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बॉल टेंपरिंग मामला : यह वैसा ही है कि मंत्री घोटाला करता रहे और प्रधानमंत्री को पता न हो!

अगर वाकई कोच डैरेन लीमन को बॉल टेंपरिंग का नहीं पता था तो उन्हें कोच बने रहने का हक नहीं

Shailesh Chaturvedi

टीम में मैच फिक्स हो रहे थे लेकिन सचिन तेंदुलकर को कुछ नहीं पता था. उन्होंने उस समय दिए अपने बयानों में भी कुछ ऐसा नहीं कहा, जो पुख्ता तौर पर इसे साबित करता हो. 2008 में मंकीगेट कांड हुआ, उसके बारे में सौरव गांगुली को कुछ नहीं पता. उनको पता होता तो हाल ही में आई अपनी किताब में उसका जिक्र करते. ठीक इसी तरह स्टीव स्मिथ, डेविड वॉर्नर और कैमरन बेनक्रॉफ्ट बॉल टेंपरिंग करते रहे और किसी को पता नहीं चला. कोच डैरेन लीमन को नहीं, टीम के तेज गेंदबाजों को भी नहीं जिन्हें मदद करने के लिए ऐसा किया जा रहा था. बाकी पूरी टीम अनजान थी. सिर्फ यही तीन दोषी थे, इसलिए क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने इन्हें सजा देने का फैसला कर लिया.

वाह, कितना विश्वसनीय लगता है ना. ठीक वैसे ही, जैसे टीम के कुछ खिलाड़ी मैच फिक्स कर रहे थे और बाकी किसी को हवा ही नहीं लगी! यह सवाल तो है ही कि आखिर कोच को कैसे पता नहीं चलेगा. लेकिन अगर वाकई डैरेन लीमन को कुछ नहीं पता था कि उनकी टीम के कप्तान और उप कप्तान अपने एक युवा साथी के साथ मिलकर क्या योजना बना रहे हैं, तो क्या उन्हें टीम के साथ बने रहने का हक है? इसका मतलब कि कप्तान और उप कप्तान का भरोसा ही उनके साथ नहीं था!


अभी जितना कुछ सामने आया है, उससे तो यही समझ आता है कि डेविड वॉर्नर ने प्लान बनाया. बेनक्रॉफ्ट उसे लागू करने पर राजी हुए. यह बात कप्तान स्मिथ को पता थी. यही जांच ऑस्ट्रेलियन बोर्ड ने की है. इससे आप सहमत या असहमत होना चाहें, तो आप पर है. इसका यही मतलब है कि जिस रोज यह बात सामने आई और स्टीव स्मिथ मीडिया से बात करने आए, तब उन्होंने लीडरशिप ग्रुप की जिम्मेदारी बताई. क्या लीडरशिप ग्रुप में यही दोनो आते हैं? यानी स्मिथ झूठ बोल रहे थे?

यह ऐसा ही है कि घोटाले होते रहें और प्रधानंत्री को पता न चले

भारतीयों को राजनीति के जरिए हालात समझने में हमेशा ज्यादा आसानी होती है. इसे यूं समझें कि देश में घोटाले होते रहें और प्रधानमंत्री को कुछ पता न चले. याद कीजिए कुछ साल पहले की मनमोहन सिंह सरकार के समय ऐसा ही हुआ था. तब सीएजी रिपोर्ट में कोयला घोटाले से लेकर कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाले के साथ कुछ और घोटालों पर बात हुई थी. लेकिन तब बताया यही जाता था कि मनमोहन सिंह को कुछ नहीं पता है. विपक्ष सहित तमाम जगहों से आवाज उठी थी कि अगर मंत्री घोटाले कर रहे हैं तो प्रधानमंत्री को क्यों नहीं पता. ...और अगर नहीं पता, तो क्या उसको प्रधानमंत्री रहने का हक है?

इसी तरह, हाल ही में नीरव मोदी कांड हुआ. इसमें भी जांच के शुरुआती दौर में जिन पर तलवार भांजी गई, वे पीएनबी के ‘छोटे’ लोग थे. छोटे मतलब, जिनके पास सबसे कम अधिकार थे. यानी ऑस्ट्रेलियन टीम के कैमरन बेनक्रॉफ्ट थे वो. उन पर सख्ती से जांच की गई. इस पर भी लगातार सवाल उठाया जा रहा है. दरअसल, सवाल ही यही है कि हम छोटे गुनहगारों पर ही क्यों बात करते हैं. बड़ों पर क्यों नहीं. और जब ‘बड़े लोग’ ये बताते हैं कि उन्हें कुछ नहीं पता था, तो इसे सच क्यों मान लिया जाता है.

हालांकि अपने सबसे बड़े बल्लेबाज को हटाना आसान फैसला नहीं

वैसे भी क्रिकेट के घोटालों में हमेशा कोशिश यही होती है कि जल्दी से जल्दी मामले को निपटा दिया जाए. क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया को इस बात का जरूर श्रेय देना पड़ेगा कि उन्होंने बड़े खिलाड़ी का लिहाज नहीं किया. इसमें कोई शक नहीं कि स्टीव स्मिथ सिर्फ ऑस्ट्रेलिया ही नहीं, दुनिया के बड़े बल्लेबाजों में एक हैं. अगर किसी का बैटिंग औसत 60 से ज्यादा हो, तो उसे आप कैसे बड़ा बल्लेबाज मानने से इनकार करेंगे. स्मिथ के साथ ही डेविड वॉर्नर ऑस्ट्रेलियाई टीम के सबसे बड़े नाम हैं. इस लिहाज से हमको आपको जरूर लगेगा कि बड़ा फैसला है. खासतौर पर अगर भारतीय घोटालों के नजरिए से इसे देखें. लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है.

लीमन अगर अनजान थे तो भी उन्हें हटा दिया जाना चाहिए

इस बात में कोई शक नहीं बचा था कि कप्तान और उप कप्तान के बगैर यह नहीं किया जा सकता था. वैसे तो कोच और कुछ गेंदबाजों की जानकारी के बगैर भी नहीं हो सकता. लेकिन स्मिथ ने प्रेस कांफ्रेंस में यह कहकर कि लीडरशिप ग्रुप का फैसला है, अपने लिए बचने के रास्ते बंद कर लिए. लीडरशिप ग्रुप में कप्तान और उप कप्तान होते ही हैं. बस, उन्हें गुनहगार मानकर लीडरशिप ग्रुप के बाकी लोगों को बरी कर दिया गया.

क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया का फैसला ऑस्ट्रेलियन क्रिकेट पर बड़ा असर डालेगा. एक साल का बैन स्टीव स्मिथ और डेविड वॉर्नर के करियर और ऑस्ट्रेलियन क्रिकेट पर बड़ा असर डाल सकता है. लेकिन अपने फैसले से क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया ने यह तय कर लिया कि फैसले का असर कोच, सपोर्ट स्टाफ और उन गेंदबाजों पर न पड़े, जिनके फायदे के लिए बॉल टेंपरिंग की जा रही थी. इस फैसले से उन्होंने नुकसान को कम से कम करने की कोशिश की है. साथ ही, यह संदेश तो दिया ही है कि टीम के किसी भी गुनाह के लिए ‘छोटे लोग’ ज्यादा जिम्मेदार होते हैं. भले ही हम और आप इससे सहमत न हों.