view all

इमरजेंसी के दौरान इंदिरा के एक ताकतवर मंत्री ने वाजपेयी से की थी गोपनीय मुलाकात

वाजपेयी जी ने मेरे पूछे सवाल पर व्यंग्य के लहजे में कहा, ‘ओम मेहता बहुत बड़े आदमी हैं. वह मुझसे मिलने नहीं आए थे बल्कि, मैं ही उनसे मिलने गया था.’

Ram Bahadur Rai

18 जनवरी 1977 को इमरजेंसी के दौरान ही देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी या उनकी सरकार ने चुनाव कराने का फैसला लिया. उस समय देश के लोगों में आम धारणा घर कर गई थी कि अब शायद आम चुनाव हो ही न. लेकिन देश में आम चुनाव कराने के प्रयास को लेकर कई स्तरों पर प्रयास किए जा रहे थे.

एक घटना का जिक्र कर इसे समझाने का प्रयास करता हूं, जिससे मालूम चलेगा कि इमरजेंसी के दौरान किन-किन लोगों ने चुनाव कराने को लेकर अंदरखाने इंदिरा गांधी और सरकार पर दबाव डालने का काम किया.


29 दिसंबर 1977 यानी चुनाव की घोषणा से ठीक 18-19 दिन पहले नवंबर महीने में मैं और मेरे कुछ साथी जेल से बाहर आ गए थे. देश में कई स्तर पर अंडर ग्राउंड वर्किंग चल रही थी. ऑल इंडिया स्तर के पांच-सात वर्करों की एक टीम, जो पूरे मूवमेंट को कोऑर्डिनेट कर रही थी, की गुपचुप तरीके से मीटिंग बुलाई गई.

यह मीटिंग जनसंघ के ऑफिस दिल्ली के विट्ठल भाई पटेल हाउस के 24-25 नंबर फ्लैट में थी. उस समय जनसंघ के कार्यकारी अध्यक्ष ओमप्रकाश त्यागी थे. क्योंकि, लाल कृष्ण आडवाणी जनसंघ के उस समय के अध्यक्ष थे और वो जेल में बंद थे इसलिए ओमप्रकाश त्यागी ही उनका काम संभाल रहे थे.

हमलोगों की मीटिंग हो गई. मीटिंग में ये फैसला हुआ कि जितने भी बड़े नेता हैं, उनसे मिलने का सिलसिला शुरू किया जाए. मैंने उस समय देश के जितने भी बड़े नेता थे, उनसे मिलने की कोशिश शुरू कर दी.

इसकी शुरुआत चौधरी चरण सिंह से हुई. अगले दिन हमलोग ओमप्रकाश त्यागी से मिले. उन्हें बताया कि हमलोग क्या-क्या कर रहे हैं. हमारी बात सुनकर खुश हुए ओमप्रकाश त्यागी ने कहा 'यह बात आपलोग वाजपेयी जी को जरूर बताएं.' मैंने ओमप्रकाश त्यागी जी से कहा कि 'वाजपेयी जी के यहां अभी जाने का मतलब है दोबारा गिरफ्तार होना और मैं नहीं चाहता कि गिरफ्तार हूं.'

मैं ठीक चार बजे 1 फिरोजशाह रोड कोने वाली कोठी, जहां वाजपेयी जी रहते थे मिलने चला गया. हमने घंटी बजाई तो अंदर से मिसेज कौल की आवाज आई. कौन, मैंने कहा रामबहादुर राय बनारस से. वाजपेयी जी ने हमारी बात सुन ली.

वाजपेयी जी ने मेरी आवाज सुनते कहा 'आइए महाराज आइए महाराज' कहते हुए हमारी तरफ बढ़े और हाथ में चाय का कप लेते हुए जहां वह सभी से मिलते थे वहां आ गए.

वाजपेयी जी के बैठते ही हमने उनसे कहा कि अखबारों में खबर छपी है कि आपसे मिलने ओम मेहता आए थे? यहां आपको बता दें कि उन दिनों इंदिरा गांधी के बाद दूसरे नंबर के ताकतवर व्यक्ति ओम मेहता थे. ओम मेहता उस समय थे तो गृह राज्य मंत्री, लेकिन वो काम संभाल रहे थे देश के गृह मंत्री का. वो संजय गांधी के खास विश्वासपात्रों में से एक थे.

ओम मेहता जम्मू के रहने वाले थे. इंदिरा गांधी की सरकार में उन दिनों वे लोग ज्यादा महत्वपूर्ण थे, जो संजय गांधी से जुड़े हुए थे. ओम मेहता, विद्याचरण शुक्ल और बंशीलाल उनमें से एक थे.

वाजपेयी जी ने मेरे पूछे सवाल पर व्यंग्य के लहजे में कहा, ‘ओम मेहता बहुत बड़े आदमी हैं. वह मुझसे मिलने नहीं आए थे बल्कि, मैं ही उनसे मिलने गया था.’

मैंने पूछा, ‘क्या बात हुई?’ उन्होंने बताया कि ओम मेहता का कहना था, ‘इमरजेंसी के दौरान देश में काफी तोड़-फोड़ हुई है और इसकी जिम्मेदार एबीवीपी है.’ उन्होंने दूसरी बात कही कि मेहता इस कोशिश में लगे हैं कि इंदिरा गांधी चुनाव कराने को लेकर तैयार हो जाएं.

उन दिनों चुनाव कराने को लेकर कई लोग काम कर रहे थे, उनमें पीएम के सचिव प्रो. पी. एन. धर भी लगे हुए थे. पी. एन. धर पर्दे के पीछे काम कर रहे थे. हर वर्ग के लोग इंदिरा गांधी को समझाने में लगे हुए थे. कुछ पत्रकार भी इंदिरा गांधी के संपर्क में लगातार थे. हिंदुस्तान टाइम्स के उस समय के एडिटर हिरण्मय कारलेकर भी चुनाव कराने को लेकर इंदिरा गांधी से संपर्क में थे. अंतत: इंदिरा गांधी ने चुनाव कराने का फैसला किया.

जिस दिन देश में चुनाव कराने की घोषणा हुई थी, उस दिन मैं प्रयाग के कुंभ मेले में था. दिल्ली में मीटिंग करने के बाद हमलोग कुंभ मेले के कैंप में आराम से रह रहे थे. थोड़ा-बहुत पर्चा भी बांटा करते थे. जिस दिन चुनाव की घोषणा हुई थी, उस दिन कुंभ में मौनी अमावस्या का स्नान था.

प्रयाग में 18 जनवरी 1977 को भारी भीड़ थी. मुझे याद है कि उस दिन जैसे ही रेडियो पर लोकसभा चुनाव कराने की घोषणा हुई. कुंभ में उत्सव का माहौल हो गया. मैं प्रयाग से सीधे बनारस पहुंचा. बनारस आते ही मैंने नेताजी (राजनरायण जी) के छोटे भाई से कहा कि आप नेताजी से पूछ कर बताइए कि वह रायबरेली से चुनाव लड़ेंगे कि नहीं?

राजनारायण जी के छोटे भाई राजनारायण जी से मिलकर कहा कि रामबहादुर राय ने आपसे पूछने के लिए मुझे भेजा है कि क्या आप रायबरेली से चुनाव लड़ेंगे? इस पर राजनरायण जी ने अपने छोटे भाई से कहा कि रामबहादुर से कहना, ‘अटल बिहारी वाजपेयी बड़े नेता हैं, वही जाकर रायबरेली से चुनाव लड़ें हमें नहीं लड़ना है.

(रामबहादुर राय वरिष्ठ पत्रकार  हैं. यह लेख रवि शंकर सिंह के साथ उनकी बातचीत पर आधारित.)