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वर्ल्ड ऑटिज्म डे: पीड़ित बच्चों को सही वक्त पर सही इलाज दिलाना जरूरी

बच्चा बोलने के दौरान आंखें नीची किए हुए रहता है या नाम या इशारे से बुलाने पर भी जवाब नहीं देता तो डॉक्टर से फौरन संपर्क करना चाहिए

Bhasha

डॉक्टरों का मानना है कि ऑटिज्म बीमारी की पहचान 2-3 साल की छोटी उम्र से होने लगती है. ऐसे में जरूरी है कि बेहतर रिजल्ट के लिए मां-बाप जल्द से जल्द अपने बच्चों का इलाज शुरू करवाएं.

डॉक्टरों ने बताया कि ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों में इस बीमारी का प्रभाव कम करने के लिए लोगों को कदम उठाना पड़ेगा. वैसे बच्चों को लोगों को समझना होगा.


ऑटिज्म या ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर कई तरह के होते हैं. इसमें सामाजिक तालमेल से लेकर बोलने में आने वाली दिक्कतें, बातें दोहराने के अलावा कई अच्छी आदतें भी आती हैं. ऑटिज्म पर्यावरण के प्रभाव और वंशानुगत फैक्टर के मेल से होता है. दो अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरुकता दिवस के रूप में मनाया जाता है.

इस बारे में अहमदाबाद के होम्योपैथी के डॉक्टर केतन पटेल ने बताया, 'अगर एक बच्चा बोलने के दौरान आंखें नीची किए हुए रहता है या नाम या इशारे से बुलाने पर भी जवाब नहीं देता है तो डॉक्टर से फौरन संपर्क करना चाहिए.'  उन्होंने बताया कि ऑटिज्म की शुरुआती पहचान दो या तीन साल की उम्र से होने लगती है.

मुंबई, नई दिल्ली, बेंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद, कोलकाता, सिकंदराबाद में ऑटिज्म से पीड़ित हजारों बच्चों का नि: शुल्क इलाज करने के बाद अब वे ओडिशा के ग्रामीण इलाकों में सेवा देने पर ध्यान लगा रहे हैं. उन्होंने विदेशी बच्चों का भी इलाज किया है.

डाक्टर एल एच हीरानंदनी अस्पताल की डॉक्टर बीजल श्रीवास्तव ने बताया कि मौजूदा समय में बच्चों में ‘वर्चुअल ऑटिज्म’ की पहचान हुई है. यह पहचान खास कर उन बच्चों में हुई है जो स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताते हैं. इस तरह के डिवाइस बच्चों के विकसित हो रहे दिमाग पर बुरा असरप डालते हैं.