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एक 'अटल' प्रेम कथा: इश्क, इश्क ही रहा उसे रिश्तों का इल्जाम ना मिला...

पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी और मिसेज कौल की दोस्ती की वो कहानी जिसे किसी रिश्ते का नाम की दरकार नहीं थी

Sumit Kumar Dubey

साल 2014 में मई के महीने में पूरा देश आम चुनाव की गहमागहमी में  व्यस्त था. सभी राजनीतिक पार्टियों के नेता चुनाव प्रचार में मशगूल थे. इस बीच दिल्ली में एक दाह संस्कार हुआ. इस मौके पर लुटियंस की दिल्ली में अहमियत रखने वाला कई बड़े नाम शरीक हुए. उस वक्त के बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह, वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, अरुण जेटली, सुषमा स्वराज और रविशंकर प्रसाद के अलावा कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया भी मौजूद थे. यह दाह संस्कार था 86 साल की राजकुमारी कौल का था जो खुद को मिसेज कौल कहके बुलाती थीं और बीजेपी के तमाम नेता उन्हें ‘आंटी जी’ कहके संबोधित करते थे.

देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के घर की ओर से मिसेज कौल की मौत पर एक प्रेस रिलीज जारी की गई जिसमें उन्हें वाजपेयी जी के परिवार का सदस्य बताया गया. कांग्रेस की उस वक्त की अध्यक्ष सोनिया गांधी भी मातमपुर्सी के लिए वाजपेयी जी के घर पहुंचीं थीं .


कौन थीं मिसेज कौल और क्या थी उनकी कहानी!

कौन थीं ये मिसेज कौल जिनकी मौत पर देश के तमाम बड़े राजनेता चुनावी व्यस्तता को छोड़कर शोक मनाने पहुंचे थे यह जानने के लिए हमें घड़ी की सुइयों को पीछे घुमाकर आजादी से पहले के दौर में जाने की जरूरत है.

वाजपेयी जी के निजी जीवन की कहानी यूं तो अनसुनी ही है लेकिन उनके जीवन पर किताब लिखने वाले पत्रकार किंशुक नाग ने वाजपेयी जी के अतीत के पन्नों कुछ रोशनी डाली है.

भारतीय राजनीति की यह अटल प्रेम कहानी 1940 के दशक में ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज( (अब रानी लक्ष्मीबाई कॉलेज) में शुरू हुई जहां अटल जी और राजकुमारी हक्सर पढ़ा करते थे उस वक्त उन्हें उनके निकनेम ‘बीबी’ से जाना जाता था. किंशुक नाग के मुताबिक उस वक्त अटल जी को राजकुमारी कौल से मोहब्बत हुई. यह वो दौर था जब महज आंखों के जरिए ही परवान चढ़ने वाली मुहब्बत का इजहार खतों के जरिए होता था. अटल जी ने राजकुमारी के लिए एक खत भी लिखा.

यह खत उन्होंने लाइब्रेरी में एक किताब रख दिया. राजकुमारी ने भी इस खत का जवाब उसी किताब में लिखकर दिया लेकिन अटल जी तक यह खत पहुंच ही नहीं सका.

राजकुमारी भी अटल जी को पसंद करती थी लेकिन सामाजिक बंधनों और उस वक्त के हालात ने इस कहानी को अल्प विराम दे दिया.

इस बीच देश का बंटवारा हो गया. दंगे हुए और राजकुमारी के परिवार ने जल्दबाजी में उनका विवाह दिल्ली आकर के रामजस कॉलेज के प्रोफेसर बीएन कौल के साथ कर दिया. वहीं अटल जी ने भी अपना जीवन राजनीति को समर्पित कर दिया.

आजादी के बाद फिर हुई मिसेज कौल से अटल जी की मुलाकात

वक्त अपनी चाल से चलता गया और दोनों अपने–अपने जीवन में मशगूल हो गए. अटल जी राजनीति में कामयाब की सीढ़ियां तो चढ़ते रहे लेकिन उन्होंने विवाह नहीं किया.

अटल जी के एकाकी जीवन का दर्द यूं तो जाती था लेकिन उसकी टीसें कायनाती थीं. पत्रकार रहे राजनेता राजीव शुक्ला के साथ इंटरव्यू में अटल जी ने यह कबूला भी था. उनका कहना था कि वह जीवन में कई बार खुद को बेहद अकेला महसूस करते हैं.

वक्त एक बार फिर बदला और दिल्ली में अटल जी की मुलाकात फिर से राजकुमारी के साथ हुई अब वह मिसेज कौल के नाम से जानी जाती थी.

ग्वालियर के कॉलेज से शुरू हुई दोस्ती अब भी बरकरार थी और अटल जी दिल्ली में रामजस कॉलेज में कौल साहब के घर पर ही ठहरा करते थे. मिसेज कौल की बेटी नमिता को अटल जी ने अपनी दत्तक पुत्री का दर्जा दिया. इन्हीं नमिता ने अटल जी चिता को मुखाग्नि दी.

मिस्टर कौल का देहांत के बाद मिसेज कौल अटल जी के साथ प्रधानमंत्री के आधिकारिक निवास यानी 7 रेस कोर्स रोड ( अब लोक कल्याण रोड) पर ही रहने लगीं. 2004 में अटल जी के प्रधानमंत्री ना रहने के बाद भी अगले 10 साल वह अटल जी के घर पर ही रहीं.

'मैं और अटल जी 40 साल से दोस्त हैं'

पत्रकार गिरीश निकम ने रेडिफ डॉटकॉम में लिखा है वह अक्सर अटल जी के घर पर फोन किया करते थे जिसे मिसेज कौल ही उठाती थीं. एक बार उन्होंने फोन उठाने के बाद गिरीश निकम से पूछ ही लिया कि क्या आप मुझे जानते हैं. निकम ने जवाब दिया- नहीं. मिसेज कौल ने कहा, ‘मैं मिसेज कौल हूं, राजकुमारी कौल. मैं और अटल जी लंबे वक्त से दोस्त हैं. 40 साल से ज्यादा वक्त से, और आप मुझे नहीं जानते.’

यूं तो अटल जी की निजी जिंदगी में कभी मीडिया ने ताकझांक करने की कोशिश नहीं लेकिन उनके करीबी सर्किल में हर कोई मिसेज कौल और उनकी अहमियत से वाकिफ था. वह अटल जी के जीवन का अहम हिस्सा थीं.

अटल जी के पीएम कार्यकाल के दौरान उनकी बेटी नमिता के पति रंजन भट्टाचार्य की अहमियत उस वक्त के अखबारों की सुर्खियों में बनी रहती थी. कहा जाता है जब भी वह अटल जी के साथ बतौर पारिवारिक सदस्य विदेश दौरे पर जाते थे तो मिसेज कौल उन्हें हमेशा अटल जी को वक्त दवाएं देने की ताकीद देती रहती थीं.

अटल जी और मिसेज कौल की यह दोस्ती अपने कितनी खास थी इसका अंदाजा इस बात ले लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपनी कविताओं में जीवन के हर पहलू पर बात की लेकिन कभी अपने जिंदगी के इस सबसे अहम हिस्से को कलम के जरिए  कागज पर नहीं उकेरा. खुद मिसेज कौल भी इस रिश्ते को कोई नाम देने से बचती रहीं. एक पत्रिका से बात करते हुए मिसेज कौल ने कहा था कि उन्हें और अटल जी को इस रिश्ते को कोई नाम देने की जरूरत कभी महसूस ही नहीं हुई.

बहरहाल मिसेज कौल के इंतकाल के चार साल बाद अटल जी भी अब इस दुनिया में नहीं रहे हैं. उनके और मिसेज कौल के बीच की इस दोस्ती को किसी रिश्ते का नाम देने की बजाय फिल्म खामोशी के लिए  गुलजार के लिखे इस गीत की इन चार पंक्तियों से समझने की जरूरत है..

‘हमने देखी है इन आंखों की महकती खुश्बू

हाथ से छू के इसे रिश्तों का इल्जाम ना दो,

सिर्फ अहसास है ये, रूह से महसूस करो

प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो’.