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अब मान भी लीजिए, स्पिन नहीं रही हमारी ताकत!

पिछले 5 सालों में कई बार भारतीय बल्लेबाज स्पिनर्स के आगे ढेर हुए

Lakshya Sharma

साल 2012, इंग्लैंड टीम का भारत दौरा. सभी को उम्मीद थी कि भारतीय टीम इंग्लैंड को आसानी से मात दे देगी. भारतीय टीम ने इसकी पूरी तैयारी करते हुए स्पिनर्स की मददगार पिच बनाई. लेकिन किसे पता था कि भारतीय टीम ने जो रणनीति इंग्लैंड के लिए बनाई थी.

वही उस पर भारी पड़ेगी. उस सीरीज में इंग्लैंड के स्पिनर्स मोंटी पनेसर और स्वॉन ने भारतीय बल्लेबाजों को अपनी फिरकी में ऐसा घुमाया कि वह सीरीज जीतने की तो छोड़ो भारत बचा भी नहीं पाया और 2-1 से हार मिली. इस सीरीज में हार के बाद भारतीय टीम की काफी आलोचना हुई थी. कहा गया कि भारतीय टीम ने जो गड्ढा खुदा उसी में खुद गिर गए. हर तरफ भारतीय की टीम का मजाक बना.


अब तक शायद विरोधियों के पास गिनाने के लिए वही दौरा था लेकिन पुणे टेस्ट के बाद शायद फिर से उसी दौरे की याद ताजा हो गई. हालांकि भारतीय टीम के लिए पिछले दो साल शानदार रहे हैं लेकिन इस हार ने फिर से एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या अब हमारे बल्लेबाज स्पिन के खिलाफ मजबूत नहीं हैं?

पिछले 5 सालों में कई ऐसे मौके आए जब भारतीय बल्लेबाजों ने स्पिनर्स के आगे घुटने टेक दिए. बात सिर्फ 2012 के इंग्लैंड तक ही सीमित नहीं है. इस दौरे की तो खूब चर्चा भी हुई. लेकिन इसके बाद भी भारतीय टीम विदेशी स्पिनर्स के सामने कमजोर नजर आती रही है.

साल 2014 में जब भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया गई थी तब भी नैथन लायन ने भारतीय बल्लेबाजों को खूब परेशान किया था. उस सीरीज के 4 मैच में लायन ने 23 विकेट लिए थे. ऐसा ही 2013 के साउथ अफ्रीका के दौरे पर हुआ था जब अनजान स्पिनर रोबिन पीटरसन ने भारतीय टीम की हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

साल 2015 का श्रीलंका दौरा ही ले लीजिए. गॉल टेस्ट...ये वही टेस्ट मैच है जिसमे हार के बाद भारतीय टीम लगातार 19 टेस्ट नहीं हारी थी.

उस टेस्ट मैच में भारतीय टीम को महज 165 रन का लक्ष्य मिला था लेकिन भारतीय टीम ने स्पिनर रंगना हेराथ और कुशाल के सामने सरेंडर कर दिया और केवल 112 रन पर ऑल आउट हो गए. इस पारी में हेराथ ने 7 और कुशाल ने 3 विकेट लिए.

ये तो बात हो गई रिकॉर्ड्स की. लेकिन ये बात करना भी जरूरी है कि ऐसा लगातार हो क्यों रहा है? शायद भारतीय टीम को ये गलतफहमी है कि वह स्पिन के खिलाफ मजबूत है.

वो दौर अलग था जब भारतीय टीम अपने स्पिनर्स के दम पर मैच जीता करती थी. इसका बड़ा कारण था कि उस समय के बल्लेबाज स्पिन के खिलाफ तकनीकी रूप से मजबूत थे.

उस समय में भारतीय टीम ऐसे बल्लेबाज थे जो किसी भी तरह की पिच पर स्पिन को आसानी से खेल लेते थे. तभी तो जिन वार्न और मुरलीधरन का डंका दुनिया में बजता था पर ये स्पिनर्स भारत के खिलाफ बेअसर रहे. इस बात को आंकड़े भी सिद्ध करते हैं.

दोनों ही गेंदबाजों का भारत के खिलाफ गेंदबाजी औसत 33 से ऊपर का रहा जबकि दूसरी टीमों के खिलाफ यही औसत 24 करीब का था. अब आप खुद अंदाजा लगा लीजिए कि भारतीय बल्लेबाज स्पिन के खिलाफ कितने परिपक्व थे.

लेकिन वो समय अलग था बल्लेबाज अलग थे. अब इस टीम में ना तो द्रविड़ जैसी दीवार है और न ही सचिन जैसा क्लास. न लक्ष्मण जैसी नजाकत और न ही सहवाग जैसी आक्रामकता.

आज दौर में बल्लेबाजों का पूरी ध्यान फटाफट क्रिकेट पर है. जिसके कारण उनकी तकनीक भी उसी अनुसार कमजोर हो रही है. हर गेंद को पूरी ताकत से मारने के पैटर्न ने तकनीक की तरफ से भटका दिया है.

अब भारतीय टीम मैनेजमेंट को भी हकीकत को मानना होगा कि अब गेंदबाजी में हमारी ताकत स्पिन हो सकती है लेकिन बल्लेबाजी में शायद यही हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है.