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‘हर कीमत पर जीत’ के पागलपन में ऑस्ट्रेलिया का दिमागी संतुलन काबिले तारीफ लेकिन भारत......?

स्टीव स्मिथ के आंसूओं पर जाने की जरूरत नहीं और न ही कैमरन बेनक्रॉफ्ट की फिर से माफी पर फिर से गौर करने की.

Jasvinder Sidhu

हिंदुस्तान में शायद ऐसा कभी नहीं होगा. 2013 में आईपीएल में स्पॉट फिक्सिंग हुई. तीन खिलाड़ी बैन हुए. दो टीमें लीग से दो साल के लिए बाहर निकाल दी गईं. टीमों के मालिक न केवल आईपीएल के मैचों में सट्टेबाजी करने के दोषी पाए गए बल्कि उन पर बुकियों को टीम की सूचनाएं देने का भी आरोप लगा. पूरी लीग की विश्वसनीयता समुद्र के तट पर पानी की लहर में किसी बच्चे के रेत के घर की तरह बह गई.

सुप्रीम कोर्ट ने इस आईपीएल के बारे में जो कहा, उसके दोहराना इस लीग को फिर से शर्मसार करेगा. लेकिन अरबों रुपये की लीग से एक भी प्रायोजक ने कभी नहीं कहा कि वह इस बदनाम लीग का हिस्सा बने रहना चाहता. सिडनी एयरपोर्ट पर मीडिया से मुखातिब स्टीव स्मिथ के आंसूओं पर जाने की जरूरत नहीं और न ही कैमरन बेनक्रॉफ्ट की फिर से माफी पर फिर से गौर करने की.


 

केपटाउन टेस्ट मैच में बॉल से साथ जालसाजी करने के लिए जो सजा इन दोनों और वाइस कप्तान डेविड वॉर्नर के मिलनी चाहिए, नियमों के हिसाब से वह मिल रही है. लेकिन इस पूरे प्रकरण में सबसे अहम साबित हुआ है ऑस्ट्रेलियन टीम की प्रायोजक और इनवेस्टमेंट कंपनी मैग्लान का अपना करार खत्म कर देना.

यह एक बड़ा और प्रशंसनीय कदम है. आखिर कोई कंपनी अपने ब्रांड को स्टार क्रिकेटरों के दम पर क्यों बेचना चाहती है! क्योंकि वे देश के युवाओं के हीरो हैं और आदर्श भी. खेल में धोखा करने वालों से साथ खड़ा होना अपराध है.

लेकिन भारत में कब ऐसा हुआ है ! गूगल महाराज के पास भी इसका जवाब नहीं है. आईसीसी ने अपने नियमों के तहत स्मिथ और बेनक्रॉफ्ट के खिलाफ फैसला सुनाया. क्रिकेट आस्ट्रेलिया पर कोई दबाव नहीं था इस सजा के स्तर को और उपर ले जाने का.

12 महीने का प्रतिबंध और उसके बाद 12 महीने तक कप्तानी की अयोग्यता की सजा साबित करती है कि क्रिकेट आस्ट्रेलिया खेल की भावना पर काली स्याही थोपने वालों के साथ कभी खड़ी नहीं होगी.

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में लगभग हर विशेषज्ञ “हर कीमत पर जीत” का मुरीद है. इसलिए वे मैचों के दौरान अभद्र स्लेजिंग और आक्रामक जिस्मानी भाषा के भी हिमायती हैं. “हर कीमत पर जीत” के जज्बे को समर्थन मिलेगा तो बॉल टेंपरिंग ही नहीं और बहुत कुछ ऐसा होने से नहीं रोका जा सकता, जो अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के मुंह पर कालिख पोत सकता है. लेकिन क्रिकेट आस्ट्रेलिया और मैग्लान ने जो फैसला किया है, उससे उम्मीद जगती है.

ऑस्ट्रेलिया में इस प्रकरण को लेकर कड़ी प्रक्रिया हुई हैं. जानकार स्मिथ को और कड़ी सजा देने के हिमायती हैं और वह भी तब जब उसने सार्वजनिक तौर पर माफी मांग ली है. क्या भारतीय क्रिकेट या उसे चलाने वालों से कभी ऐसी उम्मीद की जा सकती है!

टी-20 क्रिकेट का विरोध हो, (वह बात अलग है कि बाद में बीसीसीआई ने अपनी खुद बड़ी लीग खड़ी कर ली), डीआरएस, एंटी डोपिंग या एंटी करप्शन  या फिर सिडनी टेस्ट मैच में हरभजन व एंड्रयू सायमंड्स के विवाद हो, या फिर सचिन तेंदुलकर और राहुल द्रविड़ पर बॉल से साथ छेड़छाड़ करने के आरोप, भारतीय क्रिकेट चलाने वाले अधिकारियों ने आईसीसी और अपने साथी क्रिकेट बोर्डों को अनगिनत मुद्दों पर हमेशा उनकी औकात दिखाई है.

यहां तर्क दिया जा सकता है कि अपने खिलाड़ियों, बेशक वे दोषी भी हों तो, को तो बचाना ही चाहिए. शुक्र है कि क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया और मैग्लान इस तर्क के गुलाम साबित नहीं हुए. शायद इसलिए क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया के लिए भविष्य में ऐसे हालात नहीं आएंगे कि उसे कोर्ट की ओर से नियुक्त किसी प्रशासक कमेटी के हर हुक्म पर मासूम बिल्ली की तरह आदाब बजाना पड़े.