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बुमराह... बतौर गेंदबाज जिसकी जिंदगी डेथ ओवरों में शुरू होती है, मुस्कुराती है.

अंतिम ओवरों में उनका सटीक यॉर्कर ने बुमराह को डेथ ओवरों में बॉलिंग का जबरदस्त प्रभावी एक्सपर्ट बना दिया है

Jasvinder Sidhu

यह कहानी फिल्मी है. जिसमें एक नामालूम किरदार एकदम के बहुत बड़ा हो जाता है. इतना बड़ा कि सभी का भरोसा उसी पर होता है कि वही अंत में संकट से अकेले निपट कर हैपी एंडिंग देगा.भारतीय क्रिकेट में जसप्रीत बुमराह फिलहाल यही भूमिका अदा कर रहे हैं. टी-20 हो या वनडे में 40 से 50 या 45 से 50 ओवरों में गेंदबाजी देने की जिम्मेदारी ही बात हो, इस समय कप्तान का कोई भरोसा है तो वह सिर्फ बुमराह है.

अंतिम ओवरों में उनका सटीक यॉर्कर, जरूरत के हिसाब से कलाई के इस्तेमाल में बदलाव और तय योजना को कामयाबी से अमली जामा पहनाने और जेहन में सब कुछ क्लीयर रखने की काबिलियत ने बुमराह को डेथ ओवरों में बॉलिंग का जबरदस्त प्रभावी एक्सपर्ट बना दिया है. पिछली 31 वनडे पारियों में बुमराह ने 45 से 50 ओवरों के बीच गेंदबाजी करते हुए 6 की औसत ने 36 विकेट हासिल किए हैं. यह आंकड़ा ऐसा है जिसने मैचों के परिणामों को मजबूती से प्रभावित किया है.


इस गेंदबाज पर विश्वास इतना मजबूत हो चुका है कि कप्तान मैच के अहम पड़ाव और परिस्थितियों के हिसाब से किश्तों में उनका इस्तेमाल कर रहे हैं. रविवार को एशिया कप में पाकिस्तान के खिलाफ बुमराह ने भुवनेश्वर कुमार के साथ नई बॉल साझी की और अपना पहला स्पैल 4-1-10-0 पर खत्म किया. बीच के ओवरों में हालात काबू रखने के लिए 17वें ओवर में उन्हें फिर लाया गया और उन्होंने दो ओवरों में सिर्फ तीन रन ही दिए.

लेकिन बुमराह आखिरी के ओवरों में न केवल किफायती साबित होते आ रहे हैं बल्कि उनमें सामने वाली टीम के रनों की रफ्तार को रोकने के लिए एक साथ कई प्लान हैं. संडे के मैच में जब रोहित शर्मा ने बुमराह की तरफ गेंद फेंकी तो शोएब मलिक और आसिफ अली एक अहम साझेदारी की तरफ बढ़ रहे थे. चौथी  बॉल पर बुमराह को शोएब का विकेट मिला और उन्होंने अपना तीसरा स्पैल 4-0-15-2 से साथ खत्म किया.

इसमें कोई दोराय नहीं है कि अंतिम ओवरों में लगातार यॉर्कर मारने की क्षमता बुमराह की सबसे बड़ी ताकत है. हालांकि विपक्षी बल्लेबाजों को उनकी यॉर्कर के बारे में अंदाजा होने लगा है और इसलिए उन्होंने अपनी दूसरी गेंदों पर भी काम किया है. इनमें लेंथ बॉल भी है जो कि सामने से उठ कर बल्ले की तरफ आती है. ऐसा भारतीय क्रिकेट में सुनने को नहीं मिला कि कोई गेंदबाज जिसका कोई कोच न हो और कोई गॉडफादर न हो, भारतीय क्रिकेट में इस मुकाम तक पहुंचा है. बुमराह के पास एकमात्र काबिलियत है और वह है उनकी बॉलिंग.

ज्यादा क्रिकेट प्रेमियों को मालूम नहीं है कि 2013 के आईपीएल सीजन से ठीक पहले सैयद मुश्ताक अली टी-20 ट्रॉफी में गुजरात के लिए बुमराह ने महाराष्ट्र के खिलाफ 4-0-20-1 और मुंबई जैसी मजबूत टीम के सामने 4-0-27-0 का स्पैल डाला था लेकिन वह खबर नहीं बने. हालांकि वह टूर्नामेंट देख रहे मुंबई इंडियन के कोच व टैलेंट स्काउट जॉन राइट आखिरी के ओवरों में स्पीड और लाइन के साथ किफायती बुमराह की गेंदबाजी से बहुत प्रभावित हुए. राइट ने गुजरात के कप्तान पार्थिव पटेल से बुमराह की काबिलियत को खंगाला और पटेल से पूरे सौ नंबर दे डाले.

उसी रात बुमराह को मुंबई इंडियंस का करार मिला. यह भी अब कम लोगों को ही याद होगा कि मुंबई इंडियंस के लिए 2013 में अपना पहला मैच खेलते हुए बुमराह ने किसी और का नहीं बल्कि रॉयल चैलेंजर्स के विराट कोहली के रूप में अपनाा पहला विकेट हासिल किया था.उसके बाद बाकी सब कहानी है जो ऐसे लोगों के अंदर विश्वास बढ़ाती है जिन्हें प्रोत्साहन देने वाला कोई नहीं है लेकिन वे अपनी प्रतिभा के दम पर भीड़ में भी जगह बनाने में सफल होते हैं.  आज विराट कोहली या रोहित का इस गेंदबाज पर भरोसा उसे हर मैच के साथ और खतरनाक बना रहा है. बुमराह डेथ ओवरों में टीम इंडिया का भरोसा ही नहीं हैं बल्कि गारंटी हैं कि उनके सामने बल्लेबाजों का बल्ला किसी भी तरह से कुल्हाड़ी की तरह चलने वाला नहीं है.