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दमदार आवाज और खास अंदाज वाले शत्रुघ्न सिन्हा के डायलॉग हर वक्त याद रहते हैं

9 दिसंबर 1945 को पैदा हुए शत्रुघ्न सिन्हा को इनके पिता डॉक्टर या वैज्ञानिक बनाना चाहते थे, लेकिन इनके मन में कुछ और ही था

Abhishek Tiwari

आजादी से दो साल पहले भुवनेश्वरी प्रसाद सिन्हा और श्यामा देवी सिन्हा को चौथे संतान की प्राप्ती हुई. पहले से तीन संतान थे. तीनों के तीनों लड़के. नाम थे राम, लक्ष्मण और भरत. चौथा भी लड़का ही हुआ. शायद भगवान भी ये चाहते थे कि जो अधूरा रह गया है उसे पूरा कर दिया जाए. जो अधूरा रह गया था वह शत्रुघ्न से पूरा हो गया. जी हां, नाम रखा गया शत्रुघ्न प्रसाद सिन्हा. आगे चल कर इन्होंने दो फिल्मों में एसपी सिन्हा नाम रखा फिर अपने नाम से प्रसाद हटाकर शत्रुघ्न सिन्हा बन गए और उसके बाद की कहानी सबके सामने है.

9 दिसंबर 1945 को पैदा हुए शत्रुघ्न सिन्हा को इनके पिता डॉक्टर या वैज्ञानिक बनाना चाहते थे, लेकिन इनके मन में कुछ और ही था. पटना साइंस कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद शत्रुघ्न सिन्हा अपने सपने को पूरा करने के लिए जाने-माने फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया में दाखिला लिया. यहां से एक्टिंग सीखा और निकल पड़े सपनों के शहर की तरफ.


अपने नाम को लेकर बहुत चिंतित थे शत्रुघ्न सिन्हा

शत्रुघ्न बताते हैं कि जब मैं बॉम्बे गया तब जमाना कपूर और कुमार का था. ना ही मैं कपूर था और ना ही कुमार. मैं सोचने लगा कि नाम क्या रखुं. किसी ने सलाह दी कि एसपी सिन्हा रख लो. मैंने दो फिल्मों में एसपी सिन्हा के नाम से काम किया. ये नाम मुझे पसंद नहीं था. लगता था कि किसी रिटायर्ड ब्यूरोक्रेट का नाम है. एक शख्स मिले उन्होंने सलाह दी कि नाम से कुछ नहीं होता. काम अच्छा होगा तो नाम अपने आप हो जाएगा. फिर मैंने अपने नाम से प्रसाद हटा कर शत्रुघ्न सिन्हा बन गया.

शॉटगन के नाम से मशहूर शत्रुघ्न बचपन में बहुत शरारती हुआ करते थे. चेहरे पर लंबे कट का निशान भी उसी का देन है. इस कट के बारे में बात करते हुए एक रेडियो इंटरव्यू में सिन्हा ने कहा था कि जब हीरो बनने का भूत सवार हुआ तब लोगों ने कहा कि अपने चेहरे को देख लो. कैसे-कैसे लोग हीरो हैं और तुम उनके सामने कहां और ऊपर से ये कट का निशान. उन्होंने कहा कि बचपन का निशान फिल्मी दुनिया में बहुत काम आया और लोगों ने इसे खूब सराहा भी.

शत्रुघ्न सिन्हा के फिल्मी कैरियर की शुरुआत देवानंद की फिल्म प्रेम पुजारी से हुई. लेकिन 1969 में आई फिल्म साजन उनकी पहली फिल्म थी जो रिलीज हुई. इसके बाद उनका सफर कभी रुका नहीं. एक से बढ़कर एक फिल्में शत्रुघ्न सिन्हा करते रहे और सफलता की इबारत गढ़ते गए.

शत्रुघ्न सिन्हा के डायलॉग आज भी बेहद मशहूर

हम आज उनके फिल्मी करियर और राजनीति पर बात नहीं करेंगे. हम बात करेंगे उनके मशहूर डायलॉगों की. अमिताभ बच्चन के बाद शत्रुघ्न सिन्हा अपने जमाने के इकलौते अभिनेता हैं जिनके डायलॉग आज भी लोग बोलते हैं. खास अंदाज और आवाज के कारण शत्रुघ्न सिन्हा के फिल्मों के डायलॉग बहुत मशहूर हुए जो आज भी लोगों के जुबान पर चढ़े हुए हैं. आइए याद करते हैं उनके ऐसे ही कुछ फेमस डायलॉग्स

-जली को आग कहते हैं, बुझी को राख कहते हैं. जिस राख से बारूद बने उसे विश्वनाथ कहते हैं.

-आज कल जो जितनी ज्यादा नमक खाता है.. उतनी ज्यादा नमक हरामी करता है.

-पहली गलती माफ कर देता हूं, दूसरी बर्दाश्त नहीं करता.

-मैं तेरी इतनी बोटियां करूंगा कि आज कोई गांव का कुत्ता भूखा नहीं सोएगा.

-जब दो शेर सामने खड़े हो तो भेड़िए उनके आस-पास नहीं रहते.

-आज के जमाने में बेइमानी ही एक ऐसा धंधा रह गया है जो पूरी इमानदारी से के साथ किया जाता है.

-आप आग के पास रहकर शांत नहीं हैं और हम दिल में आग रखकर भी शांत हैं.

-अपनी लाशों से हम तारीख को आबाद रखे, वो लड़ाई हो कि अंगरेज जिसे याद रखे.

-जिंदगी इंसान को लाती है और मौत ले जाती है. ये शराब बीच में कहां आती है.

-भड़की हुई आग को बुझाने के लिए जो फूंक मारने की कोशिश करता है, उसका चेहरा जल जाता है.

-हम तेरे पैरों के नीचे की जमीन इतनी गरम कर देंगे कि तेरे जूतों तक में छाले पड़ जाएंगे.

-हाथी अगर चींटी के ऊपर पैर रख दे तो चिंटी मरती नहीं उसे मसलना पड़ता है.

-बिल्ली के नाखून बढ़ जाने से बिल्ली शेर नहीं बन जाती.

-हम वो पंडित हैं जो शादी भी कराते हैं और श्राद्ध भी.

-औरत पर हाथ उठाना नामर्द की पहली निशानी है.

- तीसरे बादशाह तो खुद हम हैं.

और सबसे अंत में

कह देना छेनू आया था.