. उसको आने दे. तू उसकी तरफ क्यों जा रहा है. बॉल का इंतजार कर. लंच के बाद मैंने पहले ही ओवर में ग्रेग को दो चौके मारे. उसके बाद उसकी लाइन-लेंथ बिगड़ गई.

पाकिस्तान के साथ रिश्ते

पाकिस्तान के साथ उनके रिश्ते तो वाकई कमाल थे. 1978 की बात है. रावलपिंडी या मुल्तान में हमारे लिए एक एक ऑफिशियल डिनर था, जो गवर्नर ने दिया था. भारत और पाकिस्तान, दोनों टीमों के खिलाड़ी थे. ऑफिशियल उनसे बात कर रहे थे. गवर्नर भी थे. अचानक अनाउंसमेंट हुआ. बताया गया कि डैडी आ गए हैं. उसके बाद देखा, तो कोई ऑफिशियल हमारे आसपास नहीं था. सब डैडी को घेरे, उनके साथ थे. गवर्नर भी हमें छोड़कर उनके साथ खड़े हुए थे.

मुझे एक और किस्सा याद है. टीम पाकिस्तान गई थी. मैनेजर फतेहसिंह राव गायकवाड थे. एयरपोर्ट पर एक टीम बस थी और एक मर्सिडीज आई थी. मैनेजर साहब टीम के पास आए और कहा कि चलो बॉयज, हम लोग होटल में मिलते हैं. तुम लोग बस से जाओ. मैं गाड़ी से आता हूं. उन्हें पीछे खड़े सेक्रेटरी ने धीरे से समझाया कि ये गाड़ी आपके लिए नहीं है. वो हैरान कि ये किसके लिए है? सेक्रेटरी ने कहा कि ये लालाजी के लिए है. सरकारी गाड़ी है. उन्हें हमेशा स्टेट गेस्ट का दर्जा मिला. आप खुद समझ सकते हैं कि अगर 70 के दशक में ये हाल था, तो उनके प्लेइंग डेज में क्या होता होगा.

(5 अगस्त  2000 को लाला अमरनाथ का निधन हुआ था. सुरिंदर अमरनाथ टेस्ट क्रिकेटर हैं और लाला अमरनाथ के तीन बेटों में सबसे बड़े हैं. मोहिंदर और राजिंदर अमरनाथ उनके छोटे भाई हैं. यह लेख शैलेश चतुर्वेदी के साथ सुरिंदर अमरनाथ की बातचीत पर आधारित है)