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जहरीले सांप से खेलते हैं ये शिव भक्त, भक्ति ऐसी कि आप विश्वास नहीं करेंगे

जहरीले सांपो की माला पहनते हैं वो, नुकीले शूलों को अपनी जीभ और चेहरे के साथ शरीर के अंगों पर बेधवाते भी हैं, फिर भी न तो उन्हें दर्द होता है और न डर लगता है

Brajesh Roy

जहरीले सांपो की माला पहनते हैं वो, नुकीले शूलों को अपनी जीभ और चेहरे के साथ शरीर के अंगों पर बेधवाते भी हैं, फिर भी न तो उन्हें दर्द होता है और न डर लगता है. दरअसल ये शिव भक्त हैं और सावन के अंतिम दिनों में सर्प देवी मां मनसा की पूजा के दौरान ये अद्दभुत नजारा पेश करते हैं शिव भक्त. झारखंड की राजधानी रांची से 65 किमी दूर तमाड़ में रोंगटे खड़े करने वाला यह प्रदर्शन हर साल मां मनसा देवी की पूजा के अवसर पर भोक्ता दिखाते हैं.

भोले शंकर के भक्त जिन्हें पंच परगनिया क्षेत्रों में भोक्ता कहा जाता है. श्रद्धा, भक्ति और मान्यताओं के अनुसार सर्प देवी की पूजा के लिए भोक्ता पूरे 9 दिन का उपवास करते हैं फिर पूर्णाहुति के दिन सुबह से गले में जहरीले सांपो की माला पहनते हुए उनसे ठिठोली करते भोक्ता शिव मंदिर बु्ढा महादेव की तरफ आगे बढ़ते है. शिव भक्त और भोक्ताओं की इस टोली में हर प्रजाति के सांप होते हैं.


त्योहार में प्रदर्शन के लिए ग्रामीण साल भर पकड़ते हैं सांप

दिलचस्प पहलू यह भी है कि इस त्योहार के लिए शिव भक्त जंगलों में साल भर जहरीले सांपो को पकड़ने का कार्य करते हैं. रंग बिरंगे सांपों को कोई ज्यादा इकट्ठा कर लेता है तो उसका व्यवसाय भी जरूरत के मुताबिक कर लेता है. एक सांप की कीमत दो सौ से लेकर पांच हजार रुपए तक होती है. लेकिन यह सब कुछ गुपचुप तरीके से अब होने लगा है.

मान्यताओं के अनुसार सांपों की खरीद विक्री को उचित नहीं माना जाता है. पता चलने पर ऐसे लोगों पर समाज के लोग अर्थ दंड लगाकर उसे एक साल के लिए पूजा में शामिल होने से रोकते भी हैं. बावजूद इसके गुपचुप तरीके से ही सही इस मौके के लिए सांपो की खरीद विक्री का सिलसिला अब चल पड़ा है.

मनसा देवी मंदिर

नाम का खुलासा नहीं करने की शर्त में एक स्थानीय ग्रामीण ने बताया कि साल भर में वो बारह से पंद्रह सांप पकड़ लेता है और फिर सांपों के रख रखाव पर भी खर्च करना पड़ता है. ग्रामीण तर्क यह भी देता है कि मनसा देवी की पूजा के अवसर पर सांपो को सभी चाहते हैं लेकिन सांप पकड़ने के लिए वैसे भक्तों के पास दिलचस्पी नहीं होती और न समय ही होता है. मैं पूरा साल इसके लिए देता हूं तो मुझे कुछ तो कमाई होनी चाहिए. यही वजह है कि आकर्षक और ज्यादा जहरीले सांपों की कीमत भी ज्यादा होती है. कई भक्त तो बाकायदा एडवांस भी दिया करते हैं.

काट भी लें जहरीले सांप तो नहीं होती किसी की मौत

मान्यता के अनुसार सांपों की माला पहनने और उनसे ठिठोली करने वालों को सांप काट भी ले तो उसका जहर नहीं चढ़ता है और न किसी की मौत ही कभी होती है. विश्वास है कि भक्त सर्प देवी की पूजा करते हैं इसलिए मां मनसा देवी और भगवान भोले शंकर इनकी रक्षा करते हैं. मंदिर के बुजुर्ग पुजारी वाल्मीकि महतो भी किस्से कहानियों को सुनाते हुए इसी बात पर बल देते हुए कहते हैं कि पर्व के मौके पर सर्प दंश से एक भी भक्त की कभी मौत नहीं हुई है.

क्या जहरीले सांप भक्तों को काटते हैं या नहीं, इस सवाल पर पुजारी ने जवाब दिया कि सांप अपने स्वभाव के अनुकूल खिलवाड़ करने वालों को जरूर डसते हैं लेकिन जहर नहीं चढ़ता और थोड़ी तबीयत खराब हुई भी तो जड़ी बूटी से झाड़ फूंक करने से सब ठीक हो जाता है. पुजारी जी के अनुसार दिलचस्प पहलू यह भी है कि मानसा पूजा करने वाले भक्तों को पूरे साल भर जहरीले सांप नहीं काटते. विश्वास और ऐसा भरोसा क्षेत्र के सभी स्थानीय ग्रामीणों के मन मे होता है. यही वजह है कि मनसा पूजा में तमाड़ क्षेत्र के लोग बड़ी संख्या में शामिल होते हैं और अपनी भक्ति का परिचय भी देते हैं.

नुकीले शूलों से जीभ और शरीर को बेधवाते हैं भोक्ता

शिव भक्तों की भक्ति का एक परिचय यह भी होता है कि इस पूजा के अवसर पर वे अपनी जीभ, चेहरे से लेकर पूरे शरीर को नुकीले शूलों यानी लंबे नुकीले कीलों से बेधवाते हैं. आश्चर्य यह भी है कि जब नुकीले कील शरीर के हिस्सों को छेड़ते हुए आर पार निकलते हैं तो खून का एक कतरा भी नहीं निकलता. बड़ी बात यह भी है कि शरीर पर नुकीले कील छेदवाने वाले शिव भक्तों को दर्द भी नहीं होता. यह अलग बात है कि नुकीले शूलों को बेधने का काम गांव के चंद लोग ही करते हैं. या यह भी माना जाय कि इस कला में कुछ लोगों को ही महारत हासिल होता है. बड़ी बात यह भी है कि इसके लिए भक्तों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता है. बावजूद इसके इस कला में निपुण कलाकारों की मांग इस दिन आसमान की ऊंचाई पर होती है.

नुकीलें शूलों को अपनी जीभ और शरीर पर धारण किए शिव भक्त अपने गांव गलियों से अपनी भक्ति का प्रदर्शन करते हुए शाम को बुड्ढा महादेव शिव मंदिर पहुंच कर पहले भगवान भोले शंकर की एक सौ एक बार परिक्रमा करते हैं फिर बेलपत्र दूध जल के साथ औघड़दानी बाबा को जलार्पण कर अपनी भक्ति समर्पित करते हैं. मान्यता है कि पूरी निष्ठा भाव से जो भी भोक्ता व्रत रखता है और बाबा भोले शंकर को जल चढ़ाता है, शिव उसकी मनोकामना जरूर पूरी करते हैं.

पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ता जा रहा है भक्ति भाव

62 वर्षीय भोक्ता बद्रीनाथ महतो बताते हैं कि उनका जन्म सावन की अंतिम सोमवारी को हुआ था. मां ने भोले शंकर से पुत्र की कामना की थी और जब बद्रीनाथ का जन्म हुआ तो पूरा परिवार उसके बाद से उपवास करते हुए मां मनसा और शिव की पूजा करने लगा.

बद्रीनाथ का पोता आठ साल का राहुल भी पिछले तीन साल से इस मौके पर उपवास रखता है और शिवशंकर की पूजा पूरी भक्ति भाव से करता है. यानी इस क्षेत्र में मानसा देवी पूजा के अवसर पर माता और भगवान भोले शंकर की पूजा अर्चना पीढ़ी दर पीढ़ी करना अब एक परंपरा बन गई है. साथ ही जहरीले सांपों और शरीर पर नुकीले शूलों को बेधवा कर प्रदर्शन करने की होड़ भी श्रद्धालु भक्तो में लगातार बढ़ती जा रही है, यह भी एक उदाहरण है.

आस्था और परंपरा तो हमारी दिनचर्या का हिस्सा हैं. फिर भी जंगल से घिरे इस क्षेत्र के ग्रामीण धान की रोपनी के बाद इत्मिनान से होते हैं और यह भी एक बड़ा कारण होता है मनसा पूजा में बढ़ चढ़कर भागीदारी लेने का. वैसे तो मनसा देवी की पूजा झारखंड के पंच परगनिया क्षेत्रो के अलावा पश्चिम बंगाल, ओड़ीसा, और छत्तीसगढ़ में भी भक्ति भाव और उल्लास के साथ की जाती है. बावजूद इसके जो नजारा रांची जिला के बुंडू तमाड़ क्षेत्र में दिखता है वो अद्धभूत है.

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं.)