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यूपी चुनाव 2017 : बाहुबल पर बाप 'मुलायम' बेटा सख्त ?

समाजवादी पार्टी के सारे अनैतिक फैसले सीएम की मर्जी के बिना लिए जा रहे..

Vivek Anand

समाजवादी पार्टी में रोज-रोज के पारिवारिक झगड़े में मनमुटाव चाहे जिस बात का हो. संदेश ये गया कि - मुख्यमंत्री अखिलेश यादव गैंगस्टर मुख्तार अंसारी की पार्टी के विलय के खिलाफ हैं, गंभीर भ्रष्टाचार के आरोपी मंत्री गायत्री प्रजापति के खिलाफ हैं, पत्नी की हत्या के आरोपी अमनमणि त्रिपाठी को टिकट दिए जाने के खिलाफ हैं. यानि समाजवादी पार्टी के सारे ‘अनैतिक’ फैसले सीएम की मर्जी के बिना लिए जा रहे हैं.

इससे दो फायदे हुए हैं. पहला - पार्टी पारिवारिक झगड़े की ओट लेकर चुनावों में फायदा पहुंचाने वाले फैसले ले रही है. दूसरा- इन फैसलों पर नाराजगी जताने से अखिलेश की साफसुथरी इमेज जनता के सामने आ रही है. समाजवादी पार्टी पर भ्रष्टाचार, अपराधियों के संरक्षण, बाहुबलियों को शरण देने के गंभीर आरोप लग सकते थे. लेकिन चर्चा सिर्फ पारिवारिक झगड़े की हो रही है.


मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में सजा काट रहे अमरमणि त्रिपाठी के बेटे हैं अमनमणि त्रिपाठी. अमन पर अपनी पत्नी सारा की हत्या का आरोप है. सारा की मां ने अमनमणि त्रिपाठी के परिवार और समाजवादी पार्टी के बड़े नेताओं से अपनी जान को खतरा बताया है. लेकिन चुनावी गणित बिठाने के लिए समाजवादी पार्टी बाहुबलियों को अपने से जोड़ने का जोखिम उठा रही है.

पूर्वी यूपी के गैंगस्टर मुख्तार अंसारी और उसकी पार्टी का मामला भी अब तक अनसुलझा है. हालांकि विलय और गठबंधन के कयासों के बीच उसके समाजवादी पार्टी के साथ जाकर चुनाव लड़ने की संभावना साफ है. समाजवादी पार्टी ने अपने फलने-फूलने में बाहुबलियों की मदद लेने से कभी परहेज नहीं किया. इसका लंबाचौड़ा इतिहास रहा है.

यूपी के सामाजिक-राजनीतिक इतिहास को बेतरीन तरीके से बयां करने वाला उपन्यास है आधा गांव. मशहूर उपन्यासकार राही मासूम रजा ने आधा गांव में कम्यूनिस्ट नेता सूरज पांडे के जरिए इलाके की राजनीति का हाल बताया है. नब्बे के दशक तक पूर्वी उत्तर प्रदेश में गाजीपुर का इलाका कम्यूनिस्ट पार्टी का गढ़ था.

छवि के लिए पिता के खिलाफ हुए अखिलेश

सूरज पांडे के रसूख ने अंसारी भाइयों की राजनीतिक जमीन तैयार की. अफजल अंसारी विधायक बन गया और छोटा भाई मुख्तार अंसारी इलाके का कुख्यात गैंगस्टर. मुख्तार अंसारी के अपराधों को इलाके के भूमिहार-राजपूत के वर्चस्व को चुनौती देने वाले अभियान के तौर पर महिमामंडित किया गया. मुख्तार अंसारी के खिलाफ हत्या, फिरौती, जायदाद पर जबरन कब्जा के मामले बढ़ते गए. वो पिछले एक दशक से जेल में बंद है. लेकिन बाहुबल की राजनीति में उसकी जरूरत बनी हुई है.

2009 में बीजेपी के कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी के खिलाफ उसने चुनाव लड़ा. हालांकि ये चुनाव फिक्स्ड मैच की तरह था. अंसारी की वजह से चुनाव में वोटों का ध्रुवीकरण हुआ. इसका सीधा फायदा मुरली मनोहर जोशी को मिला.

2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में मुलायम सिंह यादव अपने पाले में मुख्तार अंसारी के इस्तेमाल की फिराक में हैं. बिहार से लगते पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाकों में बाहुबल के जरिए चुनाव जीतने की परंपरा रही है. मुलायम इस परंपरा में जातिवादी राजनीति का गठजोड़ करके चुनावी गणित को फिट करने की कोशिश में हैं.

समाजवादी पार्टी यादव और मुस्लिम वोटरों के गठजोड़ पर यकीन करती है. सूबे के 30 फीसदी वोटर इस गठजोड़ का हिस्सा हैं. अंसारी की भूमिका इस गठजोड़ में मुसलमानों को प्रभावी तौर पर शामिल करने की है. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति में इस दांव पर अखिलेश को भरोसा हो न हो, मुलायम को है.

अपने पिता से उलट अखिलेश खुद को प्रगतिशील युवा नेता के बतौर पेश करते हैं. 2012 के विधानसभा चुनाव में पश्चिमी यूपी के गैंगस्टर डी पी यादव को उन्होंने एक झटके में पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया था. इस एक फैसले ने समाजवादी पार्टी के शासन को गुंडाराज बताने वालों के मुंह सिल दिए थे. लेकिन 5 साल बाद हालात बदल चुके हैं.

शहरी मिडिल क्लास में अखिलेश की छवि चमकी है. लेकिन यूपी के ग्रामीण इलाकों में राजनीति का अपना अलग मिजाज है. इसमें जातीय और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का इस्तेमाल हर पार्टी अपने हिसाब से करती है. इस परंपरा के मुलायम सिंह यादव माहिर खिलाड़ी रहे हैं. अखिलेश अपने पिता के फैसलों की मुखालफत नहीं कर सकते. ये जताकर वो अनैतिक होने की जिम्मेदारी से बच रहे हैं. मामला चित भी अपनी और पट भी अपना जैसा है.