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संडे स्पेशल: गुगली का नाम बहुत सुना होगा, बाकी कहानी हमसे सुनिए

क्रिकेट की खतरनाक गेंद गुगली कहां से आई, किसने नाम दिया गुगली

Rajendra Dhodapkar

पिछले हफ्ते हमने चंद्रशेखर की चर्चा की थी तो इस हफ्ते गुगली पर कुछ बात करना बनता है. गुगली क्रिकेट की एक खास गेंद है जो अक्सर किसी लेग स्पिनर के हुनर का मानदंड मानी जाती है. अगर कोई लेग स्पिनर बिल्कुल पता न लगने देते हुए और अचूक गुगली मार सकता है तो माना जाता है कि उसके हुनर में कोई कमी नहीं है. सुभाष गुप्ते गुगली फेंकने में माहिर थे. लेकिन शेन वॉर्न जैसे अपवाद भी हैं जो बिना गुगली के ही महान गेंदबाज थे.

गुगली का आविष्कार अंग्रेज क्रिकेटर बर्नार्ड बोज़ांक्वे ने किया था. बोज़ांक्वे अब से एक सौ चालीस साल पहले यानी सन 1877 में पैदा हुए थे. ठीकठाक प्रथम श्रेणी क्रिकेटर थे जो ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय और मिडिलसेक्स से खेलते थे. वे मध्यम गति गेंदबाज और अपेक्षाकृत बेहतर बल्लेबाज थे. गुगली के आविष्कार के बारे में उनके एक लेख से विस्तृत जानकारी मिलती है जो उन्होंने सन 1925 में लिखा था.


टेबल टेनिस खेलते हुए पहली बार गुगली की

बोज़ांक्वे लिखते हैं कि वे अपने एक मित्र के साथ टेनिस गेंद से खेल रहे थे. इस खेल में गेंद को सामने रखे टेबल पर इस तरह मारना था कि सामने वाला पकड़ न पाए. वहां उन्होंने लेगब्रेक की एक्शन से एक गेंद फेंकी. फिर उसी एक्शन से ऐसी गेंद फेंकी जो दूसरी तरफ मुड़ गई. बोज़ांक्वे ने कुछ दिन उस गेंद को फेंकने का अभ्यास किया और छोटेमोटे मैचों में उसे आजमाया.

पहली बार प्रथम श्रेणी मैच में गुगली का इस्तेमाल उन्होंने जुलाई सन 1900 में मिडिलसेक्स बनाम लेस्टरशायर मैच में किया. गुगली पर आउट होने वाले पहले बल्लेबाज़ का नाम उन्होंने "को" बताया है. को बाएं हाथ के बल्लेबाज थे और 98 रन पर खेल रहे थे जब एक गुगली पर वे स्टंप्ड कर दिए गए. यह गुगली बकौल बोज़ांक्वे चार टप्पे खाकर स्टंप तक पहुंची थी लेकिन कारगर साबित हुई.

ज्यादा मैच नहीं खेल पाए बोज़ांक्वे

बोज़ांक्वे बहुत अचूक किस्म के गेंदबाज नहीं थे. शायद इसीलिए उनका अंतरराष्ट्रीय करियर सात टेस्ट मैचों तक सीमित रह गया. हालांकि उनके आंकड़े ज़्यादा बुरे नहीं हैं. यह भी सही है कि गुगली की वजह से वे टेस्ट मैच खेल पाए. लेकिन लेंथ लाइन पर अगर उनका नियंत्रण बेहतर होता तो वे बहुत घातक हो सकते थे. उनके दौर के महान अंग्रेज बल्लेबाज़ सर पेल्हम वॉर्नर का कहना था कि अगर उनका नियंत्रण गेंदों पर बेहतर होता तो वे अपने दौर के सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज हो सकते थे.

इसके बावजूद वे काफी कामयाब खिलाड़ी रहे, प्रथम श्रेणी क्रिकेट में उन्होंने छह सौ से ज्यादा विकेट लिए और दस हजार के ऊपर रन बनाए. जिस मैच में वे लय में होते उसमें वे अकेले सामने वाली टीम को पैवेलियन में भेजने की कूवत रखते थे. ऑस्ट्रेलिया में अपने पहले ही ओवर में उन्होंने महान बल्लेबाज़ विक्टर ट्रंपर का विकेट लिया था.

क्रिकेट इतिहास में तो वे गुगली के अविष्कारक की तरह अमर हो गए जो बल्लेबाज को झांसा देने वाली पहली गेंद थी. लेकिन उनकी और गुगली की उस दौर में जो आलोचना हुई उससे भी उस दौर के क्रिकेट के बारे में कुछ दिलचस्प बातें पता लगती हैं. इस आलोचना का जिक्र और उसका जवाब भी उन्होंने उसी लेख में दिया है. सबसे पहली आलोचना यह हुई कि गुगली डालना बेईमानी है, क्योंकि आप लेग ब्रेक डालने का झांसा देकर ऑफब्रेक डालते हैं.

नैतिकता के दायरे से बाहर थी गुगली!

बोज़ांक्वे गुगली डालने को बेईमानी नहीं मानते. हालांकि वे यह मानते हैं कि यह क्रिकेट की नैतिकता के दायरे से थोड़ी बाहर की चीज है. उनका तर्क यह है कि है तो यह ऑफब्रेक ही, बस अलग एक्शन से डाली गई है. अगर बल्लेबाज़ इसे समझ ले तो इसे खेलना कोई मुश्किल नहीं है. एक आलोचना यह हुई कि गुगली डालना सीखने के चक्कर में गेंदबाजों की गेंदबाजी बिगड़ रही है.

यह भी आलोचना हुई कि गुगली की वजह से बल्लेबाज़ ऑफ साइड में अच्छे शॉट नहीं खेल पाते क्योंकि उन्हें हर वक्त अंदेशा रहता है कि गेंद ऑफ ब्रेक होकर अंदर आ जाएगी. ऐसा वह दौर था और ऐसी उस दौर की मान्यताएं थी. लेकिन गुगली का प्रचलन तेजी से बढ़ा और इसके साथ बल्लेबाज को झांसा देना भी क्रिकेट के मान्य तरीकों में शामिल हुआ जिससे आगे फ्लिपर, टॉप स्पिन और ‘दूसरा’ जैसी गेंदें भी प्रचलन में आईं. इस तरह बोज़ांक्वे ने सिर्फ गुगली का अविष्कार ही नहीं किया बल्कि एक परंपरा की भी शुरुआत की.