भोपाल में भी एक ताज महल है. लेकिन, इस ताज महल में कोई मकबरा नहीं है. कोई प्रेम कहानी भी इस ताज महल से नहीं जुड़ी हुई है. भोपाल का ताज महल भी मुगल वास्तु कला का अद्भुत नमूना है. इस ताजमहल का निर्माण किसी शहंशाह ने नहीं वरन भोपाल की एक बेगम ने कराया था.
उनका नाम शाहजहां बेगम था. वे 1861 से 1901 तक भोपाल रियासत की बेगम रही थीं. उन्होंने ताजमहल का निर्माण अपने खुद के निवास के लिए कराया था. इस ताजमहल में 120 कमरों के अलावा आठ बड़े हॉल हैं. दावतें और बैठकें इन्हीं हॉल में हुआ करती थीं. इस ताजमहल के निर्माण में कुल तेरह साल लगे. साल 1871 में इसका निर्माण चालू हुआ था. 1884 में यह बनकर तैयार हुआ.
शाहजहां बेगम ने इसे राजमहल नाम दिया था. इसकी खूबसूरती ने इसका नामकरण ताजमहल के तौर पर कर दिया. सत्रह एकड़ में बना यह ताजमहल बाहर से पांच मंजिल और अंदर दो मंजिल है. भवन के निर्माण पर उस दौर में कुल तीन लाख रुपए का खर्च आया था. महल बनने के बाद तीन साल तक बेगम ने जश्न मनाया. भोपाल का शाहजहांबाद इलाका, इन्हीं बेगम के नाम पर है.
ताजमहल में हैं सावन-भादो
मध्यप्रदेश के इस ताजमहल की कई खूबियां हैं. इसकी पहली खूबी इसका दरवाजा है. इसके दरवाजे का वजन एक टन से ज्यादा है. कई हाथियों की ताकत भी इस दरवाजे को तोड़ नहीं सकतीं थीं. दरवाजा इतना विशाल है कि 16 घोड़ों वाली बग्गी भी 360 डिग्री में घूम सकती थी. इस दरवाजे की नक्काशी में रंगीन कांच का प्रयोग किया गया था. इस कारण इसे शीशमहल भी कहा जाता है. कांच पर पड़ने वाली सूरज की रोशनी से उत्पन्न होने वाली चमक लोगों की आंखों पर पड़ती थी. इस कारण महल के अंदर प्रवेश करने के लिए हर व्यक्ति को अपना सिर नीचा कर दरवाजा पार करना होता था.
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एक अंग्रेज अफसर को यह पसंद नहीं था कि वो महल में सिर नीचा कर प्रवेश करे. उसने बेगम को कांच हटाने का आदेश दिया. कहा जाता है कि बेगम ने अंग्रेज अफसर का आदेश मानने से इंकार कर दिया.
अंग्रेज अफसर ने आदेश न मानने पर बेगम को चेतावनी भी दी और कहा कि आदेश की अवहेलना होने पर खुद इसे उड़ा देंगे. बेगम ने अंग्रेज अफसर को मुख्य द्वार के कांच तोड़ने के लिए दस अवसर प्रदान किए. अंग्रेज अफसर ने कांच तोड़ने के लिए सौ से ज्यादा फायर किए लेकिन, कांच तोड़ नहीं पाए. ताजमहल की एक अन्य खूबी सावन-भादौ मंडप है. यह मंडप कश्मीर के शालीमार बाग की तरह है. यहां लगे कृत्रिम झरने के नीचे बैठककर बेगम शाहजहां सावन-भादौ के महीने में होने वाली बारिश का अनुभव करतीं थीं.
कहा यह भी जाता है कि इस महल में एक सुरंग है, जिसका दूसरा सिरा भोपाल से लगभग चालीस किलोमीटर दूर रायसेन में है. महल की देखरेख पुरातत्व विभाग द्वारा की जाती है.
मध्यप्रदेश से रहा है मुमताज का संबंध
आगरा में शाहजहां ने जिस मुमताज की याद में ताजमहल का निर्माण कराया, उसकी मृत्यु आगरा में नहीं हुई थी. मुमताज का निधन मध्यप्रदेश के बुरहानपुर में हुआ था. बाद में उसे ताजमहल में दफना दिया गया. ताजमहल में मौजूद मकबरा प्यार की निशानी के तौर पर बनाया गया. अकबर ने 1599 में बुरहानपुर पर अधिकार कर लिया. साल 1601 में खानदेश को मुगल साम्राज्य में शामिल कर लिया. शाहजहां की प्रिय बेगम मुमताज की साल 1631 में यहीं मृत्यु हुई. मराठों ने बुरहानपुर को अनेक बार लूटा और बाद में इस प्रांत से चौथ वसूल करने का अधिकार भी मुगल साम्राट से प्राप्त कर लिया.
आर्थर वेलेजली ने सन् 1803 में बुरहानपुर को जीत लिया. साल 1805 में इसे सिंधिया को वापस कर दिया गया और साल 1861 में यह ब्रिटिश सत्ता को हस्तांतरित हो गया. शेरशाह के समय बुरहानपुर की सड़क का मार्ग सीधा आगरा से जुड़ा हुआ था. दक्षिण जाने वाली सेनाएं बुरहानपुर होकर जाती थी. अकबर के समय बुरहानपुर एक बड़ा, समृद्ध और जन-संकुल नगर रहा. बुरहानपुर सूती कपड़ा बनाने वाला एक मुख्य केंद्र था. आगरा और सूरत के बीच सारा यातायात बुरहानपुर होकर जाता था. बुरहानपुर में ही मुगल युग की अब्दुल रहीम खानखाना द्वारा बनवाई गई प्रसिद्ध 'अकबरी सराय' भी है