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मकबूल फिदा जिन्हें 'हुसैन' होने की सजा मिली

हुसैन ने कई मौकों पर भारत का नाम दुनिया भर में ऊंचा किया मगर अंत समय अपने वतन वापस न आ सके

Animesh Mukharjee

एमएफ हुसैन का नाम दुनिया भर में कला जगत से जुड़े लोगों के लिए कतई अपरिचित नहीं है. हिंदुस्तान के संदर्भ में उनकी इस लोकप्रियता के मायने बदल जाते हैं. एक बड़े तबके के लिए वो महज हिंदू धर्म का अपमान करने वाले विवादित पेंटर हैं.

हुसैन से जुड़े तमाम विवादों से परे हटकर देखें तो हुसैन ने अपनी कूंची के जरिए ऐसा बहुत कुछ दिया है जिसके चलते मॉर्डन आर्ट की दुनिया में भारत का रुतबा बढ़ा है. वो इकलौते ऐसे पेंटर हैं जिनके चित्रों की प्रदर्शनी पाब्लो पिकासो के साथ लगी है.


17 सितंबर 1915 को पैदा हुए हुसैन ने हिंदी सिनेमा के पोस्टर बनाने से करियर की शुरुआत की. हुसैन शुरुआत में चार आना प्रति स्कवायर फीट की दर से पोस्टर पेंट करते थे. इसमें भी रंग लकड़ी और कैनवास का खर्च खुद हुसैन का होता था. उस दौर में पैसे बचाने के लिए मिट्टी के तेल से पेंटिंग बनाने वाले हुसैन को अपनी पहली पेंटिंग की कीमत 10 रुपए मिली. मुंबई के प्रसिद्ध जेजे स्कूल ऑफ आर्ट से पढ़े हुए हुसैन ने इसके बाद मॉर्डन आर्ट को आगे बढ़ाने का काम शुरू किया.

विभाजन की आग में कला

1947 में भारत के विभाजन के कुछ ही महीनों बाद ही कला जगत की संस्था ‘प्रोग्रेसिव आर्ट ग्रुप’ का गठन हुआ. 6 लोगों की इस संस्था का काम था, मॉडर्न आर्ट को बढ़ावा देना. इस ग्रुप की पहली प्रदर्शनी 1948 में लगाई गई. हालांकि 1950 तक ये ग्रुप बिखर गया मगर इस ग्रुप में शामिल नाम दुनिया भर के कला जगत में प्रसिद्ध हुए. एफ एन सुज़ा, तैयब मेहता, एस एच रज़ा और एम एफ हुसैन. जैसे कलाकारों ने दुनिया भर में नाम बनाया. आप सोचिए कि विभाजन की आग में जलते देश में मॉर्डन आर्ट की एक संस्था स्थापित करने और उसे चलाने के लिए किस स्तर का समर्पण और जुनून चाहिए होगा.

कला को नया मोड़

हुसैन ने अपनी कला की शुरुआत फिल्मों के पोस्टर बनाने से की थी. पेंटिंग की दुनिया में हुसैन ने एक नया प्रयोग किया. मोटी-मोटी बोल्ड आउटलाइन का इस्तेमाल हुसैन की पेंटिंग की खासियत है. कुछ जगहों पर तो हुसैन सिर्फ आउट लाइन से ही पूरा चित्र खींच देते हैं. इसके अलावा उन्होंने घोड़ों की कई तस्वीरें पेंट की. हिंदी सिनेमा से उनका प्रेम बहुत पुराना था. माधुरी दीक्षित को लेकर गजगामिनी और तब्बू के साथ मीनाक्षी जैसी फिल्में तो उन्होंने बनाई हीं, खुद भी ‘मोहब्बत’ नाम की फिल्म में ऐक्टिंग की.

मुगल-ए-आज़म पर हुसैन की एक तस्वीर

धर्म से जुड़े विवाद

90 के दशक में एमएफ हुसैन को हिंदुत्ववादी संगठनों ने निशाने पर लिया. पहला आरोप था हिंदू देवी देवताओं की आपत्तिजनक तस्वीरें बनाना. ऐसी पेंटिंग्स में तीन पर खासा विवाद हुआ इनमें दुर्गा, सीता और सरस्वती पर बनी पेंटिंग्स को लेकर उन्हें निशाना बनाया गया. हालांकि उनकी ये पेंटिंग्स विवाद होने से कई साल पहले बनाई गई थीं.

हुसैन की इन पेंटिंग्स को बनाने पीछे क्या मायने थे पता नहीं मगर उनकी बनाई हुई पेंटिंग्स जैसी कला हिंदुस्तान में पहले भी बनती रही हैं. वैसे भी उनके साथ हिंसा करने वाले तमाम संंगठन और लोग भारतीय संस्कृति में कला की स्वतंत्रता के नाम पर खजुराहो का नाम बार-बार लेते हैं.

तंजौर कला की ये सरस्वती की इस तरह की मूर्ति भारत में सदियों से बनती आ रही हैं

इसके बाद 2006 में उनकी एक और पेंटिंग पर विवाद हुआ. इसमें भारत के नक्शे से मिलती जुलती एक आकृति में एक गुलाबी रंग की न्यूड औरत हाथ फैलाए खड़ी है. पेंटिंग को बिक्री के समय इंटरनेट पर भारत माता- द न्यूड गॉडेस नाम दे दिया गया. इसी बात को आधार बनाकर वो फिर से निशाना बने. इस बार उन्हें देश छोड़ना पड़ा. 2008 में हुसैन को सुप्रीम कोर्ट ने राहत दे दी मगर हुसैन कभी वापस अपने देश नहीं आ सके.

हुसैन की इस पेंटिंग को दूसरे लोगों ने भारत माता का नाम देकर विवाद खड़ा किया. सुप्रीम कोर्ट ने इस पेंटिंग को विवादास्पद मानने से मना कर दिया है, इसीलिए हम ये पेंटिंग आपको दिखा रहे हैं.

ऐसा नहीं है कि एम एफ हुसैन सिर्फ हिंदू चरमपंथियों के निशाने पर रहे हों. अपनी फिल्म मीनाक्षी के एक गाने में कुरान की आयतें इस्तेमाल करने के चलते वो इस्लामिक कट्टरपंथ के निशाने पर आए.

बेपनाह दौलत

माना जाता है एम एफ हुसैन ने 60,000 से ज्यादा पेंटिंग्स बनाई. अगर इनकी एक पेंटिंग की औसत कीमत आज 10 लाख भी मान लें (असल में इससे कहीं ज्यादा होगी) तो भी उनकी कुल संपत्ति 600 करोड़ से ज्यादा होती है. दुनिया भर में फैली अपनी तमाम संपत्तियों के साथ-साथ 50 से ज्यादा लग्जरी कारों का काफिला भी पीछे छोड़ गए हैं. इनमें से कई कारों को उन्होंने पेंट भी किया है.