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जन्मदिन विशेष, विजय मर्चेंट: तब रिटायर हो, जब लोग पूछें, अभी क्यों... तब नहीं जब कहें, अभी क्यों नहीं

अपने वक्त के धाकड़ बल्लेबाज विजय मर्चेंट को 'भारत का ब्रैडमैन' के नाम से भी जाना जाता था

Shailesh Chaturvedi

बात 2016 के गर्मियों के मौसम की है. संसद का सत्र चल रहा था. राज्यसभा की कार्यवाही चल रही थी. कांग्रेस के जयराम रमेश के कार्यकाल का आखिरी दिन था वो. उन्होंने इस पर कहा- विजय मर्चेंट ने कहा था कि तब रिटायरमेंट लो, जब लोग पूछें कि क्यों.. तब नहीं, जब लोग पूछें- क्यों नहीं. इस पर अरुण जेटली ने चुटकी ली कि यह बात विजय मर्चेंट ने नहीं, सुनील गावस्कर ने कही थी.

दरअसल, दोनों गलत थे. यह बात सुनील गावस्कर हमेशा विजय मर्चेंट का उदाहरण देते हुए कहा करते थे. लेकिन विजय मर्चेंट ने भी ऐसा नहीं कहा था. विजय मर्चेंट ने 1936 के अपने पहले इंग्लैंड दौरे पर पैट्सी हैंड्रेन की बात सामने रखी थी- हैंड्रेन ने कहा था कि हर खिलाड़ी को तब रिटायर होना चाहिए, जब वह अच्छा खेल रहा हो. लोग पूछें कि अभी क्यों. यह न पूछें कि अभी क्यों नहीं. मर्चेंट ने हैंड्रेन की बात गांठ बांध थी. और गावस्कर ने मर्चेंट की. वही विजय मर्चेंट, जिन्हें सुनील गावस्कर से पहले भारत का बेहतरीन सलामी बल्लेबाज कहा जाता था.


राज्यसभा की कार्यवाही के जिक्र की वजह है. सोचिए, 12 अक्टूबर, 1911 को जन्मे विजय मर्चेंट की बात 2016 में की जा रही थी. वो भी राज्यसभा में. इससे उनकी बातों की अहमियत को समझा जा सकता है. साथ ही उनकी अहमियत को भी. उन्हें यूं ही भारत का ब्रैडमैन नहीं कहा जाता था.

फिल्म में अमिताभ बच्चन ने किया मर्चेंट का जिक्र

मर्चेंट की बातों का जिक्र फिल्म में भी हुआ है. वो फिल्म थी नमक हलाल. इसमें अमिताभ बच्चन अंग्रेजी बोलते हैं. अमिताभ अंग्रेजी में जो कहते हैं उसका हिंदी तर्जुमा कुछ इस तरह बनता है कि साल 1929 में, जब भारत और ऑस्ट्रेलिया की टीमें मेलबर्न सिटी में खेल रही थीं, तो विजय मर्चेंट और विजय हजारे क्रीज पर थे. यानी उस बातचीत में भी विजय मर्चेंट और विजय हजारे का जिक्र था. यह अलग बात है कि भारत ने पहला टेस्ट 1932 में खेला था.

ये दो किस्से हैं, जो बताते हैं कि विजय मर्चेंट का नाम कैसे भारतीयों के जेहन में है. दिलचस्प यह भी है कि उनका नाम दरअसल विजय मर्चेंट था ही नहीं. उनका नाम तो विजय माधवजी ठाकरसे था. पूरे भरोसे से नहीं कहा जा सकता कि मर्चेंट उपनाम कहां से आया. लेकिन कहा यही जाता है कि उनके अंग्रेजी टीचर ने पूछा था कि तुम्हारा परिवार क्या करता है. विजय ने जवाब दिया कि वो मर्चेंट हैं. यहीं से वो विजय मर्चेंट हो गए.

तकनीक के मास्टर कहे जाते थे मर्चेंट

विजय मर्चेंट को तकनीक का मास्टर माना जाता था. गावस्कर की तकनीक वहीं से आई, जो उन्हें अपना गुरु मानते थे. 22 साल की उम्र में उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ 1933-34 में अपना पहला टेस्ट खेला था. वहां से वो 1951 तक इंटरनेशनल क्रिकेट खेलते रहे. लेकिन महज दस टेस्ट ही खेल पाए. वजह यही थी कि दूसरे विश्व युद्ध की वजह से ज्यादातर समय क्रिकेट नहीं हुआ. इस दौरान भारत में भी आजादी का संघर्ष चल रहा था. ऐसे में दुनिया उन्हें बहुत ज्यादा नहीं देख पाई. लेकिन फर्स्ट क्लास क्रिकेट में उनका औसत 71.64 है. इस औसत से आगे महज डॉन ब्रैडमैन दिखाई देते हैं. 30 नवंबर, 1941 से 30 दिसंबर, 1941, यानी एक महीने के भीतर मर्चेंट ने चार पारियां खेली थीं. रन बनाए थे 170 नॉट आउट, 243 नॉट आउट, 221 और 153 नॉट आउट. घरेलू क्रिकेट में उनसे पार पाना संभव नहीं था.

उस दौर ने भारतीय क्रिकेट में तीन ‘विजय’ देखे. विजय मर्चेंट, विजय हजारे और विजय मांजरेकर. मजेदार बात यह है कि तीनों ही कमाल के बल्लेबाज थे. बल्कि विजय मर्चेंट और विजय हजारे के बीच घरेलू क्रिकेट में होड़ होती थी कि कौन ज्यादा समय बल्लेबाजी करेगा और ज्यादा रन बनाएगा.

बैठे हुए में बाएं से तीसरे नंबर पर हैं विजय मर्चेंट.

उनका दौर था, जब महात्मा गांधी का आंदोलन चरम पर था. एक दिलचस्प किस्सा गांधी जी से जुड़ा है. कहा जाता है कि 1933 में मर्चेंट की बहन लक्ष्मी महात्मा गांधी से ऑटोग्राफ लेने गईं. महात्मा गांधी ने लक्ष्मी से किताब ली. एक पेज खोलकर ऑटोग्राफ दिया. उसमें 16 ऑटोग्राफ पहले ही थे. ये 16 ऑटोग्राफ एमसीसी टीम के सदस्यों के थे. इसमें विजय मर्चेंट भी शामिल थे. यानी महात्मा का ऑटोग्राफ उसी पेज पर एक टीम सदस्य के तौर पर माना जा सकता है, जिसमें मर्चेंट थे.

अपने आखिरी टेस्ट में बनाया था शतक

मर्चेंट ने अपना आखिरी टेस्ट दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में इंग्लैंड के खिलाफ खेला था. 40 साल के मर्चेंट ने 154 रन बनाए थे. यह उनका सबसे बड़ा स्कोर था. किसी के लिए इससे बेहतर और क्या हो सकता है कि वो शतक के साथ इंटरनेशनल क्रिकेट को अलविदा कहे. उस वक्त भी उनसे पूछा गया था कि इतना शानदार खेलने के बाद भी क्यों रिटायर हो रहे हैं. तब भी उन्होंने अपनी वही चर्चित लाइन बोली थी- खिलाड़ी को तभी रिटायर होना चाहिए, जब लोग पूछें कि क्यों. तब नहीं, जब पूछा जाए, क्यों नहीं.

मुश्ताक अली और विजय मर्चेंट.

रिटायर होने के बाद विजय मर्चेंट चयनकर्ता और सेलेक्टर भी रहे. 27 अक्टूबर, 1987 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया. उनकी अहमियत एक और किस्से से समझी जा सकती है. 1947-48 के दौरे पर खराब तबीयत की वजह से मर्चेंट ऑस्ट्रेलिया दौरे पर नहीं गए थे. तब डॉन ब्रैडमैन ने कहा था- बहुत खराब बात है कि हम विजय मर्चेंट को नहीं देख पाएंगे, जो यकीनन भारत के महानतम क्रिकेटर होने की क्षमता रखते हैं.