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हमारे राष्ट्रगान का दूसरा हिस्सा भी है, वो भी गाना चाहिए कभी-कभी

आजादी से सत्तर साल बाद भी देश में महिला सुरक्षा की स्थिति सोचनीय है

Najma Heptulla

जब देश आज़ाद हुआ तो उस वक्त मैं महज़ सात साल की थी. हम लोग परिवार के साथ भोपाल में ही रहते थे. आज भी मेरे ज़हन में उस आधी रात की वो तस्वीर रह-रह कर ताज़ा हो जाती है जब मेरे पिता ने मुझे नींद से जगाया.

उन्होंने कहा कि उठो ये इतिहास का बड़ा अहम लम्हा है. इसे मिस मत करो. लेकिन, उस वक्त मेरी समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या करना है. ये सब क्या हो रहा है?


हम अपनी दादी से पूछते थे. वो मौलाना आज़ाद की बड़ी बहन थीं. मौलाना आज़ाद साहब यानी हमारे दादा अब्बा उस वक्त जेल में थे तो मैं घरवालों से पूछती थी कि दादा अब्बा जेल में क्यों हैं? जेल में तो चोर जाते हैं. लेकिन, दादी कहती थी कि वो आज़ादी के लिए लड़ रहे हैं. मेरी समझ में नहीं आता था कि इसका क्या मतलब है?

देश आज़ाद होने से पहले मौलाना आज़ाद साहब अहमदनगर जेल में थे और उस वक्त जो चिट्ठियां आती थीं तो वो सेंसर होकर आती थीं. हालांकि हमारे खानदान में किसी को पता नहीं था कि वो अहमद नगर में हैं. लोग ये समझते थे कि वो कालापानी की सज़ा में अंडमान निकोबार में हैं.

अबुल कलाम आज़ाद, आचार्य जेबी कृपलानी, सरदार पटेल, सुभाष बोस (बाएं से दाएं)

हमें उस वक्त जब आधी रात में जगाया गया तो हमने रेडियो पर नेहरू जी का भाषण सुना. फिर धीरे-धीरे समझ आ गया कि देश आज़ाद हो गया है. हालांकि, उस वक्त भोपाल शहर में शांति थी. देश के विभाजन के बाद अशांति का माहौल भोपाल में हमने नहीं देखा.

फिर अगले साल 15 अगस्त 1948 को जब आज़ादी की पहली सालगिरह मनाई जा रही थी तो उस वक्त मैं आठ साल की थी. उस वक्त भी जो भोपाल की रियासत थी उस पर ब्रिटिश यूनियन का कंट्रोल था. मौलाना आज़ाद साहब को भोपाल आने की इजाज़त नहीं थी. बाद में सरदार पटेल ने इन रियासतों को भारत में मिलाया.

हमें आज भी याद है भोपाल के खिरनीवाला मैदान का वो दृश्य जब मेरी टीचर ने मुझे और मेरी कज़न सिस्टर को मंच पर खड़ा किया और राष्ट्र गान गाने के लिए कहा. उस वक्त मैं आठ साल की थी और मेरी कज़न सिस्टर 9 साल की थी. हमने राष्ट्र गान के दोनों पार्ट को गाया. कोई स्टेज नहीं. कुछ नहीं. बस केवल टेबल पर खड़े हुए थे और वो टीचर हारमोनियम बजा रही थीं.

आज हम जो राष्ट्र गान गाते हैं, ये हमने सात साल की उम्र में सीखा था. अब भी उन लम्हों को याद कर मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं. उसका दूसरा भाग भी गाना चाहिए कभी ना कभी. वो बहुत अच्छा है. उसमें देश की एकता की बात कही गई है. आज भी मुझे राष्ट्रगान का दूसरा पार्ट याद है-

अहरह तव आह्वान प्रचारित, शुनि तव उदार बाणी

हिन्दु बौद्ध शिख जैन पारसिक मुसलमान खृष्टानी

पूरब पश्चिम आसे तव सिंहासन-पाशे

प्रेमहार हय गांथा।

नगण-ऐक्य-विधायक जय हे भारतभाग्यविधाता!

जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।

हमारे राष्ट्रगान के दूसरे पार्ट में अनेकता में एकता शामिल है और आज प्रधानमंत्री जी सबका साथ, सबका विकास के जरिये उसी पर अमल कर रहे हैं. इसे हमें बच्चों को सीखाना भी चाहिए.

लेकिन, आज़ादी के 70 साल बाद भी जब हम देश के हालात पर सोचते हैं तो कई बार तकलीफ भी होती है. आज़ादी के 70 साल बाद भी आज महिलाएं सुरक्षित नहीं है. यह सब देख-सुनकर काफी तकलीफ होती है.

प्रतीकात्मक

हमारे देश में महिलाओं को बहुत बड़ा दर्जा हासिल है. हमारे यहां धन के लिए लक्ष्मी की पूजा होती है, विद्या के लिए सरस्वती की पूजा होती है. जब ताकत के  लिए पूजा करनी होती है तो दुर्गा-काली की पूजा होती है. तो हमारी सोच में कोई कमी नहीं है, लेकिन, उस सोच को हम प्रैक्टिकली लागू नहीं करते हैं.

हम आज़ादी की बात करते हैं तो सबसे पहले हमें औरतों के खिलाफ हो रहे अत्याचार से आज़ादी की जरूरत है.

अगर लड़की दिन में कुछ लोगों के साथ जाती है तो हमारा देखने का नज़रिया कुछ अलग है, लेकिन, वही जब रात में जाती है तो लोगों के देखने का नज़रिया बदल जाता है. वही व्यक्ति शैतान बन जाता है.

फिर सवाल खड़ा होता है कि लड़कियां रात में क्यों निकल रही हैं. क्यों ना निकलें? ये देश जितना आपका है उतना ही हमारा है. अगर पुरुष निकल सकते हैं तो औरतें क्यों नहीं निकलेगी? आप दो नज़रिये से क्यों देखते हैं?

मैं उन लोगों में नहीं हूं जो कहते हैं कि मुझे ज्यादा चाहिए. मैं उन लोगों में हूं जो कहते हैं कि उतना ही चाहिए जितना हमारा हक है. मैं तो सिर्फ महिलाओं के अधिकार की बात करती हूं.

लेकिन, आज़ादी के इतने सालों बाद भी हमारे सामने सबसे बड़ी समस्या बढ़ती जनसंख्या की है. हमारी सबसे बड़ी कमी यही है कि हम अपनी आबादी पर नियंत्रण नहीं रख पाए. जनसंख्या नियंत्रण का जो प्रोग्राम था वो अगर जारी रहता तो हम अपने रिसोर्सेज को मैनेज कर पाते. अब तो हमारे रिसोर्सेज कम पड़ जाते हैं.

किसी घर में एक बच्चा बैकवर्ड था लेकिन, चार बच्चे हो गए तो फिर चार बच्चे बैकवर्ड हो गए. फिर भी हमलोग तरक्की की कोशिश कर रहे हैं. तरक्की कर भी रहे हैं.

मुझे लगता है कि अब जनसंख्या नियंत्रण को लेकर किसी तरह का प्रचार होना चाहिए. 1977 में कोशिश हुई थी लेकिन, इस तरह का प्रोपेगंडा चल गया कि दुल्हा-दुल्हन को मंडप से उठाकर ले गए. हो सकता प्रोग्राम भटक गया हो, लेकिन, उस प्रोग्राम को मोडिफाई कर कान्टिन्यू तो करना चाहिए था.

लेकिन, उसके बाद तो जनसंख्या नियंत्रण की जरूरत पर कोई बोला ही नहीं. ध्यान ही नहीं दिया. हम अपने रिसोर्स नहीं बढ़ा सकते तो फिर जनसंख्या पर रोक लगाने की जरूरत है.

चीन में इसको लेकर सख्त कानून बना. चीन जनसंख्या नियंत्रण में सफल भी रहा. यह एक राजनीतिक मुद्दा नहीं है. बल्कि सभी लोगों की जिम्मेदारी बनती है कि ऐसा किया जाए. मैं लगातार बोलती रही हूं जनसंख्या नियंत्रण पर. इसे राजनीतिक रंग देने की जरूरत नहीं है.

70 सालों में बहुत कुछ हुआ है. विकास हुआ है. एयरलाइंस, रेलवे, सड़क, डैम, संचार जैसे हर क्षेत्र में आगे हैं. लेकिन, विकास उतना नही हुआ है जितना होना चाहिए था.

आज मैं प्रधानमंत्री की बात से बिल्कुल सहमत हूं. उनका संदेश बिल्कुल सही है जिसमें उन्होंने कहा है कि अंग्रेजों को तो क्विट करा दिया लेकिन, हमारे देश में आज भी जो खराबियां हैं उन्हें भी क्विट करने की जरूरत है. आज हमें अशिक्षा, गरीबी, गंदगी को भारत से क्विट कराना है.

जब शांतिपूर्वक तरीके से क्विट इंडिया मूवमेंट को सफल बना दिया गया तो फिर हम सबका साथ सबका विकास के नारे पर चलकर देश में मौजूद खराबियों को भी दूर कर सकते हैं.

(नजमा हेपतुल्ला मणिपुर की गवर्नर हैं. इसके पहले मोदी सरकार में अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री रह चुकी हैं. नजमा हेपतुल्ला राज्यसभा की उपसभापति भी रह चुकी हैं.)