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जब मोजड़ी उठाने में देर करने पर साबिर खान पर भड़क गए थे उस्ताद सुल्तान खान

जब मशहूर सारंगी वादक उस्ताद सुल्तान खान से उनके शागिर्द और बेटे साबिर खान को सुल्तान साहब की मोजड़ी उठाने में देर करने के चलते डांट खानी पड़ी थी.

Bhasha

किस्सों की अपनी एक अलग दुनिया होती है, लेकिन कुछ किस्से ऐसे होते हैं जो ताउम्र जेहन में रहते हैं. ऐसा ही एक किस्सा जुड़ा है मशहूर सारंगी वादक उस्ताद सुल्तान खान और उनके शागिर्द और बेटे साबिर खान के साथ जब उन्हें सुल्तान साहब की मोजड़ी उठाने में देर करने के चलते डांट खानी पड़ी थी.

यहां ‘वर्ल्ड सेक्रेड स्पिरिट फेस्टिवल’ में अलग से एक बातचीत में साबिर ने कहा, ‘वह मेरा जीवन का दूसरा कॉन्सर्ट था. शायद हैदराबाद में कहीं. मैं वालिद (पिताजी) के साथ मंच पर था. प्रस्तुति के बाद उन्होंने कहा कि हम जल्दी होटल चलकर आराम करेंगे. लेकिन तब तक कई लोग ग्रीन रूम में आ गए और मेरे साथ फोटो लेने लगे, ऑटोग्राफ मांगने लगे.’


साबिर ने बताया, ‘तो इस भीड़ से खान साहब की जो मोजड़ियां थी उनमें से एक ग्रीन रूम के एक कोने में और दूसरी, दूसरे कोने में पहुंच गई. अब मुझे फोटो खिंचवाने में बड़ा मजा आ रहा था. खान साहब ने एक-दो बार मुझे मोजड़ियां लाने के लिए कहा और जब मैं उन्हें उठाने के लिए बढ़ा तो लोगों ने फिर मुझे घेर लिया. जहां तक मुझे याद है, उन्होंने दो-तीन बार आराम से कहा और उसके बाद उस्ताद साहब को जो गुस्सा आया,कि सारा का सारा नया-नया चढ़ा स्टारडम दूर हो गया.’

साबिर ने कहा, ‘स्टारडम के बारे में बाद में पिताजी हमेशा सीख देते थे कि अगर लंबी रेस का घोड़ा बनना है तो दो घंटे के कलाकार बनो और दिन में 22 घंटे अच्छे इंसान बनो, बेहतर शागिर्द बनो.’

‘वर्ल्ड सेक्रेड स्पिरिट फेस्टिवल’ के बारे में उन्होंने कहा कि यह महोत्सव उनके दिलो-दिमाग के बहुत करीब है क्योंकि वह जोधपुर में ही पैदा हुए हैं और पले-बढ़े हैं. ऐसे में यह उनके लिए ये ‘होमकमिंग’ जैसा है.

तबला वादक उस्ताद जाकिर हुसैन के साथ संगत करने वाले साबिर उनके साथ का भी एक वाकया सुनाते हैं.

साबिर ने कहा, ‘जाकिर जी ने मुझे आजकल अपने साथ गवाना भी शुरू किया है. ऐसे में संगत करते समय मुझे राग को तुरंत बदलकर गाना होता है. तो एक बार की बात है कि मैंने गाना शुरू किया और कहीं जाकर अंतरा थोड़ा सा बदल गया तो बाद में वह मुझे बोले कि खान साहब क्या बात है- आपका राजस्थानी गाना मुझे पूरा याद है और आप ही भूल गए.’

उन्होंने कहा कि इस तरह के कई और किस्से हैं. लेकिन सुल्तान साहब एक गुरु के तौर पर बेहद कड़े इंसान थे. इसलिए उनके गुस्से से वह हमेशा बचने की कोशिश करते थे.