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पड़ताल: मासूम के कत्ल में माया मिली न मंगेतर, गर्लफ्रेंड की गवाही साबित करेगी कातिल था प्रेमी!

18 नवंबर 2014 को दिल्ली के गांधी नगर थाने में हुए एक 13 वर्षीय बच्चे के अपहरण और हत्या का दिल्ली पुलिस ने कैसे किया था खुलासा? इस मामले की पूरी पड़ताल

Sanjeev Kumar Singh Chauhan

दुनिया भर में अपराध मनोविज्ञान (क्राइम साइकोलॉजी) पर लिखी गई किताबों में दर्ज है कि आपराधिक घटना को अंजाम देने से पहले अपराधी बचाव के रास्ते तलाशता लेता है. भारत की राजधानी दिल्ली में घटी अपहरण-हत्या की वारदात में आरोपियों ने इस थ्योरी को मगर पूरी तरह झुठला दिया. इस घटना को अंजाम तक पहुंचाने के साथ-साथ मुलजिम अपने खिलाफ गवाह और सबूत भी खुद ही इकट्ठे करते रहे. ‘पड़ताल’ की इस कड़ी में हम पन्ने पलट रहे हैं पूर्वी दिल्ली के गांधी नगर इलाके में एक करोड़ की फिरौती के लिए हुए उत्कर्ष वर्मा अपहरण और हत्याकांड की.

18 नवंबर 2014 दिल्ली का थाना गांधी नगर


पूर्वी दिल्ली की राजगढ़ कालोनी निवासी हीरे-जवाहरात के व्यापारी मुकेश कुमार वर्मा ने दोपहर बाद थाने पहुंचकर, 13 साल के बेटे उत्कर्ष वर्मा के गायब हो जाने की खबर दी.

उत्कर्ष सुबह आनंद विहार स्थित विवेकानंद स्कूल गया था. निर्धारित समय तक उत्कर्ष घर नहीं लौटा. स्कूल कैब (वैन) ड्राइवर चांद मोहल्ला निवासी गुरमीत ने उत्कर्ष को रोज की तरह उस दिन भी दिन में करीब सवा दो बजे सत्संग मार्ग वाली गली नंबर एक के मोड़ पर उतार देने की जानकारी दी. सूचना मिलने पर शुरुआती पड़ताल गांधी नगर थाने के सब-इंस्पेक्टर सतवीर सिंह के हवाले कर दी गई.

एक करोड़ की ‘कॉल’ ने ला दिया पसीना

अपहरण का केस दर्ज होने वाली शाम ही करीब सवा सात बजे उत्कर्ष की मां ममता वर्मा के मोबाइल पर अनजान मोबाइल नंबर से कॉल आई. कॉल करने वाले ने कहा, ‘तेरे बेटे का अपहरण कर लिया गया है. बेटे की सही-सलामत वापसी के लिए एक करोड़ का इंतजाम कर ले.’ रात करीब पौने नौ बजे उत्कर्ष के पिता मुकेश कुमार वर्मा के मोबाइल पर अपहरणकर्ता ने फिरौती के लिए दोबारा धमकी दे कर दिल्ली पुलिस के हाथ-पांव फुला दिए.

सूचना पाकर मौके पर विशेष पुलिस आयुक्त (उस समय कानून और व्यवस्था दिल्ली पुलिस, अब केंद्रीय सुरक्षा बल में स्पेशल डायरेक्टर जनरल) दीपक मिश्रा, ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर (अब स्पेशल पुलिस कमिश्नर दिल्ली पुलिस की स्पेशल यूनिट फॉर वूमैन एंड चिल्ड्रेन सेफ्टी) संजय बेनीवाल, पूर्वी जिला पुलिस उपायुक्त अजय कुमार (अब विदेश मंत्रालय में ब्यूरो ऑफ सिक्योरिटी एडवाइजर) भी मौके पर पहुंच गए.

उत्कर्ष हत्याकांड के समय संयुक्त पुलिस आयुक्त रहे (अब स्पेशल पुलिस कमिश्नर) संजय बेनीवाल

डीसीपी अजय कुमार ने मामले की गंभीरता को भांपकर उसी वक्त पूर्वी जिले की स्पेशल टॉस्क फोर्स (एसटीएफ) के इंचार्ज इंस्पेक्टर के.जी. त्यागी (अब दिल्ली हाईकोर्ट के सुरक्षा प्रभारी) की टीम भी पड़ताल में लगा दी.

जानकारी मिल गई, अपहरणकर्ता नहीं मिले.

बकौल, दिल्ली पुलिस के विशेष आयुक्त संजय बेनीवाल (तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त), -‘जिन अनजान मोबाइल नंबरों से उत्कर्ष की मां और पिता को फिरौती की कॉल्स आईं, दिल्ली पुलिस को उनकी डिटेल तो रात को ही मिल गई. परेशानी यह थी कि अपहरणकर्ताओं को फिरौती की रकम कब और कहां देनी है? यह राज नहीं खुल रहा था. हालांकि फिरौती की रकम वसूलने के लिए अपहरणकर्ता साफ तौर पर जल्दबाजी में मालूम पड़ रहे थे.

हमें (दिल्ली पुलिस) इससे यह भी आशंका हो रही थी कि कहीं जल्दबाजी में अपहरणकर्ताओं ने मासूम उत्कर्ष की हत्या तो नहीं कर दी है ! जिसके चलते वे जल्दी से जल्दी फिरौती वसूल कर भाग जाना चाहते हों.

ताड़ गई पुलिस नौसिखिये हैं अपहरणकर्ता

उस समय पूर्वी जिले के डीसीपी (जिला पुलिस उपायुक्त) रहे अजय कुमार के मुताबिक,- ‘फिरौती की कॉल-रिकार्डिंग सुनकर पुलिस ने यह ताड़ लिया था कि अपहरणकर्ता जल्दबाजी में और नौसिखिये हैं. हमारे (पुलिस) इन दोनों अनुमानों से यही सामने निकलकर आया कि कहीं डर के कारण ऐसा न हो कि अपहरणकर्ता, फिरौती की डील परिवार वालों से खुलकर न कर पाएं. दूसरे, पुलिस से डरकर वे उत्कर्ष को नुकसान न पहुंचा दें.’

वायरलेस पर आई लाश मिलने की खबर

वो स्थान जहां हत्यारों ने उत्कर्ष की लाश फेंकी थी

बकौल मामले के पड़ताल अफसर एसीपी पीजी सेल शहादरा (उस वक्त इंस्पेक्टर थाना प्रभारी गांधी नगर) मनोज पंत, - ‘19 नबंवर 2014 को सुबह करीब पौने आठ बजे वायरलेस सेट पर मैसेज आया कि बेकरी चौक 12 ब्लॉक गीता कालोनी में गुरुद्वारे के पास मौजूद नाले में एक बच्चे की लाश पड़ी है. सूचना मिलते ही मैं सब- इंस्पेक्टर कुलवीर और सिपाही दीपचंद के साथ मौके पर पहुंच गया. थाना गीता कालोनी में तैनात सब-इंस्पेक्टर अमरजीत सिंह सिपाही सुनील वहां पहले से मौजूद मिले.

लाश अपहृत बच्चे उत्कर्ष वर्मा की थी. तमाम कानूनी खानापूर्ति और कमला मार्केट क्राइम ब्रांच से बुलाए गए पुलिस फोटोग्राफर हेड-कांस्टेबिल अमर लाल से फोटो खिंचवाने के बाद लाश को पोस्टमॉर्टम के लिए सब्जी मंडी मोर्च्यूरी भिजवा दिया.’पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट से पता चला कि, उत्कर्ष की हत्या गला-मुंह दबाकर की गई है.

पुलिस का पूर्वानुमान जो सच में बदल गया

दिल्ली स्पेशल पुलिस कमिश्नर संजय बेनीवाल के मुताबिक, ‘परिणाम वही हुआ जिसकी आशंका थी. नौसिखिये होने के चलते हड़बड़ाहट में अपहरणकर्ता उत्कर्ष की हत्या करके लाश घर से कुछ ही दूरी पर थाना गीता कॉलोनी के इलाके में फेंक गए. घर के पास लाश मिलने से यह तो तय हो गया था कि अपहरण के बाद उत्कर्ष को घर के आसपास के ही इलाके में कहीं छिपा कर रखा गया होगा. क्योंकि दूर से लाश को लाकर घर के पास फेंकने का जोखिम हत्यारे नहीं उठाएंगे.’

ऐसे पहुंची हत्यारों के करीब पड़ताली टीम

एसीपी और मामले के पड़ताली अफसर मनोज पंत के मुताबिक,- ‘लाश मिलने के बाद पुलिस टीमों ने परिवार वालों से बात की. बातचीत से जो-जो संदिग्ध नाम सामने आए उन सबको थाने में तलब कर लिया. पुलिस द्वारा 25 नवंबर 2014 को गांधी नगर थाने में बुलाए गए, इन्हीं लोगों में शामिल था 22-23 साल का मसलमैन टाइप युवक प्रताप सिंह सिसौदिया. बेवर्ली हिल्स अपार्टमेंट गीता कॉलोनी में रहने वाले प्रताप सिसौदिया का पिता पेशे से बिल्डर था. कुछ समय पहले ही प्रताप सिसौदिया के पिता ने उत्कर्ष का मकान बनवाया था. उत्कर्ष के परिवार की आर्थिक स्थिति काफी मजबूत है. प्रताप सिसौदिया को भली-भांति पता था.’

मुलजिम सिद्धार्थ शर्मा पर मासूम उत्कर्ष के प्राण निकलने तक गले पर पैर रखकर खड़े रहने का आरोप है.

प्रताप के मोबाइल की कॉल डिटेल और लोकेशन पुलिस शक के आधार पर पहले ही निकाल चुकी थी. पुलिस यह पता लगा चुकी थी कि प्रताप सिंह सिसौदिया की लोकेशन (उसके मोबाइल के टॉवर्स के हिसाब से) उन्हीं जगहों पर थी, जिन स्थानों से उत्कर्ष के मां-बाप को एक करोड़ की फिरौती की रकम देने की धमकी दी गई थी. शक के आधार पर पुलिस ने प्रताप सिंह सिसौदिया के दोस्त गली नंबर चार राजगढ़ कॉलोनी, गांधी नगर में रहने वाले सिद्धार्थ शर्मा उर्फ सिड को भी थाने बुला लिया. दोनों ने पुलिस के सामने जुर्म कबूल लिया.

वो तड़पा तो हम गर्दन के ऊपर खड़े हो गए

अदालत में दाखिल पुलिस चार्जशीट (आरोप-पत्र) में दर्ज मुलजिम प्रताप सिंह सिसौदिया और सिद्धार्थ शर्मा के बयान के मुताबिक, 'रात को नींद की गोलियां मिला खाना खाकर उत्कर्ष सो रहा था. 19 नवंबर 2014 को तड़के करीब 4 बजे सोते हुए उत्कर्ष को हम दोनो मारने लगे. सिद्धार्थ, उत्कर्ष के गले पर पैर रखकर खड़ा हो गया. मैंने (प्रताप सिंह सिसौदिया) उत्कर्ष के दोनों हाथ पकड़ लिए. उत्कर्ष तड़पने लगा, लेकिन वो मर नहीं रहा था. तब मैंने (प्रताप सिंह सिसौदिया) उत्कर्ष के मुंह-नाक को जोर से भींचा. सिद्धार्थ ने उत्कर्ष के हाथ पकड़ लिए. उत्कर्ष तड़पने लगा. काफी देर तक जब उत्कर्ष नहीं मरा तो, मैंने कमरे में रखा तकिया उसके मुंह पर रखकर दबा दिया. थोड़ी देर तड़पने के बाद उत्कर्ष मर गया.'

पिता का कर्ज उतार करोड़पति बनने के फेर में फंसा

पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज प्रताप सिसौदिया के बयान के मुताबिक, उसे फिल्मों में हीरो और मॉडल बनने का चस्का लगा था. दस लाख रुपए पिता से उधार लेकर मुंबई गया. वहां दस लाख खा-पीकर खाली हाथ दिल्ली लौट आया. पिता का कर्जा उतारने की ख्वाहिश में, उत्कर्ष का अपहरण करके मोटी रकम वसूलने का षड्यंत्र रच डाला. और तिहाड़ जेल की काल कोठरी में जाकर कैद हो गया.

ऐसे हुआ था मासूम के विश्वास का कत्ल

आरोपियों ने पुलिस को बताया कि जैसे ही स्कूल वैन ड्राइवर ने उत्कर्ष को गली के मुहाने पर उतारा. प्रताप सिसौदिया ने उत्कर्ष से कहा कि उसकी दादी की डेथ (देहांत) हो गया है. घर में कोई नहीं है. उत्कर्ष चूंकि पहले से प्रताप सिसौदिया को भली-भांति जानता था और अंकल कहता था. इसलिए वो विश्वास करके उसके साथ दुपहिया पर बैठकर चला गया. योजना के मुताबिक सिद्धार्थ की स्कूटी पर बैठाकर प्रताप, उत्कर्ष को ईस्ट गुरु अंगद नगर में किराए के फ्लैट में ले गया.

उस फ्लैट में प्रताप सिसौदिया की गर्लफ्रेंड (मंगेतर) किराए पर रह रही थी. नागपुर महाराष्ट्र की रहने वाली वो लड़की उस वक्त सिविल सर्विसेज के कंप्टीशन की तैयारी कर रही थी.

होने वाली बीवी को झूठ बोलकर धमकाया

प्रताप सिसौदिया ने गर्लफ्रेंड को बरगलाने के लिए उसे बताया कि यह शिकार (बच्चा उत्कर्ष) दिल्ली के मशहूर डॉन का है. अगर तुम बीच में आओगी तो वो डॉन हम सबको मार डालेगा. थोड़ी बहुत देर में डॉन आकर खुद ही बच्चे को साथ ले जाएगा. हकीकत से पूरी तरह अनजान वो लड़की, प्रेमी प्रताप सिंह सिसौदिया की धमकी से डरकर चुप्पी लगा गई. अब तक प्रताप और सिद्धार्थ नींद की गोलियां मिला हुआ कोल्ड ड्रिंक पिलाकर मासूम उत्कर्ष को सुला चुके थे.

विरोध पर उतरी मंगेतर को भी कैद !

मजिस्ट्रेट के सामने प्रेमी के खिलाफ अदालत में प्रेमिका के दर्ज बयान के मुताबिक, ‘रात तक जब उत्कर्ष को लेने डॉन नहीं आया, तो उसने (मंगेतर) प्रताप सिंह सिसौदिया से कहा कि वो बच्चे को तुरंत उसके मां-बाप के पास या जहां से भी लाया है, वहीं वापस करके आए. गर्लफ्रेंड को विरोध पर उतरा देखकर, प्रताप सिसौदिया ने उसे एक कमरे में बंद कर दिया. पुलिस को दिए बयान के मुताबिक रात को किसी तरह नींद की कई गोलियां मिला खाना जबरदस्ती खिलाकर उत्कर्ष को सुला दिया.

खून के रिश्ते को शिकार बनाने का अधूरा मंसूबा

उत्कर्ष हत्याकांड का मुख्य आरोपी प्रताप सिंह सिसौदिया (नीली शर्ट में) साथ में है सिद्धार्थ शर्मा उर्फ सिड

मामले के पड़ताली एसीपी मनोज पंत के मुताबिक, उत्कर्ष को शिकार बनाने से पहले प्रताप सिंह सिसौदिया ने अपनी बुआ के पोते को ही किडनैप करने का प्लान बनाया था. कई दिन तक उसका पीछा किया. हर वक्त उसके साथ घर का कोई न कोई मेंबर लगा रहता था. लिहाजा उसे किडनैप करने का प्लान छोड़कर ध्यान उत्कर्ष के अपहरण की योजना पर लगा दिया.

मंगेतर की गवाही तय करेगी जेल या जमानत!

इस जघन्य हत्याकांड में चश्मदीद गवाह गर्लफ्रेंड (प्रताप सिसौदिया की मंगेतर) की अदालत में गवाही ही पर निर्भर होगा कि मासूम उत्कर्ष के हत्यारोपियों को अदालत क्या सजा मुकर्रर करेगी? पुलिस ने मास्टर-माइंड (मुख्य आरोपी) प्रताप सिंह सिसौदिया के खिलाफ अदालत में गवाही देने के लिए उसकी मंगेतर को ही चश्मदीद बनाया है.

मुलजिम अपने ही खिलाफ इकट्ठे करते रहे सबूत

पड़ताली टीम को उस वक्त लीड कर रहे पूर्वी दिल्ली जिले के डीसीपी (जिला पुलिस उपायुक्त, अब रिटायर्ड) अजय कुमार के मुताबिक यह जरूर है कि आरोपियों ने अपने खिलाफ इतने सबूत खुद ही इकट्ठे कर लिए हैं, जो उन्हें कहीं न कहीं परेशानी का सबब बन सकते हैं. जैसे कि वो सीसीटीवी फुटेज, जिसमें मुख्य आरोपी प्रताप सिंह सिसौदिया उत्कर्ष को स्कूटी पर अपहरण करके ले जाता दिखाई दे रहा है. वॉयस सैंपल रिपोर्ट्स जिनमें साबित होता है कि एक करोड़ की फिरौती की रकम इन्हीं के द्वारा मांगी गई, नींद की गोलियाँ केमिस्ट से खरीदने के लिए दिल्ली के लोकनायक जय प्रकाश नारायण अस्पताल की वो पर्ची जो, प्रताप को लावारिस जमीन पर पड़ी मिल गई थी, इसी पर्ची में उसने नींद की गोलियों का नाम लिख लिया था. केमिस्ट का बिल जिसमें नींद की गोलियाँ खरीदने का जिक्र है आदि-आदि. फिलहाल मामला दिल्ली की कड़कड़डूमा अदालत में विचाराधीन है.

चोर, चोरी से जाए हेरा-फेरी से न जाए

पड़ताली अधिकारी दिल्ली पुलिस के सहायक आयुक्त मनोज पंत के मुताबिक, पकड़े जाने की स्थिति से निपटने के लिए मुलजिमों ने हैरतंगेज ‘मास्टर-प्लान’ बनाया. प्लान था कि जब भी पुलिस उन्हें शक के आधार पर थाने बुलाएगी तो वे दोनों एक साथ थाने में ही पुलिस वालों के ऊपर टूट पड़ेंगे. उनकी इस हरकत से पुलिस खुद को नई मुसीबत में फंसता देखकर, उन पर हाथ डालने से कतराने लगेगी. इतना ही नहीं प्लान के मुताबिक पुलिस से भिड़ंत के वक्त दोनों अपने आप ही खुद को जख्मी भी कर लेंगे.

ये हैं दिल-दहला देने वाली पड़ताल के अफसर

उत्कर्ष अपहरण और हत्याकांड के आरोपियों को सलाखों के पीछे पहुंचाने वाले एसीपी मनोज पंत

मूलत: नैनीताल (उत्तराखंड) निवासी मनोज पंत 1986 में ठाकुर देव सिंह बिष्ट डिग्री कॉलेज से इकॉनोमिक्स में पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे थे. उसी साल एसएससी द्वारा आयोजित डायरेक्ट सब-इंस्पेक्टर की परीक्षा में शामिल हुए. परीक्षा में पास होते ही उसी साल वे दिल्ली पुलिस में सब-इंस्पेक्टर बन गए. पहली पोस्टिंग मिली पूर्वी दिल्ली के थाना शकरपुर में. 2002 से 2004 तक मनोज पंत दिल्ली और देश की सबसे सम्मानित समझी जाने वाली उत्तरी दिल्ली जिले के थाना कोतवाली की लाल किला पुलिस चौकी के इंचार्ज रहे.

2006 में इंस्पेक्टर के पद पर प्रमोट हुए तो एडिशनल एसएचओ पूर्वी दिल्ली के न्यू अशोक नगर थाने में तैनाती मिली. इसके बाद प्रसाद नगर, वसंतकुंज थाने में भी एडिश्नल एसएसओ रहे. बतौर एसएचओ मनोज पंत पूर्वी दिल्ली के ही प्रीत विहार थाने में तैनात किए गए. इसके अलावा गोविंदपुरी, गांधी नगर थाने के थानाध्यक्ष भी रहे. पूर्वी दिल्ली स्पेशल स्टाफ प्रभारी रहने के बाद मनोज पंत 2016 में विशेष पुलिस आयुक्त संजय बेनीवाल के स्टाफ ऑफिसर रहे. मई 2017 में प्रमोट होकर उन्हें सहायक पुलिस आयुक्त (एसीपी) बनाया गया. वर्तमान में मनोज पंत दिल्ली के शाहदरा जिला पुलिस मुख्यालय में पीजी सेल और जिला मुख्यालय प्रमुख हैं.