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गांधी के गुरु कौन-गोपालकृष्ण गोखले या बाल गंगाधर तिलक?

गांधी गोपालकृष्ण गोखले को अपना गुरू बताते थे लेकिन उन्हें एक्शन सिखाने में बाल गंगाधर तिलक का भी बड़ा योगदान है

Avinash Dwivedi

महात्मा गांधी भारत में एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के तौर पर नहीं आए थे. महात्मा गांधी भारत आए थे, एक सिविल राइट्स एक्टिविस्ट के रूप में. जिसने दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले भारतीयों के हक में लड़ाई लड़ी थी.

गांधी खुद भी जानते थे कि भारत की परिस्थिति और यहां ब्रिटिश सरकार की मुखालफत का तरीका दोनों ही दक्षिण अफ्रीका से कई मायनों में अलग होने वाला है. इसीलिए उन्होंने कुछ दिन भारत भ्रमण कर भारत को अच्छे से समझने का निश्चय किया था. वैसे ये सुझाव उन्हें गोपालकृष्ण गोखले ने दिया था.


हम भी हमेशा से किताबों में पढ़ते आए हैं कि महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरू गोपाल कृष्ण गोखले थे. गांधी खुद भी उन्हें अपना गुरू कहते थे. पर ध्यान दें कि गोखले के कई बार गांधी को अपनी संस्था 'सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी' से जोड़ने के प्रयास के बावजूद भी गांधी उससे नहीं जुड़े थे. गांधी के आंदोलन करने का तरीका, संगठन बनाने का तरीका भी गोखले की तरह का नहीं था. तब आखिर गांधी का वो सीक्रेट गुरू कौन था? जिनसे गांधी ने भारत में आंदोलन के कई तरीके सीखे थे. वो थे बाल गंगाधर तिलक. जी हां! तिलक ही.

कांग्रेस का काम ब्रिटिश सरकार के साथ शासन चलाने में सहयोग करना

इसके लिए पहले कांग्रेस की प्रवृत्ति को समझना जरूरी है. बीसवीं शताब्दी की शुरुआत तक कांग्रेस का काम ब्रिटिश सरकार के साथ शासन चलाने में रचनात्मक सहयोग करना था. फिर कुछ तेज तर्रार नेता कांग्रेस के साथ जुड़े. जिन्हें हिंसात्मक तौर-तरीकों से भी परहेज नहीं था. या यूं कहें कि वो उसका समर्थन करते थे. इनमें लाल-बाल-पाल बहुउद्धृत हैं. इसी दौर में कांग्रेस के पुराने उदारपंथियों और नए अतिवादियों में मतभेद हुआ और कांग्रेस दो हिस्सों में बंट गई. इसलिए जब गांधी 1915 में भारत आए तो कांग्रेस दो भागों में बंटी हुई थी. हालांकि बाद में तमाम लोगों के प्रयासों के बाद कांग्रेस के दोनों धड़े फिर से एक हो गए. पर इस दौरान ही उदारपंथी धड़े के बड़े नेता गोपालकृष्ण गोखले की मौत हो चुकी थी और महात्मा गांधी कांग्रेस पर छाने लगे थे.

बाल गंगाधर तिलक और गोपाल कृष्ण गोखले (फोटो: फेसबुक से साभार)

भारत आने के बाद महात्मा गांधी ने रेल यात्राओं के जरिए यहां यथासंभव घूमने का प्रयास किया. इस दौरान वो यहां की जनता और उसके स्वभाव के प्रति अपनी समझ तो बना ही रहे थे पर इसके साथ ही वो अपने राजनीतिक हथियारों के बारे में लगातार सोच रहे थे. महात्मा गांधी ने हालांकि सीधे तौर पर अपना गुरु गोपाल कृष्ण गोखले को ही माना है पर यकीनन गांधी जी ने अपने राजनीतिक हथियार बालगंगाधर तिलक से विरासत में पाए.

यह सिद्ध होता है इस बात से कि एक दशक पहले 'हिंदू सांस्कृतिक राष्ट्रवाद' के साथ भारत माता की जिस अवधारणा में कांग्रेस के अतिवादियों ने तेजी से विश्वास जताया था, गांधी उसे नकारते नहीं थे. तभी तो अतिवादियों का ईजाद किया 'स्वदेशी आंदोलन' का हथियार गांधी जी ने भी खुलकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ प्रयोग किया.

'होमरूल लीग' तेजी से लोगों को जोड़ने वाला संगठन बनकर उभरा

साथ ही वो दौर याद करना चाहिए, जब एक ओर 1915 तक भी उदारपंथी ब्रिटिश सरकार के रचनात्मकर सहयोग में लगे थे. ठीक उसी वक्त इधर बाल गंगाधर तिलक, एनी बेसेंट के साथ मिलकर 'होमरूल लीग' की स्थापना की योजना बना रहे थे. जिस लीग का मकसद था कि भारतीयों को अपने देश का शासन खुद ही संभालने का अवसर और हक मिले. महाराष्ट्र, मध्य प्रांत और कर्नाटक में तिलक के नेतृत्व में ही होमरूल लीग ने काम करना शुरू किया था. बाकि देश भर में उसका नेतृत्व एनी बेसेंट के हाथ में था. लीग का काम सफल ही माना जाएगा क्योंकि केवल 1916 से 1917 के बीच होमरूल लीग ने अपनी सदस्य संख्या 1,400 से 32,000 कर ली थी. यह तेजी से लोगों को जोड़ने वाला संगठन बनकर उभरा था.

आजादी से पहले भारत में ब्रिटिश राज की एक तस्वीर (फोटो: फेसबुक से साभार)

ये वो बिंदु हैं, जहां लगता है कि ऐसी स्थिति में तिलक ही गांधी की प्रेरणा बने होंगे. दोनों ही चाहते थे कि राजनीति से लोगों को जोड़ने के लिए हिंदू धर्म की कुछ खास सीखों का सहारा लिया जाए. जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों के जुड़ने से राजनैतिक आंदोलन को बल मिले. दोनों ही व्यक्तियों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बड़ी संख्या में लोगों की लामबंदी की और इसे एक अखिल भारतीय आंदोलन बनाने का प्रयास किया. यहां तक कि गांधी ने अपने असहयोग आंदोलन से लोगों को जोड़ने के लिए तिलक के पहले से बनाए हुए होमरूल लीग के नेटवर्क का सहारा भी लिया. दरअसल 1920 में गांधी होमरूल लीग के अध्यक्ष चुन लिए गए थे.

हां, गांधी के और तिलक के तरीके में थोड़ा अंतर इस बात का जरूर रहा कि तिलक ने ब्रिटिश राज से लड़ने के लिए अतिवादी तरीके से हिंदू धर्म के प्रयोग का प्रयास किया था. जिसके लिए उन्होंने गणेश और शिवाजी जैसे प्रतीकों को अपनाया था. पर गांधी ने अपने दक्षिणा अफ्रीका के दिनों में सीखे गए नागरिक अवज्ञा के तौर तरीकों के जरिए लोगों को संगठित करने की कोशिश की. जिसमें कांग्रेस के बहुलवाद की विचारधारा भी मिली हुई थी. गांधी अगर तिलक की ही विचारधारा को अपनाते तो शायद ये दो सफलताएं हासिल करने से चूक जाते- ग्रामीण जनसंख्या तक कांग्रेस की पकड़ और मुस्लिमों का साथ.

कांग्रेस का हमेशा के लिए मुस्लिमों का समर्थन छिन गया

हालांकि महात्मा गांधी ने खुद को सनातनी हिंदू कहा. भजनों का प्रयोग किया पर कभी धार्मिक प्रतीकों या मुद्दों के जरिए हिंदुओं को संगठित करने का प्रयास नहीं किया. इसलिए दोनों के ही लोगों को हिंदू धर्म के जरिए लोगों को संगठित करने के विचार के बावजूद गांधी का तरीका तिलक से अलग रहा. पर हम जिनसे प्रेरणा लेते हैं, उनकी अच्छाइयों के साथ कुछ बुराइयां भी हमें मिल जाती हैं. ऐसे में एक जगह जो गलती हिंदुओं के साथ तिलक ने की, वही गलती गांधी जी ने मुस्लिमों के साथ दोहराई. गांधी हिंदुओं के बीच तो धार्मिक प्रतीकों और मुद्दों के प्रयोग पर सावधान रहे पर उन्होंने मुस्लिमों का खिलाफत पर समर्थन किया. यहां तक कि खिलाफत को उन्होंने 'मुस्लिम गाय' तक की संज्ञा दे दी. जिसका दूरगामी परिणाम ये हुआ कि कांग्रेस का हमेशा के लिए मुस्लिमों का समर्थन छिन गया.

महात्मा गांधी ने गोपाल कृष्ण गोखले को अपना राजनीतिक गुरू के तौर पर माना है

भारत के आजादी के इतिहास में महात्मा गांधी पर बाल गंगाधर तिलक के प्रभाव के बारे में चर्चा नहीं होती. फिर भी हम दोनों के तौर-तरीकों की तुलना करें तो पाएंगे कि उनमें बहुत समानता थी. ऐसे में निस्संदेह गांधी खुद अपना राजनीतिक गुरू गोपालकृष्ण गोखले को बताते रहे हों पर यह स्पष्ट है कि उन्हें एक्शन सिखाने में बाल गंगाधर तिलक का भी बड़ा योगदान है, जो उपर लिखी बातों से बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है.