view all

बीजेपी के ‘काउंटर पोलराइजेशन’ पर नाचते एसपी, बीएसपी

चुनाव अभियानों में काउंटर मुस्लिम पोलराइजेशन की राजनीति अपनाई जा रही है

Vivek Anand

हाल के दिनों की राजनीति में ‘खेल’ के नियम कायदे बड़े बदले हैं. ‘टोपी’ की फिक्र करने वाले नेता ‘तिलक तराजू और तलवार’ की चिंता में ज्यादा घुल रहे हैं. राजनीति के रंगे सियारों की ये कहानी भी खूब है.

साफ बात ये है कि कुछ दिनों पहले तक मुस्लिम ध्रुवीकरण की धूम थी. सभी राजनीतिक दल मुसलमानों को रिझाने में लगे थे. चुनावों से पहले भी और उसके बाद भी.


उसी का नतीजा था कि ‘मुल्ला मुलायम’ और ‘मौलाना बहुगुणा’ जैसे नाम उछले. इस तरह के नाम मुस्लिम ध्रुवीकरण की कामयाब राजनीति के पहचान थे. बीजेपी ऐसी राजनीति की मार से इतनी त्रस्त थी. कई बार उसे भी राष्ट्रवादी मुस्लिमों की खोज में निकलना पड़ा.

लेकिन आज के हालात अलग हैं. धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक पार्टियां तक मुस्लिम तुष्टिकरण के आजमाए नुस्खों को अपनाने से घबरा रही हैं. ऐसे दल अपने चुनाव अभियानों में “काउंटर मुस्लिम पोलराइजेशन” की राजनीति अपना रही हैं.

बीजेपी और संघ परिवार ने मिलकर 2014 के लोकसभा चुनावों में अपनी रणनीति बदल दी थी. मुसलमान वोटों के ध्रुवीकरण के जवाब में उन्होंने हिंदू वोटरों का काउंटर पोलराइजेशन कर दिया. नतीजा मुस्लिम ध्रुवीकरण करीब-करीब बेअसर हो गया.

इस रणनीति को बीजेपी ने बिहार चुनावों के दौरान भी अपनाने की कोशिश की. लेकिन कई वजहों से ये वहां कारगर नहीं रहा. असम चुनाव के दौरान भी गैर मुसलमानों वाले जवाबी ध्रुवीकरण की रणनीति अपनाई गई. बीजेपी और उसके गठबंधन को फायदा मिला.

बीजेपी की इस रणनीति के मारक असर ने विपक्षी दलों की नींद उड़ा दी है. उसी का नतीजा है कि यूपी चुनावों में धर्मनिरपेक्ष पार्टियां भी हिंदुओं को लुभाने में लगी हैं. काउंटर पोलराइजेशन की रणनीति हर पार्टी अपना रही है.

काउंटर पोलराइजेशन की रणनीति

2017 का यूपी विधानसभा चुनाव 2019 के लोकसभा चुनावों के ग्रैंड फिनाले के लिए सेमीफाइनल जैसा रहने वाला है. नेताओं के हर बयान का पोस्टमॉर्टम होगा. उनके हर एक्शन का रिएक्शन दिखेगा.

हिंदुत्व की राजनीति से पैदा हुए ध्रुवीकरण से खुद को बचाने की कोशिश हर दल करेगा. इसमें काउंटर पोलराइजेशन की रणनीति बड़े काम की रहने वाली है.

बीजेपी विकास के मसलों के साथ जाति के मुद्दे को उठाएगी. लेकिन उसका मास्टर स्ट्रोक संघ परिवार के साथ मिलकर हिंदुत्व की राजनीति को उभारना ही होगा. बीएसपी और एसपी जैसे दलों को हिंदुओं के ध्रुवीकरण का भय बना रहेगा.

उन्हें डर रहेगा कि मुसलमानों के वोट बंटने से 2014 के लोकसभा चुनावों वाले हालात न बन जाएं. और मुसलमानों को अपने पाले में बनाए रखने की कोशिश बेकार न चली जाए. एक डर ये भी है कि बीजेपी उन्हें मुसलमानों का पैरोकार न साबित कर दे.

मुसलमान वोट अहम

ऐसा हुआ तो काउंटर पोलराइजेशन की राजनीति उनका खेल खराब कर देगी. इसलिए बीएसपी जैसी पार्टियां मुसलमानों के मुद्दे ज्यादा आक्रमक तरीके से नहीं उठा पा रही. बीएसपी खुद को मुस्लिम वोटों की सबसे बड़ी हकदार जताती है. लेकिन इसके बावजूद वो हिंदुत्व की राजनीति पर नरम रुख बनाए हुए है.

ऐसी पार्टियां मुसलमानों को एकजुट रखने के लिए धैर्य से काम ले रही हैं. बिहार चुनाव के नतीजों से वो सबक सीख रही हैं. ये छिपे तौर पर मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण चाहती हैं. ताकि हिंदु वोटों के जवाबी ध्रुवीकरण के नुकसान से बच जाएं.

बीजेपी अमित शाह की रणनीति पर चल रही है. उनकी कोशिश है कि असम की तरह ध्रुवीकरण का मजबूत माहौल बनाया जाए. अमित शाह ने अपनी रणनीति का खुलासा करते हुए कहा था- “ हर ध्रुवीकरण खुद ब खुद एक जवाबी ध्रुवीकरण तैयार करती है. जिसका फायदा बीजेपी को मिलता है ”

2014 के लोकसभा चुनावों में इस रणनीति का बीजेपी ने भरपूर फायदा उठाया. लेकिन बिहार में विपक्षी दलों के मजबूत गठबंधन बना लेने से यही रणनीति फेल कर गई.

बीएसपी, एसपी और कांग्रेस जैसे दल मुस्लिम वोट की उम्मीद लगाए बैठी हैं. लेकिन हिंदुओं को बिदकने से बचाने की कोशिशें भी जारी हैं. समाजवादी पार्टी यूपी में श्रवण तीर्थ योजना चला रही है. जिसमें हिंदुओं की तीर्थयात्रा के लिए सरकारी सुविधा दी जा रही है.

मध्य प्रदेश की शिवराज सरकार ऐसी ही योजना चलाकर हिंदु वोटों से फायदा उठा चुकी है. समाजवादी पार्टी के विधायक और नेता हिंदू देवी देवता की मूर्तियां लगवाने में पैसों की मदद कर रहे हैं. इसके पीछे पुण्य कमाने की मंशा नहीं है. दरअसल ये मीडिया में बने रहकर आने वाले चुनावों की तैयारी का खेल है.

समाजवादी पार्टी यूपी के ऐटा जिले में भव्य सैफई महोत्सव करवाती है. ये उसकी संगठन की ताकत दिखाकर लोगों को खुद से जोड़ने का तरीका है. उबाऊ राजनीति में सांस्कृतिक झलक दिखाकर पार्टी आम लोगों से कनेक्ट करती है.

एसपी नेता धर्मेंद्र यादव ने इसके परिसर में 35 फुट ऊंची भगवान हनुमान की भव्य मूर्ति लगवाई है. हवन-भजन की राजनीति ये है कि इससे भगवान के भक्त खुश रहें. हनुमान के साथ राम के सेवक की छवि जुड़ी है. इसका फायदा समाजवादी पार्टी अपनी छवि चमकाने में करती है.

कैराना बनेगा मुद्दा

यहां कैराना का जिक्र भी जरुरी है. शामली जिले का कैराना मुजफ्फरनगर से ज्यादा दूर नहीं है. पिछले दिनों चर्चा उठी कि यहां के हिंदू मुसलमानों के डर से अपने घर छोड़कर जा रहे हैं. बीजेपी के एक सांसद विस्थापित हिंदुओं की लिस्ट लेकर आ गए.

मीडिया में इस खबर ने सुर्खियां बटोर लीं. इस बीच समाजवादी पार्टी ने तुरंत मामले की जांच के लिए हिंदू संतों की एक कमेटी बना दी. 20 जून 2016 को आचार्य प्रमोद, स्वामी कल्याण, नारायण गिरि, स्वामी चिन्मयानंद और स्वामी चक्रपाणी ने कैराना का दौरा किया.

इसके बाद सरकार को रिपोर्ट सौंप दी. संतों की टीम ने हिंदुओं के विस्थापन की बात झूठी मानी. गौर करने वाली बात है कि सरकार ने डीएम, एसपी या कमिश्नर की बात पर भरोसा नहीं किया. संतों की रिपोर्ट को तवज्जो दी.

इससे ये संदेश गया कि सरकार हिंदुओं की हितैषी है. रिपोर्ट ने हिंदू संतों के सरकार के साथ होने का मैसेज भी दे दिया. समाजवादी पार्टी ने सूझबूझ से बीजेपी की हिंदुत्व की उग्र राजनीति का जवाब दे दिया.

अगर आप इतिहास देखें तो पता चलेगा, कि समाजवादी पार्टी ने अयोध्या की घटना से भी फायदा उठाया. नवंबर के महीने में अयोध्या में 14 कोस (करीब 50 किमी) की परिक्रमा आयोजित होती है. इसमें देशभर से श्रद्धालु आते हैं.

विश्व हिंदू परिषद ने साल 2013 में एक परिक्रमा आयोजित की थी. आयोजन को लेकर वीएचपी और समाजवादी पार्टी की सरकार के बीच तनातनी हो गई थी. इस घटना के एक साल पहले ही यूपी सरकार न हिंदू साधु संतों से अपने संबंध ठीक किए थे. लखनऊ के सीएम आवास में संतों के स्वागत का भव्य आयोजन हुआ था.

समाजवादी पार्टी अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि से मुसलमानों को लुभाती रही है. दूसरी तरफ वो हिंदु तुष्टिकरण में भी पीछे नहीं है.

मायावती का साफ्ट हिंदुत्व

यूपी की चुनावी राजनीति में बीएसपी हिंदुत्व के समर्थन से बच रही है. लेकिन उसे ये डर भी है कि इस मसले पर सख्त स्टैंड कहीं खेल खराब न कर दे. इसलिए वो दूसरे तरीके अपनाकर हिंदुओं को लुभा रही है.

मायावती खुद कभी हिंदुओं, मुसलमानों और बौद्धों के धार्मिक कार्यक्रमों में हिस्सा नहीं लेतीं. हालांकि वो कबीर, रविदास, और बाबा अंबेडकर से जुड़े लोगों के मूर्तियों के निर्माण वाले कार्यक्रम में हिस्सा लेती रही हैं. मायावती से अलग उनके नेता धार्मिक आयोजनो में भाग लेते रहे हैं.

बीएसपी नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी मुस्लिम और बौद्ध धर्म के लिए जलसे करवा रहे हैं. इसके पीछे मकसद दलित-मुस्लिम गठबंधन को मजबूत करना है.

इसी तरह 2016 में बलिया के बीएसपी विधायक रमाशंकर सिंह ने हिंदुओं के कुंभ स्नान का आयोजन करवाया. उज्जैन कुंभ में मोहिनी एकादशी पर विशेष ट्रेन चलवाए गए. इन सारे दलों को हिंदु ध्रुवीकरण का डर सता रहा है. इसलिए वो पूरी कोशिश करके इससे बचने की जुगत लगा रहे हैं.

कांग्रेस ने इमरान मसूजद को यूपी प्रदेश उपाध्यक्ष नियुक्त किया है. मुसलमानों को जोड़ने की कोशिश कर रही है. लेकिन पार्टी नेता विंध्याचल देवी मंदिर, मैहर देवी जैसे हिंदु मंदिरों के चक्कर भी लगा रहे हैं. सबको डर है कि कहीं उन्हें एंटी हिंदु न मान लिया जाए.

हिंदु वोटों के जवाबी ध्रुवीकरण का मारक असर सबने देखा है. 2017 के यूपी चुनावों में ये कहां तक समीकरण बनाता या बिगाड़ता है. इसे देखने के लिए फिलहाल इंतजार ही करना होगा.