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दास्तान-ए-सेक्सुअल हैरेसमेंट: बोर्ड का अधिकारी करे तो छोड़ो यार, क्रिकेटर करे तो यौनाचार!

क्रिकेटरों के लिए बनी गाइडलाइंस के नियमों के अनुसार किसी को गंदे चुटकले सुनाना या अश्लील फोटो या साहित्य दिखाना यौनाचार है, ऐसी हरकत करने के लिए जरूरी नहीं है कि कोई आपके शरीर को छुए, बिना छुए भी हैरेसमेंट हो सकता है

Jasvinder Sidhu

भारत में यौनाचार या सेक्सुअल हैरेसमेंट के मामलों के इतिहास पर निगाह डालने से साफ दिखता है कि कथित आरोपियों को जांच से पहले अपना पद त्यागना पड़ा. सिर्फ अदालतों के फैसलों के बाद ही उनका भविष्य तय हुआ.

यौनाचार के नियम कुछ ऐसे हैं कि अगर पीड़ित सामने न भी आए तो कथित आरोपी के खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है. इस सब में यह हैरानी भरा है कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड को चला रही सुप्रीम कोर्ट की प्रशासक कमेटी बोर्ड के एक शीर्ष अधिकारी के खिलाफ कथित सेक्सुअल हैरेसमेंट के मामले को बेहद बेहूदा ढंग से निपटने में लगी है.


आरोपों में घिरे जौहरी

यह भी सही है कि इस तरह के आरोप किसी को बदनाम करने या किसी और मंशा से भी लगाए जा सकते हैं. लेकिन पहली नजर में लग रहा है कि कमेटी के मुखिया कथित यौनाचार में फंसे उक्त अधिकारी से सहानुभूति रखते हैं. संदेश यह भी जा रहा है कि वह आरोपी अधिकारी को बचाने में लगे हैं. ऐसा ना होता तो वह कमेटी की महिला सदस्य के बोर्ड के अधिकारी को बाहर करने की पुरजोर मांग को ना ठुकराते. भले ही जांच पूरी होने तक ही सही वह फैसला ले सकते थे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

बोर्ड के इस शीर्ष अधिकारी के खिलाफ आरोप संगीन है. उसे हटाने की मांग हो रही है. लेकिन बोर्ड में बतौर अधिकारी उसका मीटर चालू है यानी उसे हर साल मिलने वाले करोड़ों के वेतन पर अभी कोई रोक नहीं है और ना ही वह छुट्टी पर होने के बावजूद बोर्ड के कामकाज से वह बाहर है.

यह जानते हुए भी कि जिस ताकतवर पद पर अधिकारी तैनात है, वह किसी के साथ भी किसी तरह की ज्यादती कर सकता है. वह साथ काम करने वाली महिलाओं और लड़कियों के भविष्य को प्रभावित करने की स्थिति में है और उसी को प्रमोशन और वेतन बढ़ाने जैसे फैसले करने हैं.

यह सही है कि बोर्ड के इस अधिकारी के खिलाफ जो भी कहा गया है, वे आरोप मात्र हैं. लेकिन किसी को यह दावा भी नहीं करना चाहिए कि आरोप गलत है.

आधिकारियों के लिए नहीं है कोई गाइडलाइन 

यह भी बचकाना है कि विश्व के सबसे धनी क्रिकेट बोर्ड में ताकतवर अधिकारियों को यौनाचार को लेकर गाइडलाइन नहीं है. क्रिकेट बोर्ड ने जो तीन सदस्यीय कमेटी गठित की है, वह इस साल अप्रैल में बनी. यानी इस अधिकारी पर यौनाचार के आरोप लगने का बाद इसे बनाया गया. इस कमेटी की एक महिला सदस्य तो इस्तीफा भी दे चुकी है.

इसके ठीक विपरीत क्रिकेटरों के लिए यौनाचार के खिलाफ बने बोर्ड के नियम काफी रोचक हैं. पिछले साल बोर्ड ने सीनियर व हर आयु वर्ग की पुरुष और महिला टीमों के लिए,  ‘हंड्रेड थिंग्स ए प्रोफेशनल क्रिकेटर मस्ट नो’ (सौ ऐसी बातें जो हर पेशेवर क्रिकेटर को जरूर जाननी चाहिए), नाम की हैंडबुक तैयार की और यह सभी क्रिकेटरों को बांटी गई.

क्रिकेटरों के लिए है पूरी हैंडबुक 

इसमें सेक्सुअल हैरेसमेंट को लेकर एक सेक्शन हैं जो व्याख्या करता है कि आखिर किन परिस्थितियों को कोई क्रिकेटर यौनाचार मान कर अपनी शिकाय़त दर्ज कर सकता है.

क्रिकेटरों के लिए बनी गाइंडलाइंस के नियमों में से एक के अनुसार किसी को गंदे (डर्टी) चुटकले सुनाना या ऐसी अश्लील फोटो या साहित्य दिखाना यौनाचार है. ऐसी हरकत करने के लिए जरूरी नहीं है कि कोई आपके शरीर को छुए. बिना छूए भी हैरेसमेंट हो सकता है.

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क्रिकेटर इसकी शिकायत बोर्ड से कर सकते हैं और बोर्ड उसकी जांच करके सजा निर्धारित करेगा. वैसे क्रिकेट में अभी तक एक ही मामला सामने आया है. कुछ साल पहले आंध्रप्रदेश क्रिकेट टीम की दो लड़कियों ने एसोसिएशन के एक शीर्ष अधिकारी पर यौनाचार के आरोप लगाए थे.

कुल मिलाकर इस अधिकारी पर आरोप लगने से पहले क्रिकेट पाक-साफ ही था. फिर भी बोर्ड ने जो गाइडलाइंस बनाई हैं, वे काबिले तारीफ हैं. लेकिन अधिकारी के उपर लगे आरोपों के बाद जिस तरह से यह पूरा मामला चल रहा है, उसे देख कर लगता है कि बोर्ड मान कर बैठा है कि उसके अधिकारी कुछ गलत नहीं कर सकते. कम से कम क्रिकेटरों के लिए जो दिशा-निर्देश बनाए गए हैं, उसे देखकर तो यही लगता है.