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ऑस्ट्रेलिया के लिए ये महज एक जीत नहीं है

युवा खिलाड़ियों का मैच जिताना बेहतर भविष्य का संकेत

Freddie Wilde

एडिलेड टेस्ट में ऑस्ट्रेलियाई जीत का लम्हा पहला टेस्ट खेल रहे दो खिलाड़ियों के साथ आया. मैथ्यू रेनशॉ और पीटर हैंड्सकॉम्ब क्रीज पर थे. ये एक संकेत था नए युग का. ऑस्ट्रेलिया ने तीन खिलाड़ियों को पहली बार टेस्ट खेलने का मौका दिया. होबार्ट टेस्ट की हार के बाद चार बदलाव किए. भले ही इस मैच का सीरीज के लिहाज से कोई खास मतलब न हो, लेकिन ऑस्ट्रेलियाई नजरिए से टेस्ट बेहद अहम था. ऑस्ट्रेलिया जीता, वो भी पहला टेस्ट खेल रहे दो लोगों के योगदान की वजह से.

भले ही ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेट में समस्याएं दिखाई दे रही हैं. उनमें से कुछ की जड़ें तो बहुत गहरी हैं. उसके बाद भी एडिलेड की जीत बताती है कि ऑसीज के पास स्तरीय खिलाड़ी हैं. खासतौर पर गेंदबाजी मजबूत है.


युवा और अनुभव का योगदान

रेनशॉ और हैंड्सकॉम्ब ने तो नतीजे में अपना योगदान दिया है, उसके अलावा उस्मान ख्वाजा और नैथन लॉयन का बड़ा योगदान रहा. दोनों अनुभवी खिलाड़ी हैं, लेकिन पिछले कुछ महीने से अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पा रहे थे.

भले ही ख्वाजा ने पर्थ में रन बनाए. लेकिन मुश्किल हालात में रन बनाने की उनकी क्षमताओं को लेकर सवाल पूछे जाते रहे हैं. अगर स्टीफन ओ’कीफ चोटिल नहीं होते, तो पूरी संभावना थी कि लॉयन को इस टेस्ट में जगह नहीं मिलती.

इन दोनों का मैच में प्रदर्शन भी करियर शुरू कर रहे लोगों के साथ नए युग की संभावनाओं को दिखा रहा है. ऑस्ट्रेलिया को नई प्रतिभाओं की जितनी जरूरत है, उतनी ही जरूरत ख्वाजा और लॉयन की है. ये लोग स्टीवन स्मिथ, डेविड वॉर्नर, मिचेल स्टार्क, जोश हेजलवुड और बाकियों के बीच अंतर को भरने का काम करेंगे.

ख्वाजा ने खेली कमाल की पारी

पहली पारी में ख्वाजा का शतक मुश्किल हालात में आया था. अगर एडिलेड टेस्ट जिस बैकग्राउंड में खेला गया, उसे हटा भी दें, तो भी मैच के हालात आसान नहीं थे. फाफ ड्यू प्लेसी ने थोड़ा शरारत करते हुए पारी घोषित करने का फैसला किया था, जिसके बाद उन्हें ओपनिंग में आना पड़ा था. ख्वाजा ने माना भी कि फैसले से उन्हें परेशानी हुई थी. उसके बाद भी उन्होंने दबाव नहीं आने दिया. वॉर्नर के आउट होने के बाद जब स्कोर दो विकेट पर 37 हुआ, तो उन्होंने जिम्मेदारी ली और एंकर का रोल निभाया. ऑस्ट्रेलियाई पारी में 42 फीसदी गेंद उन्होंने खेलीं.

इस मैच में हालात सीम बॉलर के लिए उतना अनुकूल नहीं थे, जितना पिछले साल हुए डे-नाइट टेस्ट में थे. पिच पर घास कम थी. ऐसे में सीम मूवमेंट कम थी. नतीजा ये हुआ कि लॉयन ने बड़ी भूमिका निभाई. खासतौर पर दूसरी पारी में. पहले दिन से पिच में टर्न था. तीसरा दिन आते-आते लॉयन ने बेहतरीन नियंत्रण के साथ सही लेंथ पर गेंदबाजी की.

रेनशॉ और हैंड्सकॉम्ब असरदार

रेनशॉ और हैंड्सकॉम्ब का प्रदर्शन तो असरदार था ही. मानना पड़ेगा कि रेनशॉ के लिए अभी शुरुआत है. लेकिन ऐसा लगता है कि क्रिस रोजर्स जैसा ओपनर मिला है, जो क्रीज पर टिककर खेल सकता है और वॉर्नर की आक्रामकता का साथ दे सकता है. ऑफ स्टंप के बाहर सतर्क हैं और उनका डिफेंस मजबूत है. ऐसे में ऑस्ट्रेलिया की अगली विपक्षी टीम पाकिस्तान के खिलाफ भी उन्हें कामयाबी मिल सकती है.

पीटर हैंड्सकॉम्ब और मैथ्यू रेनशॉ ऑस्ट्रेलिया की जीत के बाद खुशी मनाते हुए.

हैंड्सकॉम्ब का प्रदर्शन उनकी पारी और रनों से कहीं आगे जाता है. उनकी तकनीक परंपरागत नहीं है. ऐसे बल्लेबाज को चुनना ही बड़ी बात है. ग्लेन मैक्सवेल को छोड़ दिया जाए, तो स्टीव स्मिथ के बाद ऑस्ट्रेलिया के लिए खेलने वाले हैंड्सकॉम्ब सबसे गैर परंपरागत खिलाड़ी हैं. वॉर्नर, रेनशॉ, ख्वाजा, स्मिथ और हैंड्सकॉम्ब मिलकर ऑस्ट्रेलिया की मजबूत बैटिंग लाइन-अप बनाते हैं. मजबूत गेंदबाजी के साथ टीम का भविष्य अंधकार भरा नहीं दिखता.

हालांकि इस जीत को ऑस्ट्रेलियाई सिस्टम की मजबूती के तौर पर नहीं देख सकते. पिछले कुछ महीनों में ऑस्ट्रेलियाई सिस्टम की गड़बड़ियां दिखी हैं, जो एक जीत से नहीं ठीक हो सकती.

दक्षिण अफ्रीका के लिए हार निराश करने वाली थी. लेकिन इससे उनके सनसनीखेज प्रदर्शन का असर कम नहीं होता. उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में लगातार तीन सीरीज जीती हैं. पहली पारी में ड्यू प्लेसी का शतक बॉल टेंपरिंग विवाद के बाद और अहम होकर उभरा है. स्टीफन कुक ने दूसरी पारी में शतक जमाया. एबी डिविलियर्स की वापसी हो ही जाएगी. कह सकते हैं कि दोनों ही देश में क्रिकेट का भविष्य अच्छा है.