कभी-कभी रचनाएं रचनाकार से बड़ी हो जाती हैं. राग दरबारी भी एक ऐसा ही उपन्यास है. इस किताब के वन लाइनर कल्ट का दर्जा पा चुके हैं. हिंदी के किसी भी सामान्य पाठक से बात कीजिए, वो श्रीलाल शुक्ल का परिचय राग दरबारी से ही जोड़ेगा. हालांकि खुद शुक्ल जी अपने लिखे अज्ञातवास जैसे दूसरे उपन्यासों को बेहतर मानते रहे.
मगर अंत में महानता जनता तय करती है. जनता ने आजादी के बाद के भारतीय ग्रामीण परिवेश की इस कथा को अभूतपूर्व प्यार दिया. शिवपालगंज के छोटे से परिवेश के बहाने शुक्ल जी ने सिस्टम की तमाम पर्तों को उधेड़ कर रख दिया है आप भी इसके कुछ वन लाइनर याद कर लीजिए. जरूरत पर काम आएंगे.